जनजाति बाहुल्य 9 जिलों में कोरोना वायरस की 'नो एंट्री'
भीषण महामारी के इस दौर में ये सूचनाएं निश्चित ही देती है सुकून
गुजरात। गोंडवाना समय।
गुजरात के अहमदाबाद, सूरत व वडोदरा आदि जिलों में जहां कोरोना महामारी का खौफ व्याप्त है, वहीं राज्य के जनजाति बाहुल्य 9 जिलों ने अपनी जीवनशैली, खानपान और सतर्कता के कारण इस खतरनाक वायरस की एंट्री को पूरी तरह प्रतिबंधित कर रखा है। इन जिलों में रहने वाले लोग और प्रशासन की तैयारियां देश के दूसरे जिलों को भी रास्ता दिखा रही हैं।
गुजरात के 33 में से 21 जिले कोराना संक्रमण की चपेट में
जनजाति बाहुल्य जिले नवसारी, वलसाड, डांग, खेड़ा, तापी, महीसागर, अरवल्ली, सुरेंद्रनगर व अमरेली में अब तक कोरोना संक्रमण का एक भी मरीज सामने नहीं आया। इनके अलावा जूनागढ़, देवभूमि द्वारका व बोटाद में भी कोई कोरोना संक्रमित नहीं पाया गया। हालांकि इन जिलों में जनजाति समाज की आबादी अपेक्षाकृत कम है। भीषण महामारी के इस दौर में ये सूचनाएं निश्चित ही सुकून देती हैं। जनजाति बाहुल्य नर्मदा जिला भी अब तक कोरोना से पूरी तरह अप्रभावित था लेकिन गुरुवार को ही चार मामले सामने आ गए। दाहोद व साबरकांठा जिलों में कोरोना संक्रमण का सिर्फ एक-एक मामला आया। समग्ररूप से देखा जाए तो गुजरात के 33 में से 21 जिले कोराना संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। बाकी बचे 12 जिलों में से 9 जनजाति बाहुल्य हैं।
जहां घर दूर बने हो वहां रहना करते है पसंद
इस संबंध में प्रशासन के कुछ अधिकारियों का कहना है कि जनजाति समुदाय प्रकृति के बीच रहना पसंद करते हैं। वे सघन आबादी के बीच रहने के बजाय ऐसी जगह पर रहना पसंद करते हैं। जहां घर दूर-दूर बने हों। यानी, शारीरिक दूरी तो उनकी जीवनशैली में ही शामिल है। जनजाति समुदाय श्रमवीर भी होते है और आयुर्वेदिक जड़ी- बूटियां उनके नियमित खानपान का हिस्सा होती हैं। इसलिए, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक होती है। वह बताते हैं कि शहरों में काम करने वाले जनजाति श्रमिक भी बाहर का खाना नहीं खाते। वे यहां भी अपने घर से खाना लेकर आते हैं। वे पारंपरिक तरीके से अपने घरों को सैनिटाइज भी करते रहते हैं।
उबली हुई चीजों को अपने आहार में करते है शामिल
जनजाति समुदाय नांगली (रागी धान) का वे नियमित सेवन करते हैं। वह एंटीबायोटिक का काम करता है। जनजाति समुदाय वर्ग अधिकांशतय: चटपटे मसालेदार के बजाय उबली हुई चीजों को अपने आहार में शामिल करते हैं। इसलिए, किसी भी रोग से लड़ने की उनकी शारीरिक क्षमता अधिक होती है।