सगाजनों में उन बेटियों को अपनी कलम समर्पित करती हूँ, जिन्हें हीन भावना से देखा जाता है
लेखिका-वैशाली धुर्वे
प्रदेश अध्यक्ष जीएसयू,
सांस्कृतिक प्रकोष्ठ मध्यप्रदेश
सगाजनों में उन बेटियों को अपनी कलम समर्पित करती हूँ, जिन्हें हीन भावना से देखा जाता है। जन्म देने से पूर्व या जन्म देने के कुछ क्षण पश्चात मार दिया जाता है।
मैं उन सम्मानित माता पिता के लिये छोटा सा संदेश देने का प्रयास कर रही हूँ जिन्होंने हमें जन्म दिया है, जिस घर में बेटे मात्र जन्म लेते है या सिर्फ बेटियां ही जन्म ले रही है वह परिवार सौभाग्यशाली है। वे सभी माता-पिता गर्व महसूस करें क्योंकि आज के दौर में कठिन से कठिन रास्ते में बेटियां हर कोशिश कदमताल कर रही है।
वैश्विक महामारी में बेटियां निभा रही मुख्य भूमिका
वर्तमान में वैश्विक महामारी कोरोना वायरस संक्रमण से पूरी दुनिया हैरान है। इस वैश्विक महामारी के चलते आपकी बेटियों ने अपने परिवार समाज व देश की सुरक्षा में साथ दिया है।अनगिनत समस्याओं से गुजर कर आज भी बेटियां जन्म देने वाले माता-पिता के साथ आर्थिक व्यवस्था को मजबूत करने में कंधे से कंधे मिलाकर सहयोग कर रही हैं।
माता-पिता के अंतर्मन मे आत्मविश्वास देखना चाहते हैं
वहीं जिस घर में सिर्फ बेटियां जन्म लेती हैं, वे बेटा बनकर माता-पिता का सहयोग करती हैं। ठीक उसी प्रकार बेटे भी जन्म लेते है और बेटियों की तरह वे भी अपने माता-पिता का सहयोग करते है। कार्य कठिन हो या सरल आसान, उन्हें पूरा करने की कोशिश में आर्थिक व्यवस्था की स्तर को भांपते हुये आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिये भरपूर सहयोग करती हैं और करते भी रहेंगे, क्योकि बेटे और बेटियां दोनो ही अपने माता-पिता के चेहरे मे चिंता की लकीरे देखना पसंद नही करते हैं बल्कि माता-पिता के अंतर्मन मे आत्मविश्वास देखना चाहते हैं। जिसके बलबूते उनके बच्चे बड़े से बड़े कार्य हसतें हुए कर लेते हैं।
पढ़ी-लिखी बेटा और बेटियों की सबसे बड़ी भूमिका है
हमे जन्म देने वाले माता-पिता को हम धन्यवाद देना चाहते है कि स्वयं अनेकानेक कष्ट सहकर, हमे इस सुंदर प्रकृति में जन्म दिये है। गांवों और कस्बों में जहां घर के चिराग के रूप में बेटे और बेटियों की चाहत की परंपरा जीवित है, वहीं बेटियों की जीवन में एक खुशनुमा सच है।
जहाँ बेटियों के लिए अच्छी से अच्छी शिक्षा, अच्छा से अच्छा माहौल, ढेर सारा प्यार देकर उन्हें बुलंदीयों की चौखट पार कर रही हैं। ये सोच अगर यहां तक पहुंची है, तो इसके पीछे पढ़ी-लिखी बेटा और बेटियों की सबसे बड़ी भूमिका है।
लेखिका-वैशाली धुर्वे
प्रदेश अध्यक्ष जीएसयू,
सांस्कृतिक प्रकोष्ठ मध्यप्रदेश