मजदूर आखिर कब जागेंगे, मजदूरी या मजबूरी, ये सबक होगा या यही गलती फिर होगी ?
देश भर के मजदूर भाइयों को सादर समर्पित लेखजयपाल सिंह कड़ोपे
साथियों सेवा जोहार,
आज मैं इन्हीं उपरोक्त बिंदुओं पर बात करूंगा और इनका क्या अच्छा समाधान हो सकता है वह बात भी करेंगे। क्योंकि औरंगाबाद हो औरैया हो या सोनभद्र व देश के तमाम हिस्सों में आये दिन होने वाले ऐसे हादसों को देखकर हमें मर्मांतक पीड़ा होती है। उस पर हम कितना ही अफसोस जाहिर करें उससे हमारे बहुजन लोग और बहुजन मजदूरों की समस्याओं का समाधान नहीं होने वाला है।
जब तक हम समाधान का रास्ता नहीं निकालेंगे तब तक हमारे साथ बार-बार यही होते रहेगा। और हम कुत्ते बिल्ली और जानवरों से भी बदतर जीवन जीने और जिल्लते झेलने के लिए मजबूर होते रहेंगे और दो-चार दिन सरकारों को कोस कास कर अफसोस जाहिर कर ऐसी घटनाओं को भूलकर अगली घटनाओं का इंतजार करते रहेंगे और अगली घटना में फिर वही दो-चार दिन अफसोस जाहिर कर सरकार को कोसकर फिर लंबी खामोशी......। अभी लगभग यही हमारी नियति बन चुकी है। इतिहास पर नजर डालें तो ना ही ये कोई प्रथम घटना है और ना ही यह कोई अंतिम घटना साबित होगी।
जब तक हम समाधान का रास्ता नहीं निकालेंगे तब तक हमारे साथ बार-बार यही होते रहेगा। और हम कुत्ते बिल्ली और जानवरों से भी बदतर जीवन जीने और जिल्लते झेलने के लिए मजबूर होते रहेंगे और दो-चार दिन सरकारों को कोस कास कर अफसोस जाहिर कर ऐसी घटनाओं को भूलकर अगली घटनाओं का इंतजार करते रहेंगे और अगली घटना में फिर वही दो-चार दिन अफसोस जाहिर कर सरकार को कोसकर फिर लंबी खामोशी......। अभी लगभग यही हमारी नियति बन चुकी है। इतिहास पर नजर डालें तो ना ही ये कोई प्रथम घटना है और ना ही यह कोई अंतिम घटना साबित होगी।
पर मिला तो केवल सूखी रोटी और अंत में मौत ?
जिन रेल पटरियों ने मजदूरों की जान ली उन रेल पटरियों को ऐसे ही किसी मजदूर भाई ने ही बिछाया होगा। जिन हाईवे पर चलते-चलते सैकड़ो मजदूरों की जान चले गई उन हाइवे को किसी मजदूर भाइयों ने ही बनाया होगा। जो रेल की पटरियां और हाईवे आज देश की धड़कन है। जो ना हो तो पूरा देश का विकास ठप्प हो जाएगा।
जब वो इनका निर्माण कर रहे थे तब उन्होंने ये कभी नहीं सोचा होगा कि ये हमारे लिए एक दिन जानलेवा साबित होंगी। जबकि बनाते समय वो जरूर इतना तो सोचे होंगे कि हमें भी एक दिन इसका सुख अवश्य मिलेगा। पर मिला तो केवल सूखी रोटी और अंत में मौत ?
जब वो इनका निर्माण कर रहे थे तब उन्होंने ये कभी नहीं सोचा होगा कि ये हमारे लिए एक दिन जानलेवा साबित होंगी। जबकि बनाते समय वो जरूर इतना तो सोचे होंगे कि हमें भी एक दिन इसका सुख अवश्य मिलेगा। पर मिला तो केवल सूखी रोटी और अंत में मौत ?
गरीब मजदूरों के वोटो से सत्ता हासिल किए हैं वो कहां से कहां पहुंच गए ?
