वन्यप्राणियों का संरक्षण एवं वन क्षेत्रों में विकास कार्य इस तरह संपादित हों कि इससे मानव जीवन पर भी विपरीत प्रभाव न पड़े-मुख्यमंत्री
मध्यप्रदेश राज्य वन्यप्राणी बोर्ड की 19 वीं बैठक संपन्न
भोपाल। गोंडवाना समय।
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि वन्य क्षेत्रों और वन्यप्राणियों का संरक्षण एवं वन क्षेत्रों में विकास कार्य इस तरह संपादित हों कि इससे मानव जीवन पर भी विपरीत प्रभाव न पड़े। दोनों के मध्य संतुलन स्थापित हो। अभ्यारण्य और राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्रों में सड़क निर्माण, संचार विकास और अन्य आवश्यक कार्य वन्यप्राणियों को क्षति पहुंचाए बिना सम्पन्न हों, इसका ध्यान रखा जाए। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान गुरूवार को मध्यप्रदेश राज्य वन्यप्राणी बोर्ड की 19 वीं बैठक को संबोधित कर रहे थे। बैठक में वन मंत्री कुंवर विजय शाह, मुख्य सचिव श्री इकबाल सिंह बैंस, प्रमुख सचिव वन श्री अशोक बर्णवाल और अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
अफ्रीकी चीतों को बसाने के लिए अनुकूल है मध्यप्रदेश
बैठक में बताया गया कि प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान और नौरादेही वन्यप्राणी अभ्यारण्य में चीतों के रहवास के लिए उपयुक्त पाए जाने की स्थिति है। कूनो राष्ट्रीय उद्यान जो करीब 750 वर्ग किलोमीटर में स्थित है वहां मात्र एक गांव है जिसके विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है। इसी तरह एक हजार किलोमीटर से अधिक वर्ग किलोमीटर में स्थित नौरादेही वन्यप्राणी अभ्यारण्य सागर, दमोह और नरसिंहपुर जिलों में स्थित है। यहाँ वर्तमान में 63 ग्रामों में से 13 गांव विस्थापित किए जा चुके हैं। अन्य 15 ग्रामों के विस्थापन की प्रक्रिया प्रचलन में है। इसके दृष्टिगत मध्यप्रदेश के इन संरक्षित क्षेत्रों में अफ्रीकी चीते की स्थापना की संभावनाएं देखी जा रही हैं। इस संबंध में वैधानिक रूप से आवश्यक अनुमतियों के पश्चात कार्य को गति दी जाएगी। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वाय.वी. झाला द्वारा मध्यप्रदेश के संरक्षित क्षेत्रों में अफ्रीकी चीतों की अनुकूलता के संबंध में प्राथमिक सर्वेक्षण किया जाएगा। इसके लिए मध्यप्रदेश में तैयारियां प्रारंभ की गई हैं। प्रस्तावित वैकल्पिक संरक्षित क्षेत्र गांधीसागर अभ्यारण्य मंदसौर में शाकाहारी वन्यप्राणियों के ट्रांसलोकेशन के लिए नरसिंहगढ़ अभ्यारण्य राजगढ़ से 500 चीतल ट्रांसलोकेशन करने की अनुमति भी प्राप्त हुई है।
मध्यप्रदेश अब तेंदुआ स्टेट भी
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि बफर में सफर जैसी गतिविधियों से पर्यटन विकास संभव होगा। उन्होंने मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट के बाद तेंदुआ स्टेट बनने पर बधाई दी। मुख्यमंत्री ने प्रदेश में 3421 तेंदुए होने पर भी प्रसन्नता व्यक्त की। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि राज्य में तेंदुआ संख्या लगभग साढ़े तीन हजार है। यह निश्चित ही एक उपलब्धि है। देश में कुल 12852 तेंदुएं हैं। मध्यप्रदेश को टाइगर के बाद तेंदुआ राज्य बनने के पश्चात अन्य वन्यप्राणियों की श्रेणी में भी अग्रणी बनने की संभावनाएं बढ़ी हैं। बोर्ड के सदस्य श्री अभिलाष खांडेकर ने सुझाव दिया कि राजस्थान में तेंदुआ रिजर्व बनाया जा रहा है, मध्यप्रदेश में भी ऐसा संभव है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने श्री खांडेकर के इस सुझाव पर सहमति जताई।
