क्या मतदाताओं से पूछकर त्यागपत्र दे रहे विधायक ?
मतदाताओं को लोकतंत्र का महापर्व बताकर मताधिकार के लिये सारे नियम-कानून-कायदे
संपादकीय लेख
विवेक डेहरिया
संपादक गोंडवाना समय
विधानसभा चुनाव के दौरान घर-घर जाकर मतदाताओं के चरणों पर माथा रगड़कर स्वयं को मताधिकार देकर विधायक बनाने के लिये गिड़गिड़ाने वाले चुनाव जीतकर विधायक बनने के बाद मनमर्जी के मालिक हो गये है। अपनी मर्जी से अपना त्याग पत्र 1 विधायक नहीं 22 विधायक एक साथ दे रहे है और 1 विधायक बिसाहूलाल ने
तो मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री की उपस्थिति में हंसते-हंसते मीडिया के सामने बताते हुये त्याग पत्र दे दिया है। वहीं बैंगलूर पहुंचे विधायकों में से एक से विधायिका तो यह तक कह रही है कि महाराज की कहने पर मैं तो कुंआ मैं तक गिरने को तैयार हूं। वहीं जसपाल सिंह जज्जी तो विधायक पद से त्याग पत्र देना अपना सौभाग्य समझ रहे है। अब मतदाताओं के हित में और मताधिकार के प्रति यहां यह सवाल भी उठता है कि मतदाताओं के मताधिकारों से चुनाव जीतने वाले जनप्रतिनिधि क्या मतदाताओं से पूछकर अपना त्यागपत्र दे रहे है और यदि नहीं दे रहे है तो यह मतदाताओं के साथ धोखा नहीं है।
सारे काम छोड़ दो सबसे पहले वोट दो
जब चुनाव आता है तो मतदाताआें को घर-घर जाकर चुनाव आयोग के दिशा निर्देश पर लोकतंत्र का महापर्व में आहूति डालने का अभियान के तहत लोकतंत्र का महत्व बताया जाता है। मताधिकार का महत्व बताकर, सारे काम छोड़ दो सबसे पहले वोट दो जैसे अनेक नारे का प्रचार-प्रसार कर किया जाता है। इसके साथ ही मतदाताओं को बिना प्रलोभन के निष्पक्षता के साथ मताधिकार का प्रयोग करने का संकल्प दिलाया जाता है।
मतदान प्रतिशत बढ़ाने स्वीप प्लान के तहत चलते है अभियान
स्वीप प्लान जैसी अनेकों योजनायें बनाकर मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिये प्रत्येक मतदाताआें को मतदान केंद्र में जाकर अपने-अपने मत का प्रयोग करने का प्रचार-प्रसार जनअभियान के रूप में चुनाव आयोग के द्वारा चलाया जाता है। यहां तक 100 वर्ष से अधिक के मतदाता, विकलांग भी मतदान केेंद्र मेें जाकर अपने मताधिकार का प्रयोग करता है और विधानसभा चुनाव में विधायक, लोकसभा चुनाव में सांसद व अन्य चुनावों में अन्य पदों पर मताधिकार के माध्यम से चुनाव जिताया जाता है। मताधिकार के प्रयोग के लिये भी सम्मानीय चुनाव आयोग द्वारा अनेकों नियम-कानून बनाये गये है जिनका पालन करना मतदाताओं के लिये अनिवार्य है। यही कारण है कि भारत का लोकतंत्र विश्व में अनूठा और प्रसिद्ध है। वहीं मतदाताओं ने भी ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाते हुये अपने मताधिकार का प्रयोग कर विधायक के पद कुर्सी तक पहुंचा दिया लेकिन जीतने और विधायक बनने के बाद क्या विधायक मतदाताओं से पूछकर अपना त्याग पत्र दे रहे है।
स्वेच्छा से हम 22 विधायकों ने दिया त्यागपत्र
मध्य प्रदेश के 22 विधायक जो स्वेच्छा से मध्य प्रदेश छोड़कर बैंगलूर में ऐशोआरामयुक्त रिसोर्ट में रूके हुये है और वहां से उन्होंने ई-मेल व सोशल मीडिया के माध्यम से मतदाताओं के मताधिकार से जीतकर विधायक बनने के बाद स्वेच्छा से अपना त्यागपत्र दे दिया है। इमसें कुछ ने तो राष्ट्रहित व देशहित का हवाला देते हुये महाराजा के कहने पर और कांग्रेस पार्टी में ज्योतिरा दित्य सिंधिया महाराजा की उपेक्षा किये जाने के कारण त्याग पत्र स्वेच्छा से दिये जाने का बात सोशल मीडिया में जारी वीडियों में अपने वक्तव्य देते हुये कहा है। विधानसभा चुनााव में विधायक बनने के लिये मतदाताओं के मताधिकार पाने के लिये घर घर जाकर हाथ जोड़ने वाले, माथा टेकने वाले जीतकर विधायक बनने के बाद अब बिना मतदाताआें से पूछे अपना त्याग पत्र दे रहे है।
चाहे बीजेपी जायेंगे पूरे 22 विधायक उनके साथ रहेंगे
विधायक के पद से बैंगलूर से त्यागपत्र देने वाले तुलसी सिलावट कहते है कि परम श्रद्धेय ज्योतिरादित्य सिंधिया जी ने जो निर्णय लिया है, वो किसी भी पार्टी चाहे बीजेपी में जायेंगे, पूरे 22 के 22 विधायक सब एक साथ है। सब स्वेच्छा से आये है। हम किसी के दबाव में नहीं है कोई किसी के संपर्क में नहीं है। सिंधिया जी जो निर्णय करेंगे पूरे 22 विधायक उनके साथ थे और रहेंगे।
प्रद्युम सिंह तोमर ने बैंगलूर से कहा अपनी मन की बात