जबकि उनको बनवाने वाले ठेकेदार और उस निर्माण की ठेका देने वाले सत्ता में बैठे नेता जो ऐसे ही गरीब मजदूरों के वोटो से सत्ता हासिल किए हैं वो कहां से कहां पहुंच गए ? उन्ही पटरियों में यह लोग एसी क्लास से नीचे पैर नहीं रखते और उन्हीं हाईवे में महंगी गाड़ियों से नीचे बात नहीं करते।
यह अभी इस कोविड-19 महामारी में देखने को भी मिला कि सभी पैसे वालों के बच्चे राजस्थान कोटा से बसों में भरकर देश के विभिन्न राज्यों के गंतव्यों तक पहुंचाया गया। कहीं भी किसी बच्चे को पैदल जाते हुए नहीं देखा गया और विदेश में फंसे हुए नेता मंत्री और संपन्न वर्ग के लोगों के परिवारजनों को हवाई जहाजों से भरकर लाया गया, नमस्ते ट्रंप करवाया गया जो सबसे बड़े कोरोना वाहक के करण बने। इसी दौरान भारत में फंसे विदेशी लोगों को विदेशों में पहुंचाया गया।
यह अभी इस कोविड-19 महामारी में देखने को भी मिला कि सभी पैसे वालों के बच्चे राजस्थान कोटा से बसों में भरकर देश के विभिन्न राज्यों के गंतव्यों तक पहुंचाया गया। कहीं भी किसी बच्चे को पैदल जाते हुए नहीं देखा गया और विदेश में फंसे हुए नेता मंत्री और संपन्न वर्ग के लोगों के परिवारजनों को हवाई जहाजों से भरकर लाया गया, नमस्ते ट्रंप करवाया गया जो सबसे बड़े कोरोना वाहक के करण बने। इसी दौरान भारत में फंसे विदेशी लोगों को विदेशों में पहुंचाया गया।
हां वह दोगला भी है और पत्थर दिल भी है यह साबित हो चुका है
वहीं मजदूर और मजदूरों के बच्चों को पैदल जाते हुए उनकी दिल दहलाने वाली तकलीफों को देखकर उनके छोटे-छोटे बच्चों को रोते हुए देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं रूह कांप जाती है। लगता है क्या ये हमारे देश के नागरिक नहीं हैं क्या? मंगोलिया, नेपाल, भूटान, श्रीलंका को हजारों करोड़ रुपये की सहायता देने वाला देश क्या हमारे देश के इन असली देशभक्तों के लिए इतना निष्ठुर हो चुका है? फिर भी किसी का दिल नहीं पसीजा? क्या इंसान इतना दोगला और पत्थर दिल हो सकता है? हां वह दोगला भी है और पत्थर दिल भी है यह साबित हो चुका है।
उनको लाकडाउन से पहले एक सप्ताह का समय देकर अपने अपने घर जाने देते
वास्तव में यदि इन्हे चिंता होती तो सबसे पहले करोड़ों मजदूर जो पूरे देश में फंसे है। उनको लाकडाउन से पहले एक सप्ताह का समय देकर अपने अपने घर जाने देते। जैसे अभी कर रहे हैं जब कोरोना फैल चुका है। जैसे इन्होंने उच्च वर्ग का ध्यान रखा वैसे ही मजदूरों का ध्यान रखते तो किसी को भी कोई परेशानी नहीं होती। उसमें ना तो सरकार को एक रुपया लगता और ना ही मजदूर ऐसे बेमौत मारे जाते और ना ही हजारों किलोमीटर उन्हें पैदल चलना पड़ता। यदि मजदूरों को रोका गया था तो उनके लिए जरुरी रुकने की व्यवस्था खाने की व्यवस्था करते तब भी मजदूरों को जरा भी परेशानी नहीं होती।
आज इन मजदूरों में संक्रमण का खतरा बेवजह सबसे ज्यादा हो चुका है
आज इन मजदूरों में संक्रमण का खतरा बेवजह सबसे ज्यादा हो चुका है क्योंकि ये भारी मुसीबत और परेशानी के बीच जिन्हें दोनों तरफ मौत नजर आ रही है। ऐसे में अपनों के बीच जाकर मरना ज्यादा उचित लगेगा। घर पहुंच गए तो जिंदा रहने के अवसर ज्यादा रहेंगे।
इस आपाधापी में जिन्हें घर पहुंचने की कोई गारंटी नजर ना आ रही हो, उनके लिए लॉकडाउन के सभी नियमों का पालन करना कहां तक मुमकिन होगा। इस दौरान वो कई जगह पहले जाने के चक्कर में एक दूसरे से टकरायेंगे और टच होंगे, कई जगहों पर एक दूसरे के छुए हैंडलों को छुएंगे और बेवजह संक्रमण के जद में आएंगे।
