क्या हैं खान एवं खनिज अधिनियम 1957 एवं गौण खनिज नियम, राज्य सरकार का हथियार साबित हो रहीं राजस्व न्यायालय
बैतुल/सिवनी। गोंडवाना समय।
भारत सरकार का खान एवं खनिज अधिनियम 1957 जिसमें अवैध उत्खन्न, परिवहन एवं भण्डारण को अपराध घोषित करता हैं लेकिन दो तरह की कार्यवाही एक राजस्व दूसरी दांडिक कार्यवाही अपराधी के विरूद्ध किए जाने की अनुमति प्रदान करता हैं। अधिनियम की धारा 21 (5) में राजस्व न्यायालय खनिज के राजस्व की वसूली करेगा तो 21 (1) में दांडिक न्यायालय 5 लाख रूपए तक का जुमार्ना या 5 वर्ष तक का कारावास या फिर दोनो आरोपित किया जा सकता हैं। अपराध प्रमाणित होने पर विचारण न्यायालय जो कि अपराध का विचारण कर रही हैं, जप्तशुदा वाहन को राजसात करेगा।
जिसमें खनिज अपराध को नियंत्रित करना हैं
खान एवं खनिज अधिनियम 1957 में यह भी प्रावधान किया गया हैं कि आरोपी प्रशनमन करके राशि जमा कर देता हैं तो अपराध के संबंध में की जाने वाली समस्त कार्यवाहियां समाप्त हो जायेंगी। दूसरे शब्दों में दांडिक कार्यवाहियां समाप्त हो जायेगी। कानून का लक्ष्य केवल राजस्व क्षति को पूरा करना हैं। अधिनियम 1957 की धारा 15 एवं 23 (सी) में म प्र राज्य सरकार ने गौण खनिज नियम बनाए हैं जो कि म प्र गौण खनिज नियम 1996, म प्र खनिज नियम 2006, म प्र रेत नियम 2018, म प्र रेत नियम 2019 बनाए गए हैं, जिसमें खनिज अपराध को नियंत्रित करना हैं।
खनिज अपराध को नियंत्रित करने का पावर पुलिस को दिया गया हैं
भारत में तामिलनाडू राज्य एक मात्र ऐसा राज्य हैं, जहां पर खनिज अपराध को नियंत्रित करने का पावर पुलिस को दिया गया हैं तो पुलिस खान एवं खनिज अधिनियम की धारा 4/21 एवं भारतीय दण्ड विधान की धारा 379 एवं सार्वजनिक संपत्ति क्षति अधिनियम 1984 की धारा 3 एवं 4 का मुकदमा दर्ज करके दांडिक न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल करती हैं।
म प्र राज्य में खनिज अपराध को नियंत्रित करने का पावर खनिज विभाग एवं राजस्व विभाग के पास हैं, जिसके कारण खनिज अपराध के कई फर्जी मामले सामने आए हैं, खनिज अपराध दस्तावेजो में कोई अपराध घटित नहीं भी होता हैं लेकिन वाहन मुक्ति के लिए राजस्व न्यायालय में अर्थदण्ड राशि जमा कर दी गई हैं। इस तरह से खनिज विभाग को एक बड़ी सफलता हाथ लगी हैं क्योंकि न्यायालय राजस्व हैं, जो कि कानून, नियम और साक्ष्य को देखता नहीं हैं।
अधिनियम और नियम के बीच उलझा खनिज विभाग
खान एवं खनिज अधिनियम 1957 पर सुप्रीम कोर्ट के विगत 5 वर्षो के फैसलो का अवलोकन करने पर यह प्रकट होता हैं कि अधिनियम के मापदण्डों पर खनिज अपराध की जांच होती हैं। म प्र गौण खनिज नियम 1996 में भी कहा गया हैं कि एक खनिज निरीक्षक को पुलिस थाना निरीक्षक की शक्तियां होती हैं और दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधान लागू होते हैं।
खनिज अपराध जांच अधिकारी का यह वैधानिक दायित्व हैं कि नोटिस जारी करके खनिज अपराधी को प्रशमन राशि जमा करने का अवसर प्रदान करें। खनिज अपराधी प्रशमन नहीं करता हैं तब वह अधिनियम 1957 के तहत दांडिक न्यायालय में परिवाद दाखिल करें तथा मप्र रेत नियम 2019 के तहत राजस्व वसूली का प्रकरण प्रस्तुत करें। अधिनियम एवं नियम में इस तरह की प्रक्रिया दी गई हैं।