विधायक के पद से बैंगलूर से त्यागपत्र देने वाले प्रद्युम सिंह तोमर वायरल वीडियों में यह संदेश दे रहे है कि मैं अपनी मन की बात कहना चाहूंगा, आज मैं जिस स्थिति में आया हूं, मुझे जो जिम्मेदारी मिली, आपने जो वोट दे दिया और मुझे इस लायक बनाय और ताकतवर बनाने का काम श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किया। मुझे नैतिकता के रूप में क्या करना चाहिये क्या शांत बैठना चाहिये। जो ग्वालियर चंबल संभाग विकास के लिये संघर्षशील रहे, उनके साथ नहीं रहना चाहिये मेरी अंतर्रात्मा ने कहा इसलिये मैं साथ में हंू।
हमें साथ क्यों नहीं ले गये हम लोग यहां घुटन महसूस कर रहे है
विधायक के पद से बैंगलूर से त्यागपत्र देने वाले गोविंद सिंह राजपूत अपना संदेश देते हुये कह रहे है कि हमारे बारे में बहुत बड़ा भ्रम फैलाया जा रहा है। जो कांग्रेस के विधायक है, जो बैंगलूर आये है, वे भोपाल के संपर्क में है या किसी के संपर्क में है, तो हम किसी के संपर्क में नहीं है। हम अपनी स्वेच्छा से आये है, सारे 22 विधायक आये हुये है, सब अपने मन से आये है। सारे लोग सिंधिया जी के साथ है जो वे निर्णय राष्ट्रहित व देशहित मेें निर्णय ले रहे है। हमारे जो बहुत से साथी जो जयपुर गये है, वे कह रहे है कि हमारे संपर्क में है। ऐसा कुछ नहीं है हम और हमारे साथी सब खुश है। जबकि जयपुर जाने वाले साथी हमारे संपर्क में है, वे हम लोगों से कह रहे है कि
हमें साथ क्यों नहीं ले गये हम लोग यहां घुटन महसूस कर रहे है।
तो मैं कुंआ भी गिरूंगी पर महाराज के साथ रहूंगी
विधायक के पद से बैंगलूर से त्यागपत्र देने वाली इमरती देवी जी कहती है कि हम सभी अपनी मर्जी से है और श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया के आशीर्वाद से है। महाराज साहब ने अच्छा निर्णय लिया है कि वे हमको किसी जगह पे ले जा रहे है। यदि वे कहते कुंआ में गिरने है तो मैं कुंआ भी गिरूंगी पर महाराज के साथ रहूंगी। जहां हमारे महाराजा साहब है वहां इमरती देवी है। जितते हम 22 विधायक है सब हंसी खुशी है अच्छे है अपनी इच्छा है और कांग्रेस वालों ने जो महाराज की उपेक्षा की है उतनी तो बीजेपी वालों ने भी नहीं की है। कमल नाथ ने बहुत उपेक्षा हमारी की है खास तौर से महाराज जी की।
हम 22 लोगों ने स्वेच्छा से त्यागपत्र दिया है
विधायक के पद से बैंगलूर से त्यागपत्र देने वाले डॉ प्रभुराम चौधरी कहते है कि मैं ज्योतिरादित्य सिंधिया जी के साथ हूं और आगे भी ज्योतिरादित्य सिंधिया जी के साथ रहंूगा। जो हम लोगों 22 लोगों ने त्यागपत्र दिया वह अपनी स्वेच्छा से दिया है।
विधायक पद से त्यागपत्र देना मैं अपना सौभाग्य समझता हूं
विधायक के पद से बैंगलूर से त्यागपत्र देने वाले जसपाल सिंह जज्जी कहते है कि श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ हंू वो हमारे नेता है मेरी जो हैसियत है, वह श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी की वजह से है। जहां सिंधिया जी है वहां मैं हूं विधायक तो छोटी सी चीज है, सिंधिया जी के लिये हमें मौका मिला है विधायक पद से त्यागपत्र देने के लिये इसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूं।
ऐसे विधायकों के लिये क्या कानून नहीं बनना चाहिये
मतदाताओं के मताधिकार से विधायक बनने के बाद अपनी स्वेच्छा और मनमर्जी से त्याग पत्र देने वालों के लिये क्या कड़ा कानून नहीं बनना चाहिये ताकि दोबारा चुनाव में धन का व्यय न हो सके। मतदाताओं से बिना पूछे त्याग पत्र देने वाले विधायकों को सरकार की ओर से मिलने वाली पेंशन व अन्य सुविधाओं को नहीं दिया जायेगा।
इस तरह का कानून भी बनना चाहिये। हमारे यहां जो सरकारी कर्मचारी अधिकारी जीवन भर सेवा देता है उनकी पेंशन देने ओर बढ़ाने में सरकार को पसीना छूटता है यहां तक सरकार ने पेंशन जो बुढ़ापा का सहारा होती है उसे बंद कर दिया है। इसके लिये सरकारी अधिकारी कर्मचारी आंदोलन कर रहे है। वहीं मतदाताओं के मताधिकार से जीतने वाले विधायकों सांसदों को पेंशन के साथ अन्य सुविधायें भी दी जाती है चाहे वह कुछ महिने ही विधायक के पद पर रहे ऐसा क्यों ? इतनी सुविधाओं के बाद भी विधायक के पद से अपनी स्वेच्छा से त्याग पत्र देने वालों के लिये कड़ा कानून बनाया जाना चाहिये ताकि अपने नेता या अपने स्वार्थ के लिये त्याग पत्र देने वाले विधायक सोचने विचारने पर मजबूर होना पड़े।