मध्यप्रदेश पहले ही बना है बाघ प्रदेश
मध्यप्रदेश ने अखिल भारतीय बाघ गणना 2018 में 526 बाघ पाए जाने के साथ बाघ प्रदेश का दर्जा हासिल किया था। अब तेंदुआ स्टेट का दर्जा मिलने से मध्यप्रदेश प्रथम और कर्नाटक एवं महाराष्ट्र द्वितीय एवं तृतीय क्रम पर हैं। बैठक में बाघों के रहवासों और संरक्षित क्षेत्रों का भारत सरकार और राज्य सरकार की योजनाओं के साथ ही कैम्पा फण्ड से भी वित्त पोषण पर चर्चा हुई। संरक्षित क्षेत्रों में रहवास प्रबंधन, वन्यप्राणियों की सुरक्षा, अग्नि सुरक्षा, मानव-वन्यप्राणी द्वंद के प्रबंधन और बाघ एवं शाकाहारी वन्यप्राणियों के अधिक घनत्व के क्षेत्रों से कम घनत्व के संरक्षित क्षेत्रों में ट्रांसलोकेशन किए जाने पर चर्चा हुई। प्रदेश में वन्यप्राणियों के संरक्षण के लिए 16,794 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 6 टाइगर रिजर्व सहित 11 राष्ट्रीय उद्यान एवं 24 वन्यप्राणी अभ्यारण्यों का गठन किया गया है।
प्रदेश में वन्यप्राणी संरक्षण और प्रबंधन की गतिविधियां सुचारू रूप से संचालित हों
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश में वन्यप्राणी संरक्षण और प्रबंधन की गतिविधियां सुचारू रूप से संचालित हों। बैठक में बताया गया कि मध्यप्रदेश के सभी नेशनल पार्क में नाईट जंगल सफारी, बैलून सफारी शुरू करने, जंगली हाथियों के रेस्क्यू, घड़ियालों की पुनर्स्थापना के संबंध में गतिविधियां संचालित हैं। बैठक में मध्यप्रदेश की टाइगर स्टेट के रूप में स्थिति सुदृढ़ करने के लिए योजना पर भी चर्चा हुई। इसके साथ ही प्रदेश में बाघों की पुनर्स्थापना के लिए सतपुड़ा, नौरादेही, संजय गांधी अभ्यारण में आवश्यक परिस्थितियों के निर्माण के संबंध में और स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स के सशक्तिकरण पर भी चर्चा हुई। प्रदेश में माधव, गांधीसागर और नौरादेही राष्ट्रीय उद्यान में हो रहे कार्यों पर भी विचार किया गया। ये चारों राष्ट्रीय उद्यान भारत सरकार द्वारा चयनित हैं। यहाँ भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून द्वारा सर्वेक्षण कार्य पूर्ण किया गया है।
खरमोर संरक्षण
बैठक में बताया गया कि धार जिले के सरदारपुर में वन्यप्राणी अभ्यारण्य का गठन खरमोर प्रजाति के पक्षी के लिए किया गया है। यह पक्षी घास के मैदानों में पायी जाने वाली महत्वपूर्ण और संकटग्रस्त प्रजाति है। पश्चिमी मध्यप्रदेश के धार के अलावा झाबुआ, रतलाम, मंदसौर और नीमच में ये पाए जाते हैं। इनकी संख्या कम हुई है। प्रदेश में खरमोर संरक्षण के लिए कंजर्वेंशन ब्रीडिंग केन्द्र प्रारंभ करने पर सहमति हुई। इसके लिए करीब साढ़े तीन सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पूर्व में अधिसूचित किया गया था। खरमोर अभ्यारण्य सरदारपुर के क्षेत्र के अंतर्गत वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 का पालन करते हुए आवश्यक गतिविधियों के संचालन पर सहमति हुई। जिन क्षेत्रों में खरमोर पक्षी कुछ वर्ष से प्रवास नहीं कर रहे हैं उन क्षेत्रों को अभ्यारण्य क्षेत्र से बाहर करने के संबंध में विचार किया गया। इसी तरह खरमोर के लिए सैलाना अभ्यारण्य के पुनर्गठन प्रस्ताव पर भी चर्चा हुई। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि खरमोर का संरक्षण महत्वपूर्ण है, इनके रहवास वाले क्षेत्रों में ऐसी फसलों को प्रोत्साहित किया जाए जिससे पक्षियों को भी भोजन मिल सके। इसी तरह सैलाना अभ्यारण्य की सीमा से 10 किलोमीटर परिधि में दिल्ली-मुम्बई एक्सप्रेस हाईवे एन.एच.-148एन के 8 लेन निर्माण के लिए वन्यप्राणियों की सुरक्षा की शर्त पर बोर्ड द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई है।