मप्र राज्य में तो अधिनियम का स्थान तो नियम ने ले रखा हैं
म प्र राज्य अधिनियम महत्वहीन हो गया हैं। कानून का कोई डर नहीं हैं क्योंकि खनिज विभाग दांडिक न्यायालय में परिवाद पेश नहीं करता हैं। खनिज विभाग केवल म प्र राज्य सरकार के खनिज नियम के तहत राजस्व न्यायालय में प्रकरण पेश कर देता हैं। परिणाम यह हो रहा हैं कि कई ऐसे मामले भी हैं जिनमें राजस्व न्यायालय करोड़ो रूपए का अर्थदण्ड आरोपित कर चुकी हैं, मामले अपील में चल रहे हैं। खनिज का कारोबार करने वाली कई बड़ी कंपनियां तत्काल अर्थदण्ड जमा करने से बच गई हैं। इन कंपनियों में ज्यादातर कंपनियां अपने मामलों को प्रमुख सचिव, खनिज साधन विभाग, वल्लभ भवन भोपाल से निपटवाती हैं।
बड़ी कंपनियों की राज्य सरकार में राजनीतिक पकड़ होती हैं जिसका लाभ मिलता हैं। यह पर अर्थदण्ड राशि पर बात होती हैं, अर्थदण्ड राशि कम हो जाती हैं। म प्र राज्य सरकार के खनिज साधन विभाग ने ही खान एवं खनिज अधिनियम 1957 के तहत दांडिक कार्यवाही को रोक कर रखा हैं। मप्र हाई कोर्ट कई मामलों में दोहरा चुकी हैं कि गौण खनिज नियम को खान एवं खनिज अधिनियम 1957 का विकल्प बना दिया गया हैं जो कि विकल्प नहीं हैं। दूसरे शब्दों में अधिनियम का स्थान नियम नहीं ले सकते हैं। मप्र राज्य में तो अधिनियम का स्थान तो नियम ने ले रखा हैं। अधिनियम महत्वहीन हैं और नियम महत्वपूर्ण हैं।
कौन आरोपित कर सकता है अर्थदण्ड ?
खान एवं खनिज अधिनियम 1957 में अर्थदण्ड एवं वाहन राजसात करने का अधिकार केवल दांडिक न्यायालय में निहित हैं। अपराध प्रमाणित होने पर अपराध को दोहराने की स्थिति में वाहन राजसात दांडिक न्यायालय के आदेश पर करने के प्रावधान हैं। अधिनियम की धारा 21 (5) में राजस्व न्यायालय को केवल राजस्व की वसूली करना हैं। परिभाषा में ही स्पष्ट हैं कि राजस्व का दायरा क्या हैं ? रायल्टी, भू- भाटक, व अन्य कर शामिल हैं। कानून कहता हैं कि किसी भी दशा में राजस्व अधिनियम में आरोपित पेनाल्टी से अधिक नहीं होगा।
मप्र राज्य में गौण खनिज नियम में सबसे बड़ा दोष तो यही हैं कि राजस्व न्यायालय अर्थदण्ड आरोपित कर रहीं हैं जबकि अर्थदण्ड तो अपराधिक विचारण में आरोपित किया जाता हैं। कानून एवं नियम दोनो कहते हैं कि राजस्व न्यायालय में खनिज अपराध का प्रशमन किसी भी प्रक्रम अथवा स्तर पर अंतिम निराकरण के पूर्व किया जा सकता हैं लेकिन खनिज कानून का पालन जांच अधिकारी नहीं करते हैं तो राजस्व न्यायालय एक कदम आगे जाकर प्रशमन आवेदन पर अर्थदण्ड आरोपित कर देती हैं।
म प्र रेत नियम 2019 में प्रषमन राशि अथवा अर्थदण्ड राषि पर विचार करें तो अधिनियम 1957 के प्रावधानों का उल्लंघन हो रहा हैं। अधिनियम में राजस्व न्यायालय को केवल राजस्व की वसूली करना हैं तो क्या मप्र रेत नियम 2019 में अर्थदण्ड के नाम पर राजस्व की वसूली हो रहीं हैं ? यह कानून एवं न्याय का सवाल हैं। मप्र रेत नियम 2019 में 10 घनमीटर रेत के अवैध परिवहन के अपराध में प्रशमन राशि 50 हजार रूपए एवं अर्थदण्ड राशि 01 लाख रूपए हैं तो मप्र गौण खनिज नियम 1996 के नियम 53 में रायल्टी की राशि का 25 गुणा प्रशमन राशि हैं अथवा 30 गुणा अर्थदण्ड राशि को अधिनियम के दायरें में राजस्व वसूली मानी जा सकती हैं? यह भी एक कानून एवं न्याय का सवाल हैं जिसे अब तक हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में नहीं उठाया गया हैं, चुनौती नहीं दी गई हैं।
