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पुलिस अफसर संवार रहे आदिवासी बच्चों की तकदीर

पुलिस अफसर संवार रहे आदिवासी बच्चों की तकदीर

जयपुर। गोंडवाना समय। 
राजस्थान के आदिवासी अंचल उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा एवं प्रतापगढ़ जिलों के जो आदिवासी पुलिस थानों में जाने के बजाय आपसी विवाद का निपटारा गांव की चौपाल पर करते थे, वे अब थाना से लेकर पुलिस अधीक्षक कार्यालय तक पहुंच रहे हैं। यह सब कुछ संभव हुआ पुलिस के उस अभिनव प्रयोग से जिसमें पुलिस अधीक्षक और महानिरीक्षक स्तर के अधिकारियों ने आदिवासियों के बच्चों की क्लास लेना शुरू किया है।

सप्ताह में एक दिन गांव में जाकर पढ़ा रहे पुलिस अधिकारी 

पुलिस अधिकारी सप्ताह में एक दिन गांवों में जाकर आदिवासियों के बच्चों को पढ़ाते हैं। पुलिस अधिकारी छोटे बच्चों को प्रारंभिक स्तर की पढ़ाई कराते हैं। वहीं बारहवीं कक्षा के बच्चों को विभिन्न कोर्सो एवं सरकारी नौकरी को लेकर जानकारी देते हैं। सरकार की ओर से आदिवासियों के लिए चलाई जा रही योजनाओं एवं उनके अधिकारों को लेकर जागरूक किया जाता है। इन बच्चों को पुलिस अधिकारी समय-समय पर भ्रमण भी कराते हैं। पुलिस अधिकारियों से आदिवासी बच्चे अब इतने घुल-मिल गए कि वे इन्हें 'पुलिस गुरु' या 'पुलिस चाचा' कह कर बुलाते हैं।

युवाओं को रोजगार के अवसर करा रहे मुहैया 

पुलिस आदिवासियों के बीच रहकर सामाजिक सरोकार निभा रही है। अधिकारी जहां बच्चों को शिक्षा देते हैं, वहीं बड़ों को रोजगार के अवसर मुहैया कराने का प्रयास करते हैं। उदयपुर रेंज की पुलिस महानिरीक्षक बिनिता ठाकुर और डूंगरपुर जिला पुलिस अधीक्षक जय यादव सप्ताह में एक दिन गांवों में जाकर आदिवासी बच्चों को पढ़ाते हैं। वे बच्चों को पढ़ाने के साथ ही दोपहर का भोजन भी उन्ही के साथ करते हैं। जय यादव माह में एक दिन आदिवासियों के बीच रात भी गुजारते हैं। इस दौरान वे आदिवासियों की संस्कृति से रूबरू होते है। 

कुछ थाना अधिकारियों ने लिया बच्चों को लिया गोद

बांसवाड़ा पुलिस अधीक्षक केसर सिंह शेखावत आदिवासी बच्चों को गणित और हिंदी पढ़ाने में अधिक दिलचस्पी लेते हैं। जब भी ग्रमाीण क्षेत्र के दौरे पर जाते हैं तो सरकारी स्कूल में जाना नहीं भुलते। स्कूल में जाकर शेखावत क्लास लेते हैं। वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा सामाजिक सरोकार निभाने के प्रयासों में सहयोगी भी पूरी मदद करते हैं। गरीब बच्चों को स्कूल बैग और कापी-किताब से लेकर यूनिफार्म दिलाने तक का काम थाना अधिकारी करते हैं। बिनिता ठाकुर ने बताया कि कुछ थाना अधिकारियों ने तो आदिवासी बच्चों को गोद भी ले रखा है।

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