सूतक बनाम लाक डाउन
लेखक-गुलजार सिंह मरकाम,राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना
समग्र क्रांति आंदोलन।
काश ! यदि कथित बुद्धिजीवी जनजातियों ज्ञान के जन्म और मृत्यु के सूतक परंपरा (बाडी डिस्टेंस, खान-पान) को समझ कर उसकी सीख को गंभीरता से लेते तो शायद इस तरह बार बार अपील दर अपील करने की आवश्यकता नहीं होती। लोग परंपरागत तरीके से अपने आप को स्वयं सुरक्षित कर लेते। उदाहरण स्वरुप किसी बच्चे के जन्म के लिए सोनियारी (नर्स दायी) के अतिरिक्त कम से कम तीन दिन तक प्रसूता से कोई संपर्क नहीं करता, उसके खान-पान की अतिरिक्त व्यवस्था की जाती है।
वर्तमान संक्रमण के लिए आईना दिखा सकती है
तीन दिन बाद प्रसूता का कोरेंटाईन टाईम समाप्त होता है। फिर इसके बाद उस घर को छ: दिन तक के लिए ग्राम वासी खान पान से डिस्टेंस बनाकर रखते हैं। तत्पश्चात नौ (पुत्री) और दस दिन (पुत्र) की स्थिति में ग्राम समुदाय का डिस्टेंशन समाप्त होकर अन्य गांव में मौजूद रिस्तेदारो को आमंत्रित कर सोसल डिस्टेंशन को समाप्त किया जाता है। यह लाकडाउन परंपरा शायद प्रसूता के संक्रमण या सुरक्षा से या जिस भी कारण से जुड़ा हो पर वर्तमान संक्रमण के लिए आईना दिखा सकती है।मृत्यु संस्कार के समय भी कम से कम उस घर को कोरेंटाईन कर दिया जाता है
कुछ इसी तरह मृत्यु संस्कार के समय भी कम से कम उस घर को कोरेंटाईन कर दिया जाता है। घर में खाना पीना बनाना निषेध होता है। ऐसे मौके पर सामाजिक सहयोग के रूप में गांव के नातेदार या पड़ोसी के द्वारा तीन दिन तक पीड़ित परिवार की अपने घर से बना भोजन कराया जाता है। तीन दिन के बाद पीड़ित घर का लाकडाउन समाप्त होता है। तत्पश्चात नौ (महिला) दस दिन (पुरूष) का क्रियाक्रम संस्कार करते हुए उस ग्राम का सोसल डिस्टेंशन तथा लाकडाउन समाप्त होता है। व्यवस्था पुन: सामान्य दिनों की भांति चलने लगती है। है ना कुछ सीखने सिखाने को आदिवासी के पास ! यह लेख संक्रमण (viras),देह दूरी (body distence), सोसल डिस्टेंशन और लाक डाउन की समझ को बढ़ाने और उसमें परंपरागत ज्ञान की भूमिका को प्रदर्शित करने का प्रयास मात्र है।लेखक-गुलजार सिंह मरकाम,
राष्ट्रीय संयोजक गोंडवाना
समग्र क्रांति आंदोलन।