बरगी बांध के विस्थापित मोदी व शिवराज सरकार की मूलभूत सुविधाओं से वंचित, पलायन को है मजबूर
बीजासेन पहुंचकर कलेक्टर से हकीकत देखने की है विस्थापितों की मांग
सिवनी। गोंडवाना समय।
बरगी बांध से विस्थापित और प्रभावित गांव बीजासेन तहसील घंसौर जिला सिवनी से बड़ी संख्या में नागपुर और जबलपुर में पलायन करने को मजबूर है। लगभग 50% लोग गांव से बाहर है कई घरों में लटका है। वहीं जिन बेटा-बेटियों के हाथ में किताब पेंसिल होना चाहिए वह आज मजदूरी करने को मजबूर है। वहीं पलायन रोकने में नाकाम साबित हो रहा है स्थानीय प्रशासन। विकास की दौड़ बरगी बांध ने विस्थापितों का सब कुछ छीना जा चुका है और वे जिंदगी की दौड़ में पीछे होते चले रहे है।
रोजगार व शासन की योजनाओं का मिले लाभ
रोजगार गारंटी योजना के तहत भी लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है। यहां तक कई लोगों के तो जॉबकार्ड भी नहीं बने है, वहीं कुछ लोगों को जॉब कार्ड चुके है। विस्थापितों द्वारा कई दिनों से यह मांग की जा रही है कि डूब क्षेत्र के जिन गांव का कोई विकल्प नहीं है वहां पर रोजगार के साधन के लिए उन गांव में मनरेगा के तहत 200 दिन का रोजगार मुहैया कराया जाए और हर परिवार को 35 किलो खाद्यान्न मिले जिससे कुछ हद तक विस्थापितों के चेहरे में मुस्कान लाई जा सके।
मनोरंजन करने वाले पर्यटक नहीं समझते दर्द
विस्थापितों की दर्द भरी दास्तान मध्य प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी पर बने पहले बड़े बांध रानी अवंती बाई सागर परियोजना यानी बरगी बांध के प्रभावित गांव के हैं। डूब व प्रभावित क्षेत्र के नागरिकगण पहले तो डूब के कारण जीते जी मरने की कगार पर पहुंच गए और अब तिल-तिल कर मर रहे हैं। जहां एक ओर सरकार इस बांध से पर्यटन को बढ़ावा देने में लगी हुई है। इसी के तहत परियोजना की मूल शर्तों को छोड़कर सरकार ने पर्यटन विकास के लिए रिसोर्ट बना दिया और मोटर बोट क्रूज भी चलने लगे हैं। वहीं मनोरंजन के सैर-सपाटा करने के लिये आने वाले लोगों को यहां के क्षेत्रिय विस्थापितों का दर्द दिखाई नहीं देता है।
पर्यटन स्थल नहीं हमारा है समाधी स्थल
विस्थापितों का कहना है कि सरकार और पर्यटक इसे पर्यटन स्थल मानते हैं लेकिन यह हमारे गांव, हमारे घरों का और हमारी जमीनों का समाधि स्थल है। हमारे लिए तो यह बबार्दी का पर्यटन स्थल है, सरकार ने जीते जी हमारी कब्र खोद दी लेकिन शासन ने विस्थापित गांवों की आज भी सुध नहीं ली है। बरगी बांध डूब क्षेत्र का बीजासेन गांव इसलिए विशिष्ट हो जाता है क्योंकि इसके तीनों और से पानी भरा हुआ है। यानी यह एक टापू है, एक ऐसा टापू जिससे जीवन की न्यूनतम आवश्यकता की पूर्ति के लिए कम से कम 3 किलोमीटर बरगी जलाशय से अपने गंतव्य तक जाने के लिए बरगी जलाशय को पार करना पड़ता है। वह भी नाव से आवागमन करना होता है।
अस्पताल पहुंचने के लिये धड़कन को 2 घंटे रोकना है मजबूरी
वहीं यदि किसी को दिल का दौरा पड़ जाए और अभी उसे जीना है, तो उसे अपने दिल को 1:30 से 2 घंटे धड़काना ही होगा और तब कहीं जाकर सड़क मार्ग मिलेगा और फिर कहीं जाकर अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधा का लाभ ले सकता है। बरगी बांध से विस्थापित प्रभावित गांव बीजासेन की वशिंदों ने कई बार आर्थिक पुनर्वास की मांग को लेकर जिला प्रशासन से लेकर मध्यप्रदेश शासन को ज्ञापन के माध्यम से अवगत कराया लेकिन केवल आश्वासन ही हाथ लगा।
जायजा ले कलेक्टर व विस्थापितों को मूलभूत सुविधाएं दिलाये प्रशासन
वहीं इस गंभीर समस्या पर बरगी बांध से विस्थापित भुवन बर्मन कहते है कि आदिवासी विकास के संभागीय उपायुक्त श्री एस.के.सिंह की 1998 में तैयार की गई रिपोर्ट कहती है कि विस्थापन के बाद परिवारों का मुख्य व्यवसाय अब कृषि के स्थान पर अब मजदूरी रह गया हैं ? सिवनी कलेक्टर से विस्थापित परिवारों ने अनुरोध किया है कि वह डूब क्षेत्र के बीजासेन गांव पहुंचकर स्थिति का जायजा लें, विस्थापितों को मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई जाए।