इस आपाधापी में जिन्हें घर पहुंचने की कोई गारंटी नजर ना आ रही हो, उनके लिए लॉकडाउन के सभी नियमों का पालन करना कहां तक मुमकिन होगा। इस दौरान वो कई जगह पहले जाने के चक्कर में एक दूसरे से टकरायेंगे और टच होंगे, कई जगहों पर एक दूसरे के छुए हैंडलों को छुएंगे और बेवजह संक्रमण के जद में आएंगे।
आने वाले समय में इससे भी भयानक पुनरावृत्ति हो सकती है
हममें से बहुत सारे लोग हैं यह भी सोच रहे होंगे कि मजदूर इतनी परेशानियों के बाद में अब कभी शहरों की ओर वापस नहीं लौटेंगे। हम यहां पूरी तरह गलत हो सकते है। देश में सभी क्षेत्रों के मजदूरों को मिलाकर लगभग 40 करोड़ मजदूर होंगे या इससे ज्यादा भी हो सकते हैं। यह मजदूर अपने घरों में रुककर भी क्या करेंगे। उन्हें वापस मजबूरी में उसी दलदल में फिर आना पड़ेगा यह सच्चाई है।
सबसे बड़ा प्रश्न कि जिन राज्यों से जो मजदूर बाहर गए हैं वो क्यों गए हैं? उसका सीधा सा कारण है कि वहां की राज्य सरकारों ने बहुत से लोक लुभावन चुनावी वायदों में ठगकर उनके लिए रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं किए है। इसीलिए उन्हें मजबूरी में बाहर काम करने जाना पड़ा है।
यदि राज्य सरकारें उनके लिए उनके जिलों में रोजगार उपलब्ध करवाती तो उन्हें बाहर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। यह मजदूर इतनी जानलेवा यातनाएं भुगतने के बाद भी अब कोई सबक नहीं सीखते हैं, तो यह तय है कि इसकी पुनरावृत्ति होगी और आने वाले समय में इससे भी भयानक पुनरावृत्ति हो सकती है।
सबसे बड़ा प्रश्न कि जिन राज्यों से जो मजदूर बाहर गए हैं वो क्यों गए हैं? उसका सीधा सा कारण है कि वहां की राज्य सरकारों ने बहुत से लोक लुभावन चुनावी वायदों में ठगकर उनके लिए रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं किए है। इसीलिए उन्हें मजबूरी में बाहर काम करने जाना पड़ा है।
यदि राज्य सरकारें उनके लिए उनके जिलों में रोजगार उपलब्ध करवाती तो उन्हें बाहर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। यह मजदूर इतनी जानलेवा यातनाएं भुगतने के बाद भी अब कोई सबक नहीं सीखते हैं, तो यह तय है कि इसकी पुनरावृत्ति होगी और आने वाले समय में इससे भी भयानक पुनरावृत्ति हो सकती है।
या यही गलती फिर करेंगे ?
यह वायरस आज नहीं कल चला जाएगा,
पर इस जानलेवा वायरस से क्या सबक सीखें,
या यही गलती फिर करेंगे?
या मजदूरी मजबूरी बनी रहेगी?
या मजदूर वर्ग कभी जागेगा?
सोचें आज यदि यही मजदूर संगठित हो जाते हैं
इसी निष्कर्ष पर हम इस लेख के माध्यम से अंत में पहुंचना चाहेंगे। सोचें आज यदि यही मजदूर संगठित हो जाते हैं और एक राष्ट्रीय स्तर की रजिस्टर्ड संगठन या एसोसिएशन बना लेते हैं, फिर देखिए इनकी ताकत। इसकी शुरूआत ये किसी भी राज्य या किसी भी जिले से आसानी से कर सकते हैं।
1. पूरे देश में मजदूरों का एक संगठन या एसोसिएशन हो।
2. हर राज्य में संगठन का राज्य शाखा हो। और उस राज्य के सारे जिला ईकाई उस राज्य शाखा से जुड़े, हर जिले में जिला इकाई शाखा हो।
3. हर मजदूर कहीं भी मजदूरी करने जाने से पहले अपने जिला इकाई से अनिवार्य रूप से जुड़कर सदस्यता लें।
4. मजदूरों को अपने ही राज्य या अन्य राज्यों में मजदूरी करने जाना है वो सब पहले जिला इकाई के माध्यम से ही जाएं।
5. जिन मजदूरों को दूसरे राज्यों में मजदूरी करने जाना है, वो अपने राज्य संगठन के माध्यम से जाएंगे।
