आदिवासी नेतृत्व रोकने राजस्थान में दुश्मन बने दोस्त, भाजपा ने कांग्रेस से हाथ मिलाकर बनाया जिला प्रमुख
राजस्थान/मध्य प्रदेश। गोंडवाना समय।
सत्ता का सुख और उसका स्वाद चखने के लिये सिद्धांत, उद्देश्य, नीति-नियम सब दफन हो जाते है अर्थात स्वार्थ की राजनीति में सब कुछ संभव है। सत्ता प्राप्त करने के लिये सियासी दुश्मन मौका मिलते ही कब एक दूसरे के साथ गले में हाथ डालकर दोस्त बन जाये इसमें कतई देर नहीं लगाते। देश सर्वाधिक जनसंख्या वाला मूलनिवासी आदिवासी को नेतृत्व या प्रतिनिधित्व करने से रोकने के लिये देश की राजनीति में राजस्थान के डूंगरपुर जिले में भारतीय ट्राईबल पार्टी को रोकते हुये दो राजनीतिक विरोधी भाजपा कांग्रेस एक होकर याराना निभाते हुये गठबंधन का करार कर लिया है। वहीं डुंगरपुर में भाजपा कांग्रेस में गठबंधन होने के बाद आदिवासियों में सोशल मीडिया में इस गठबंधन को अत्याधिक नाराजगी भरे स्वरूप में देखा जा रहा है। मध्य प्रदेश सहित पूरे देश में आदिवासी समुदाय के लोग सोशल मीडिया में भाजपा कांग्रेस को एक बताते हुये दोनों को आदिवासी नेतृत्व को स्वीकार नहीं करने वाला राजनैतिक दल बता रहे है।
कांग्रेस ने समर्थन देकर बनवा दिया भाजपा का जिला प्रमुख
बीते दिनों ही सम्पन्न हुए राजस्थान पंचायतीराज चुनाव 2020 में डूंगरपुर जिला प्रमुख बनाने के लिए भाजपा कांग्रेस ने गठबंधन कर लिया है। भाजपा समर्थित प्रत्याशी डूंगरपुर का नया जिला प्रमुख बन गया है। बता दें कि डूंगरपुर जिला परिषद सदस्यों के चुनाव में 27 में से 13 सदस्य बीटीपी समर्थित सदस्य जीते। जबकि भाजपा के 8 और कांग्रेस 6 सदस्य जीतकर आए। यानी डूंगरपुर जिला प्रमुख बनाने के लिए बीटी पी, भाजपा और कांग्रेस में से किसी के पास बहुमत का आंकड़ा 14 सदस्य नहीं थे। ऐसे में बीटीपी को लग रहा था कि वह कांग्रेस के समर्थन से अपना जिला प्रमुख बनाने में सफल हो जाएगी, मगर भाजपा और कांग्रेस ने हाथ मिलाकर भाजपा समर्थित जिला प्रमुख बनाया है।
भाजपा कांग्रेस पर लगाया आरोप, अशोक गहलोत सरकार से समर्थन वापस लेगी बीटीपी
डूंगरपुर जिला प्रमुख बनाने के लिए कांग्रेस व भाजपा के गठबंधन पर बीटीपी ने गहरी नाराजगी जताई और गहलोत सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। भारतीय ट्राइबल पार्टी के संस्थापक छोटूभाई वसावा ने इस संबंध में ट्विटर हैंडल पर लिखा कि भाजपा-कांग्रेस एक है। इसलिये बीटीपी राजस्थान सरकार से समर्थन वापस लेगी।' वहीं बीटीपी के दोनों विधायकों राजकुमार रोत व रामप्रसाद ने शुक्रवार को राष्ट्रीय अध्यक्ष और गुजरात के विधायक महेश वसावा से समर्थन वापसी की अधिकारिक घोषणा करने के लिए कहा था, इस पर पार्टी नेतृत्व ने गहलोत सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
डूंगरपुर जिले में जिला परिषद सदस्यों के चुनाव में बीटीपी को बहुमत मिला था
आदिवासी डूंगरपुर जिले में जिला परिषद सदस्यों के चुनाव में बीटीपी को बहुमत मिला था लेकिन बीटीपी का जिला प्रमुख बनने से रोकने के लिए कांग्रेस और भााजपा दोनों ने हाथ मिला लिया। इस कारण बीटीपी का जिला प्रमुख नहीं बन सका और भाजपा ने अपना जिला प्रमुख बना लिया। यहां 27 सदस्यीय जिला परिषद में बीटीपी के 13 सदस्य जीते थे। बहुमत के लिए एक सदस्य की जरूरत थी लेकिन बीटीपी का आदिवासी इलाकों में बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए एक-दूसरे की विरोधी कांग्रेस और भाजपा साथ आ गई। आठ सदस्य जीतने के बावजूद भाजपा का जिला प्रमुख की सीट पर कब्जा हो गया, कांग्रेस ने उसे समर्थन दिया।
भारतीय ट्राईबल पार्टी के बढ़ते जनाधार से घबराई भाजपा-कांग्रेस
उल्लेखनीय है कि बीटीपी का राजस्थान के गुजरात से सटे आदिवासी जिलों में पिछले दो-तीन सालों में प्रभाव बढ़ा है। पहली ही बार में दो विधायक बनने के साथ ही छात्रसंघ चुनाव में अच्छी सफलता मिली और अब पंचायत चुनाव में बीटीपी को आदिवासियों का समर्थन मिला। बीटीपी के आदिवासियों में बढ़ते प्रभाव से कांग्रेस और भाजपा दोनों ही परेशान है। विशेषकर कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक आदिवासियों में बीटीपी ने सेंध लगाई है। वहीं राज्य में बीटीपी के दो विधायक हैं जिन्होंने गहलोत सरकार पर संकट के समय और राज्यसभा चुनाव के समय कांग्रेस का साथ दिया था। डूंगरपुर जिला परिषद में 27 में से 13 बीटीपी समर्थक जीते, भाजपा के आठ और कांग्रेस के छह प्रत्याशी जीते, इसके बावजूद प्रधान के चुनाव में भाजपा की सूयार्देवी अहारी ने निर्दलीय के रूप में पर्चा भरा और एक वोट से जीत गयीं। बीटीपी के नेताओं ने आरोप लगाया है कि इन दोनों पार्टियों की मिलीभगत' के चलते वह केवल चार जगह प्रधान बना पाई। वहीं इन पार्टियों का का रवैया लोकतंत्र की हत्या करने वाला है और बीटीपी इन दोनों से ही दूरी रखकर आदिवासी लोगों की आवाज उठाती रहेगी।