शिवराज सरकार में आदिवासी युवक को थाना में पुलिस ने पिलाई पेशाब
बेरहमी से किया पिटाई, फिर मानव मूत्र पिलाकर ही मानी पुलिस
माता पिता को बोली पुलिस मर जायेगा तो दूसरा पैदा कर लेना
कड़वी कलम
संपादक विवेक डेहरिया
दैनिक गोंडवाना समय
हालांकि यह कोई नई बात नहीं है आदिवासी समाज के साथ इस तरह की घटनायें घटने की, इसका प्रयोग अन्याय-अत्याचार करने वाले अधिकांशतय: आदिवासी समाज पर ही आजमाते है क्योंकि उन्हें पता है कि हम आदिवासियों के साथ कितना भी अन्याय, अत्याचार कर लें यह बड़ा ही सहनशील समाज है।
आदिवासियों के साथ अन्याय, अत्याचार, शोषण होने के समाचार बनते है छपते है, टी व्हीं पर दिखते है, सोशल मीडिया में भी खूब प्रचार होता है। कार्यवाही के नाम पर किसी को निलंबित कर दिया जाता है और ज्यादा ही हुआ तो न्यायिक जांच बैठा दी जाती है और उससे भी ज्यादा हुआ तो जनजाति आयोग संज्ञान लेकर जांच कर कार्यवाही का निर्देश देता है बस यहीं पर आकर अन्याय, अत्याचार का सिलसिला समाप्त नहीं होता है।
प्रताड़ितों को त्वरित रूप में हाथ फेर कर सहला लिया जाता है। ऐसी घटनाओं पर पूरी तरह रोक लगना मुश्किल भी है क्योंकि सरकार में बैठे सत्ताधारी आदिवासी समाज को सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक के रूप में आज तक उपयोग करती आई है और आगे भी करती रहेगी।
मध्य प्रदेश में तो ये स्थिति है कि अजाक थानो में सीधे आदिवासियों के साथ अन्याय, अत्याचार, शोषण की रिपोर्ट नहीं लिखी जाती है, पुलिस थानो से धुत्कार भगाया जाता है, एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है, एफआईआर दर्ज हो भी जाये तो कापी नहीं दी जाती है, थानों में सौदा कर लिया जाता है। किसी को प्रमाण चाहिये तो गोंडवाना समय संपादक से संपर्क कर सकता है।
आदिवासियों के साथ अन्याय, अत्याचार, शोषण होने के समाचार बनते है छपते है, टी व्हीं पर दिखते है, सोशल मीडिया में भी खूब प्रचार होता है। कार्यवाही के नाम पर किसी को निलंबित कर दिया जाता है और ज्यादा ही हुआ तो न्यायिक जांच बैठा दी जाती है और उससे भी ज्यादा हुआ तो जनजाति आयोग संज्ञान लेकर जांच कर कार्यवाही का निर्देश देता है बस यहीं पर आकर अन्याय, अत्याचार का सिलसिला समाप्त नहीं होता है।
प्रताड़ितों को त्वरित रूप में हाथ फेर कर सहला लिया जाता है। ऐसी घटनाओं पर पूरी तरह रोक लगना मुश्किल भी है क्योंकि सरकार में बैठे सत्ताधारी आदिवासी समाज को सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक के रूप में आज तक उपयोग करती आई है और आगे भी करती रहेगी।
मध्य प्रदेश में तो ये स्थिति है कि अजाक थानो में सीधे आदिवासियों के साथ अन्याय, अत्याचार, शोषण की रिपोर्ट नहीं लिखी जाती है, पुलिस थानो से धुत्कार भगाया जाता है, एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है, एफआईआर दर्ज हो भी जाये तो कापी नहीं दी जाती है, थानों में सौदा कर लिया जाता है। किसी को प्रमाण चाहिये तो गोंडवाना समय संपादक से संपर्क कर सकता है।
चाहे सरकार किसी की भी रही हो अन्याय, अत्याचार आदिवासियों के साथ होना कभी नहीं रूका
