स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मंशु ओझा के कारण, हमेशा रहेगा ओझा जनजाति का सर गर्व से ऊँचा
भारत देश की आजादी में ओझा जनजाति का रहा महत्वपूर्ण योगदान
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मंशु ओझा का जीवन परिचय
आजादी में जनजातियों का रहा सर्वप्रथम व अग्रणी योगदान
इस कार्यवाही से जनसमूह सड़कों पर उतरकर आ गया। देश भर में हड़ताल, प्रदर्शन व सभाओं का आयोजन हुआ। दिल्ली ओर मुम्बई जैसे बड़े-बड़े शहरों में नगर, तहसील व ग्राम में जनता संगठित होकर आंदोलन को शुरू कर दिया। सरकार ने आंदोलन को समाप्त करने के लिये गोलियां चलाई, लाठी चार्ज किया और हजारों की संख्या में गिरफ्तारियां हुई। मध्य प्रदेश में सागर, जबलपुर, मंडला, बैतूल रियासतों में कई जगह आन्दोलन ने उग्र रूप ले लिया। वर्ष 1942 में आजादी की चिंगारी एक ज्वाला के रूप में पूरे भारत देश में फैल चुकी थी। इस आजादी की चिंगारी में देश के कई हजारों आदिवासी गोंड, कोरकू, ओझा, बैगा,परधान, भील, भिलाला, मुण्डा, मुआसी आदि जनजातियों के लोगो ने भी आंदोलन में भाग लिया।
रेल की पटरी उखाड़ा, बिजली के तार काटकर, जला दिया था लकड़ी डिपो
वर्ष 1942 के यहा आंदोलन में कई आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने मिलकर बैतूल जिला के घोड़ाडोंगरी क्षेत्र में रेल की पटरी उखाड़ने ओर पुल बोगदा को नुकसान पहुंचाते हुए बिजली के तार को काटते हुए घोड़ाडोंगरी में लकड़ी का डिपो जला दिया। इस आन्दोलन में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मंशु ओझा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की टुकडियो में ओझा समाज का बाना ढाक को बजाकर देश भक्ति गीत गाते हुए सभी साथियों का हौसला बढ़ाते हुए स्वयं भी आगे आगे चलकर आंदोलन में भाग लेते थे। इन्होने भारत देश की मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने में आजादी के लिये संघर्ष करते हुए बैतूल जिला में कई आंदोलनों में भाग लिया।
बैतूल जिला में बड़े पैमाने पर हुई गिरफतारी
जिसके कारण बैतूल जिला में भी बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुई। इस गिरफ्तारी में श्री मंशु ओझा पिता उमराव ओझा रातामाटी, श्री डोमा गोंड पिता फगना गोंड रातामाटी, श्री मग्गू गोंड पिता जुगलबंदी गोंड रातामाटी, श्री मान सिंह पिता मंजलु उइके महेन्द्रवाडी, श्री लक्ष्मण गोंड पिता गोरा गोंड सड़कवाला, श्री लाट प्रधान पिता देवी प्रधान रातामाटी, श्री विष्णु गोंड पिता मंगता गोंड रातामाटी से कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को 04-11-1942 को गिरफ्तार कर लिया गया ओर बैतूल जेल में रखा गया।
नागपूर एवं नरसिंहपुर किया स्थानांतरित
गिरफ्तार स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की संख्या अधिक होने के कारण बहुत से बंदियों को नागपुर एवं नरसिंहपुर जेल स्थानांतरित कर दिया 04-11-1942 से 20-07-1944 तक कठिनाईयाँ झेलते हुए। अंग्रेजी सरकार की यातनाये सहते हुए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मंशु ओझा पिता उमराव ओझा नरसिंहपुर जेल में कारावास की सजा भुगते। देश के मूलनिवासी आदिवासी ने भी अपने प्राणों की बाजी लगाकर भारत देश को आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मंशु ओझा के कारण ही आज ओझा जाति का सर गर्व से ऊॅचा हुआ है। भारत देश की आजादी में ओझा जनजाति का भी योगदान रहा है।
घोड़ाडोंगरी में आज भी मंशु उमराव ओझा का नाम है अंकित
मध्य प्रदेश स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जिला व केन्द्रीय सम्मान निधि नियम 1972 नियम 2, 3 के अंर्तगत घोषित स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सूची में दर्ज है। स्वतंत्रता के पच्चीसवें वर्ष के अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान के लिए राष्ट्र की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने 15 अगस्त 1972 को ताम्रपात्र मंशु ओझा पिता उमराव ओझा को भेट किया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्मारक घोड़ाडोंगरी में आज भी मंशु उमराव ओझा का नाम अंकित है। इनका स्वर्गवास देश की आजादी के बाद घोड़ाडोंगरी जिला बैतूल में दिनांक-28-08-1981 को हुआ।