6. राज्य संगठन दूसरे राज्यों के मांग के आधार पर संगठन के नियम और शर्तें के आधार पर मजदूरों को भेजेंगे।
7. एसोसिएशन या संगठन पूरे राष्ट्रीय स्तर पर यह तय करेगा की उनकी मजदूरी कितनी होनी चाहिए।
8. उनका पी एफ फंड अनिवार्यत: कटकर उनके भविष्य निधि फंड में जमा होगा।
9. उनका इंश्योरेंस अनिवार्य रूप से होगा।
10. दुर्घटना बीमा अलग से अनिवार्य रूप से होगा।
11. उनकी आने-जाने की व्यवस्था जिस कंपनी में काम करने जाएंगे वह कंपनी करेगी।
12. आने जाने के दौरान खाना पानी की व्यवस्था जिस कंपनी में जा रहे हैं वह कंपनी करेगी।
13. एसोसिएशन संचालन के लिए हर मजदूर का 2 से 4% या जो भी डिसाइड हो वह एसोसिएशन को अंशदान के रूप में उसके तनख्वाह से स्वत: ही कटकर आएगा। यह सब मुख्य मुख्य बिंदु है इनमें और भी जरूरी बिंदु जो छूट गए हैं वह सब जोड़ सकते हैं। जब सारे मजदूर संगठित होकर एक हो जाएंगे तो कोई भी कंपनी एक भी मजदूर को अलग से नहीं लेकर जा पाएगा और ना ही कोई मजदूर ऐसे बेमौत मरने के लिए अकेले जाएगा।
वैसे ही मजदूर एक हो गए तो जब चाहेंगे तब पूरे देश को बैठा कर रख देंगे
आज देश में जितने भी कल कारखाने उद्योग धंधे हैं, चाहे वो सरकारी या प्राइवेट हो सब में स्थाई कर्मचारी जितने हैं, उसके तिगुने चौगुने ठेका मजदूर काम कर रहे हैं। वो भी छोटे-छोटे लोकल ठेकेदारों के माध्यम से जो कभी भी निकाल देते हैं कभी भी बुला लेते हैं।
मजदूर हर समय काम जाने के भय में कुछ बोल पाते ना कुछ कर पाते हैं। आज ये मजदूर संगठित होकर एक हो जाएं तो देश के कोई भी कल कारखाने उद्योग धंधे चल ही नहीं पाएंगे। जैसे आज कोविड-19 कोरोना वायरस ने पूरे देश को बैठा कर रख दिया है। वैसे ही मजदूर एक हो गए तो जब चाहेंगे तब पूरे देश को बैठा कर रख देंगे।
जब मजदूर एक हो जाएंगे तब मजदूरों के हित में बहुत से सरकारी नीतियां भी बनेंगे। उनके हित में बहुत सारे अच्छे फैसले होंगे। मजदूरों का संगठित होना असंभव नहीं बहुत आसान है। बस कहीं से भी एक सार्थक पहल की जरूरत है।
अभी एक बंधुआ मजदूर की तरह उनका शोषण कंपनी और ठेकेदार मिलकर दोनों करते हैं। यदि मजदूर मिलकर ऐसा कर लेते हैं तो उनके आर्थिक जीवन ही नहीं उनके पारिवारिक जीवन, बच्चों का अच्छा भविष्य बना पाएंगे, सामाजिक जीवन के तरफ ध्यान दे पाएंगे, राजनीतिक जीवन में भी बहुत बड़ा बदलाव आएगा। सभी में एक निश्चित ही आमूलचूल परिवर्तन आएगा।
सेवा जोहार, मजदूर हर समय काम जाने के भय में कुछ बोल पाते ना कुछ कर पाते हैं। आज ये मजदूर संगठित होकर एक हो जाएं तो देश के कोई भी कल कारखाने उद्योग धंधे चल ही नहीं पाएंगे। जैसे आज कोविड-19 कोरोना वायरस ने पूरे देश को बैठा कर रख दिया है। वैसे ही मजदूर एक हो गए तो जब चाहेंगे तब पूरे देश को बैठा कर रख देंगे।
जब मजदूर एक हो जाएंगे तब मजदूरों के हित में बहुत से सरकारी नीतियां भी बनेंगे। उनके हित में बहुत सारे अच्छे फैसले होंगे। मजदूरों का संगठित होना असंभव नहीं बहुत आसान है। बस कहीं से भी एक सार्थक पहल की जरूरत है।
अभी एक बंधुआ मजदूर की तरह उनका शोषण कंपनी और ठेकेदार मिलकर दोनों करते हैं। यदि मजदूर मिलकर ऐसा कर लेते हैं तो उनके आर्थिक जीवन ही नहीं उनके पारिवारिक जीवन, बच्चों का अच्छा भविष्य बना पाएंगे, सामाजिक जीवन के तरफ ध्यान दे पाएंगे, राजनीतिक जीवन में भी बहुत बड़ा बदलाव आएगा। सभी में एक निश्चित ही आमूलचूल परिवर्तन आएगा।
जयपाल सिंह कड़ोपे भोपाल
7000405768