देश में सर्वाधिक आदिवासियों की संख्या मध्य प्रदेश में है लेकिन उनका सत्ता, शासन-प्रशासन में कहां स्थान और उनकी कितनी हिस्सेदारी है यह बताने की जरूरत नहीं है। चाहे सरकार किसी भी रही हो आदिवासियों पर अत्याचार, अन्याय, शोषण करने का प्रयोग हमेशा किया जाता रहा है, कभी रूका थमा नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो आदिवासियों को अपना भगवान तक मान चुके है इसकी शुरूआत उन्होंने लगभग 7 वर्ष पहले सिवनी जिले से ही किया था लेकिन उनके पूर्व कार्यकाल में सरकार के रहते आदिवासियों को नग्न करके खुलेआम मारना पीटना, डण्डों से पीटना, महिलाओं के साथ अत्याचारों का आंकड़ा किस तरह बढ़ा यह भी बताने की जरूरत नहीं है। कितनी आदिवासी युवतियां और महिलायें गायब हुई, गुमशुदा कहें या लापता है इसके आकंड़ों पर सबसे बड़ी बात खुद समाज के जनप्रतिनिधियों ने भी संभवतय: कभी उठाना मुनासिब नहीं समझा क्योंकि उनके ही जनप्रतिनिधित्व क्षेत्रों में यह आंकड़े बढ़े है।
बालाघाट जिले में शिवराज सरकार में शर्मशार करने वाला कृत्य जो शायद कभी रूकेगा नहीं
हम आपको बता दे कि बालाघाट जिले के महकेपार पुलिस थाना में पहले तो कोरोना के बहाने से तीन आदिवासी युवकों को पुलिस पकड़कर ले गई, उसके बाद थाना में चोरी कबूल करने के लिये प्रताड़ित किया गया और नहीं माने तो फिर पेशाब पिलाया जाकर ही पुलिस ने दम लिया।
आदिवासियों के प्रति पुलिस थानों में अधिकांशतय: यहीं रवैया होता है। यहां तक युवक के माता पिता जब पुलिस से पूछने, छोड़ने और न मारने के लिये कहा तो पुलिस ने कहा कि मर जायेगा तो मरने दो दूसरा पैदा कर लेना। इतना अत्याचार, अन्याय और शोषण बिना सरकार के संरक्षण के किसी भी विभाग में नहीं किया जा सकता है। इसलिये ऐसी घटनायें रूकने और थमने का नाम नहीं ले रही है।
आदिवासियों के प्रति पुलिस थानों में अधिकांशतय: यहीं रवैया होता है। यहां तक युवक के माता पिता जब पुलिस से पूछने, छोड़ने और न मारने के लिये कहा तो पुलिस ने कहा कि मर जायेगा तो मरने दो दूसरा पैदा कर लेना। इतना अत्याचार, अन्याय और शोषण बिना सरकार के संरक्षण के किसी भी विभाग में नहीं किया जा सकता है। इसलिये ऐसी घटनायें रूकने और थमने का नाम नहीं ले रही है।
पक्ष और विपक्ष अब इसमें राजनीति करेंगे लेकिन दोनों के राजपाठ के आंकड़े नहीं बतायेंगे
हम आपको बता दे कि कांग्रेस और भाजपा दोनों इस मामले में राजनीति भी करने से नहीं चूकेंगे, यह उनके लिये पहले भी राजनैतिक मुद्दा रहा है ताकि सत्ता की कुर्सी हथिया सकें लेकिन दोनो के राजपाठ सत्ता शासन के दौरान दर्ज हुये मामलो के आंकड़ों को उठाकर देखेंगे तो हकीकत सामने आ जायेगी और बिना पुलिस थाना में दर्ज किये धुत्कारकर भगा दिये जाने वालो की संख्या तो दस गुना से कम नहीं होगी यह यथार्थ सत्य है। मध्य प्रदेश के कितने अजाक थाना में डीएसपी नियुक्त है, क्या अजाक थाना में सीधे एफआईआर आदिवासी पीड़ितों की लिखी जाती है इसका जवाब न तो कांग्रेस के पास है और न ही भाजपा के पास है क्योंकि दोनो ही अजाक थाना में ताला लगाना चाहते है।
Galat hi ye
ReplyDeleteइस वाले को सस्पेंड करना चाहिए
ReplyDeleteGoli maro sale ko
ReplyDeleteInsaniyat bhul gaye lagta hai yah log
ReplyDeleteBahut galat hua
Main to share kar raha hun