संस्कृति परंपरा समाप्त हो जाएगी और आदिवासी समुदाय बेरोजगार हो जाएगा
जल, जंगल, जमीन के बिना आदिवासी समुदाय बिन पानी के मछली जैसा
बदनावर। गोंडवाना समय।
हॉल ही में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वनों को प्राइवेट संस्थाओं के हाथों में (पीपीपी मोड पर) दिए जाने हेतु आदेश प्रसारित किए गए हैं। जिससे वनों में रहने वाले आदिवासियों के ऊपर रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा। ज्ञात हो कि अधिकांश आदिवास समुदाय द्वारा जंगलों में रहकर जंगल में उपजने वाली फल फूल कन्दराओं, लकड़ी, पेड़ो के पत्ते,जड़ी, बूटी आदि बेचकर जीवन यापन किया जाता है । अगर मध्य प्रदेश सरकार वनों जंगलों को प्राइवेट संस्थाओं के हाथों में देती है तो आदिवासी समुदाय को भूखे मरने की नौबत आ जाएगी। साथ ही जंगलों का निजीकरण होने से आदिवासियों की संस्कृति, जल, जंगल, जमीन जो कि आदिवासियों की धड़कन है जिससे आदिवासियों को विशेष लगाव है।
वनों के निजीकरण के विरोध में प्रदेश जयस के नेतृत्व में बदनावर जयस ने सौपा ज्ञापन
मध्य प्रदेश सरकार के निजी करण के निर्णय से उनकी संस्कृति परंपरा समाप्त हो जाएगी और आदिवासी समुदाय बेरोजगार हो जाएगा। मध्य प्रदेश सरकार के वनों के निजी करण के फैसले के विरुद्ध प्रदेश जयस के नेतृत्व में बदनावर जयस द्वारा महामहिम राज्यपाल के नाम से अनुभाग अधिकारी राजस्व बदनावर वीरेंद्र सिंह कटारा को ज्ञापन सौंपकर वनों के निजी करण के मध्यप्रदेश सरकार के फैसले को निरस्त करने की मांग की गई। इस अवसर पर बदनावर जयस संरक्षक सन्तोष मुनिया, मीडिया प्रभारी कन्हैया गिरवाल, दिनेश चंद्र डावर , विक्रम भाभर अमरसिंह सिंगाड, लक्ष्मण महावी, संजय मकवाना राहुल डावर, दिलीप भूरिया, रवि कुमार डावर, धर्मेन्द्र कटारा, ओंकार लाल भाभर, बुआर सिंह मकवाना, मनोहर गरवाल,विशाल मुनिया, राकेश भूरिया,अंकित राज वसुनीया राजेश गरवाल, सहित समस्त आदिवासी समाज के लोग उपस्थित थे उक्त जानकारी प्रेस मीडिया प्रभारी रवि मसानिया द्वारा दी गई।