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लॉकडाऊन ने खोला पलायन करने वाले मजदूरों की मजबूरी का सच

लॉकडाऊन ने खोला पलायन करने वाले मजदूरों की मजबूरी का सच 

कड़वी कलम 
संपादक विवेक डेहरिया 
दैनिक गोंडवाना समय
चीन के वुहान से निकला कोराना का तुफान ने भारत में सबसे पहले केरल में जनवरी माह में ही दस्तक दे दिया था जैसा कि मानसून भी सबसे पहले केरल में ही आता है वैसे भी भारत में कोराना का मरीज सबसे पहले केरल में सामने आया था । चीन के वुहान से हुई शुरूआत कोराना ने दुनिया के कई देशों में कहर बरपा दिया। वहीं जनवरी माह के अंत में कोरोना वायरस ने भारत में भी दस्तक दे दिया था। केरल में कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया था । केरल का जो मरीज कोरोना वायरस से संक्रमित हुआ था वह चीन के वुहान यूनिवर्सिटी का छात्र था। उसी दौरान चीन में कोरोना वायरस से लगभग 170 लोगों की मौत हो चुकी थी और 7000 से ज्यादा लोग इसकी चपेट में थे यह जनवरी के अंत की बात है।
इसके बाद फरवरी का महिना समाप्त हो गया और अब मार्च भी एंडिंग में अपने दिन गिन रहा है। जहां प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्र के नाम संदेश में यह कह चुके है कि जिन देशों की स्वास्थ्य सुविधा सबसे अच्छी है उन देशों को भी इस बीमारी पर काबू पाने में भारी मशक्कत करना पड़ रहा है। फरवरी में दुनिया के देशों में कोराना वायरस के संक्रमित मरीजों के आंकड़े और मृतकों की संख्या में निरंतर बढ़ोत्तरी होती रही। भारत सरकार भी आंकड़ों को देखकर भारत में इस बीमारी से निपटने को लेकर आगामी रणनीति बनाती रही है ताकि इस पर काबू पाया जा सके।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 22 मार्च को पहला जनता कर्फ्यू लगाने की घोेषणा किया और पूरे देश में इसका पालन भी किया गया लेकिन जब अपने अपने घरों में रहकर घंटी, ताली, थाली बजाने का समय आया तो बुद्धिजीवियों ने अंधभक्ति का खुलेआम परिचय दिया यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि किसने किस तरह और किस रूप में अंधभक्ति का परिचय देते हुये घंटी, ताली, थाली बजाया। अब सोशल मीडिया का जमाना है कि मिनटों में मोबाईल क्रांति के माध्यम से सबके पास पहुंच रही है।
अब यदि लॉकडाऊन की घोषणा जैसे ही प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि सब अपने घरों पर रहे, सिर्फ अपने घरों पर रहे, एक ही काम करें सब अपने घरों पर ही रहे इसे उन्होंने ध्यान से सुनो कहते हुये कहा था लेकिन उन्हें क्या पता था कि अपने घर गांव से पलायन कर दूसरे शहरों में पेट पालने की तलाश में अपने परिवार का भरण पोषण की तलाश में रोजगार के लिये अपने घरों से निकले लोग कहां रहेंगे। लॉकडाऊन के बाद जब मजदूरों को अपने अपने घरों में जाने के लिये खदेड़ा जा रहा है तो पैदल अपने अपने घरों तक पहुंचने के लिये निकल पड़े है।
वो तो भला हो भारत के नागरिको का जिनमें मानवता व मानव सेवा कूट कूटकर भरी हुई जो इन भूखे प्यासे मजदूरों की भूख व प्यास मिटा रहे है। सरकार मजदूरों को आर्थिक पैकेज ही दे सकती है पक्ष का राजनैतिक दल इसका प्रचार-प्रसार कर सकता है और विपक्ष का राजनैतिक दल इस पर खामियां निकाल सकता है
लेकिन भूख और प्यास सिर्फ और सिर्फ समाज ही मिटा सकता है। इसलिये समाजसेवक, सामाजिक संस्थायें अपनी भूमिका निभाये।
सरकार ने जैसे आधी रात को अचानक नोटबंदी का फैसला किया था उसी तरह लॉकहाऊन का फैसला ले लिया। सरकार से कहीं न कहीं लॉकडाऊन के मामले में चूक जरूर हुई है। सरकार को सबसे पहले लोग अपने अपने घरों में है क्या नहीं इसका पता लगाना था । विशेषकर पलायन करने वाले मजदूरों पर गौर फरमाना था। सरकार, शासन, प्रशासन के लिये पलायन करने वालों का पता लगाना कोई बड़ी बात नहीं थी बस इच्छाशक्ति और रणनीति की आवश्यकता थी। वहीं सरकार के सामने यह भी समस्या थी कि पलायन करने वाले मजदूरों को रिकार्ड खंगाला जायेगा तो रोजगार के आंकड़े भी सामने आयेंगे लेकिन लॉकडाऊन के बाद तो बेघर मजदूर सरकार के रोजगार के दावों की हकीकत भी बता रहे। देश भर में अपने अपने घरों की ओर लौटते मजदूर परिवारों की तस्वीर और चलचित्र इलेक्ट्रानिक व सोशल मीडिया में अपने घरों को लौटते मजदूरों की मजबूरी दिखाई दे रही है। इतना ही कहा जा सकता है कि कोराना वायरस ने कृषि प्रधान देश में ग्रामीण अंचलों में रहने वाले ग्रामीणों को पलायन कर मजदूरी करने की मजबूरी का सच भी सामने ला दिया है। 

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