राजस्व अदालतों का भ्रष्टाचार
म प्र राज्य की राजस्व अदालते भ्रष्टाचार के कारण बदनाम हैं। राजस्व न्याय प्रणाली आम जनता को सरकार के विरूद्ध न्याय प्रदान करने में विफल रही हैं तो इसका अर्थ हैं कि राजस्व न्यायालय मप्र सरकार के विरूद्ध कोई आदेश या फैसला नहीं कर सकती हैं। प्रमुख सचिव, खनिज साधन विभाग मप्र प्रदेश गौण खनिज नियम में पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हैं तो वे स्वयं ही अभियोजन के प्रवक्ता की भूमिका अदा करते हैं।
मप्र शासन के पास सरकारी वकील मौजूद हैं लेकिन पैरवी करने के लिए राजस्व न्यायालय में कोई हाजिर नहीं होता हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21, शीर्घ विचारण के अधिकार का सबसे ज्यादा हनन तो राजस्व अदालतों में होता हैं क्योंकि मुकदमों में साप्ताहिक सुनवाई का कोई दिन व समय नियत नहीं हैं। राजस्व अदालतों में बचाव पक्ष का अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट के पूर्व फैसले पेश करता हैं लेकिन जब परिणाम आता हैं तब पता चलता हैं कि पीठासीन अधिकारी ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट की नजीरे लिखने की जहमत तक नहीं उठाई हैं।
राजस्व न्यायालय स्वयं को हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के ऊपर कोई कोर्ट समझती हैं और आदेश पारित करती हैं। राजस्व न्यायालय में भारतीय साक्ष्य विधि की कोई मान्यता नहीं हैं, इसलिए खानिज विभाग के मुकदमें अधिनियम एवं नियम के मापदण्डों पर नहीं हैं, पर्याप्त साक्ष्य रिकार्ड पर नहीं हैं, फिर भी अर्थदण्ड आरोपित कर दिया जाता हैं।
पेशी तारीखों से परेशान खनिज विभाग
मप्र राज्य में राजस्व अदालते कलेक्टर अमूमन सप्ताह में 3 दिन सोमावार, मंगलवार एवं बुधवार लगती हैं, वह भी सांय 3 से 5 बजे तक के लिए जिसमें औसतन 50 मुकदमों पर कार्यवाही होती हैं। खनिज अधिकारी, खनिज निरीक्षकगण अपने-अपने मामलों में गवाहों का परीक्षण करवाने के लिए तैनात रहते हैं। खनिज अपराधियों के लिए यह एक अवसर बनकर आता हैं।
वैसे तो नियम यह हैं कि सरकारी वकील को पैरवी करना हैं लेकिन खनिज विभाग स्वयं सरकारी वकील बन जाते हैं। वैसे नियम यह भी हैं कि अदालत में गवाहों के ब्यान के दौरान संबंधित विभाग का कोई कर्मचारी मौजूद नहीं रहेगा लेकिन राजस्व न्यायालय में एैसा नहीं होता हैं।
राजस्व न्यायालय के आदेष में मामले से संबंधित पक्ष एवं विपक्ष के अधिवक्ता का नाम तक नहीं लिखा जाता हैं। खनिज निरीक्षक अपने बनाए गए मामलों के गवाहों को स्वयं प्रस्तुत करता हैं, मुख्य परीक्षण लिखवाता हैं एवं बचाव साक्षीगण का प्रतिपरीक्षण करता हैं। राजस्व न्याय व्यवस्था में इसे ऋजु विचारण समझा जाता हैं, इस प्रक्रिया में किसी को कुछ भी गलत नजर नहीं आता हैं।