राज्य मछली महाशीर को बचाएंगे
बैठक में बताया गया कि प्रदेश के बड़वाह वनमण्डल में महाशीर संरक्षण योजना लागू की गई है। राज्य शासन ने महाशीर संरक्षण और प्रजनन पर 61 लाख रूपए की राशि खर्च की है। वर्ष 2020 में महाशीर का चार बार कृत्रिम प्रजनन कराया गया जिसके फलस्वरूप 4000 फ्राई प्राप्त किए गए। ये स्वस्थ स्थिति में है, इन्हें नर्मदा के जल प्रवाह में छोड़ा जाएगा। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि एक समय नर्मदा में इन मछलियों की संख्या काफी अधिक थी। इनके संरक्षण के कार्य को गति दी जाए। बोर्ड की बैठक में डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ के सदस्य ने सुझाव दिया कि उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में महाशीर संरक्षण के कार्यों का अध्ययन कर मध्यप्रदेश में श्रेष्ठ गतिविधियों को अपनाया जा सकता है। बैठक में जानकारी दी गई कि महाशीर संरक्षण के लिए प्रदेश में बीते नवम्बर माह में राज्य स्तरीय स्टियरिंग कमेटी भी बनाई गई है जिसकी शीघ्र ही बैठक होने वाली है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने मत्स्य पालन विभाग द्वारा भी महाशीर संरक्षण प्रयासों से जुड़ने के निर्देश दिये।
किसानों का भी पक्ष जानें, समाधान निकाला जाए
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश के कुछ स्थानों से नीलगाय और अन्य पशुओं द्वारा खेतों में नुकसान पहुंचाने के समाचार मिलते हैं। ऐसे मामलों में किसानों का पक्ष जानते हुए आवश्यक उपाय किए जाएं। वन्यप्राणियों और मनुष्यों के बीच द्वंद की स्थिति निर्मित हो तो उसका समाधान निकाला जाए। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने सागर जिले में प्रस्तावित डॉ. अम्बेडकर अभ्यारण्य के संबंध में जिला योजना समिति के अनुमोदन के पश्चात बोर्ड के समक्ष प्रस्ताव रखने के निर्देश दिए। यह अभ्यारण्य 258 वर्ग किलोमीटर में प्रस्तावित है। प्रस्तावित अभ्यारण्य क्षेत्र में कोई राजस्व ग्राम नहीं है।
बंद नहीं होगा हीरा खनन कार्य
बैठक में पन्ना जिले में गंगऊ अभ्यारण्य में एन.एम.डी.सी. की 275 हेक्टेयर में हीरा खनन कार्य के संबंध में बोर्ड के सदस्यों ने विचार-विमर्श किया। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि यह सुनिश्चित करें कि हीरा खनन का कार्य बंद न हो, साथ ही विकास भी हो और वन्य प्राणी संरक्षण भी हो। दोनों में संतुलन आवश्यक है।
संचार संबंधी अनुमतियां
बोर्ड की बैठक में गांधी सागर अभ्यारण्य क्षेत्र में सड़क निर्माण, वीरांगना दुर्गावती अभ्यारण्य दमोह के क्षेत्र में बेहतर संचार सुविधा के लिए ओ.एफ.सी. केबल डालने की अनुमति भी प्रदान की गई। इसी तरह की अनुमतियां ग्वालियर के घाटीगांव हुकना पक्षी सोनचिड़िया अभ्यारण्य, माधव राष्ट्रीय उद्यान शिवपुरी, नरसिंहगढ़ अभ्यारण्य एवं कान्हा टाइगर रिजर्व मण्डला के क्षेत्र के अंतर्गत भी प्रदान की गईं। इसके अलावा ओरछा अभ्यारण्य क्षेत्र में 132 के.व्ही. विद्युत पारेषण लाइन और 14 टॉवर के निर्माण के लिए 13.50 हेक्टयर भूमि मध्यप्रदेश पावर ट्रांसमिशन कम्पनी सागर को प्रदान की गई। यह सभी अनुमतियां वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत प्रदान की गईं।