आखिर स्कूलों में बेटियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है ?
बाल कल्याण समिति सिवनी पर भी उठ रहे सवाल
विशेष संपादकीय
संपादक विवेक डेहरिया
अभिभावक स्कूलों में अपनी बेटियों को यह समझकर स्कूल भेजते है कि घर की तरह ही स्कूल में बेटियां सुरक्षित रहेंगी लेकिन जिस तरह की घटनायें स्कूलों में शिक्षकों के द्वारा छात्राओं के साथ वो नाबालिग छात्राओं के साथ अनैतिकता क परिचय देते हुये किये जाने के मामले में सिवनी जिले में आ रहे है तो यह प्रश्न उठ रहा है कि आखिर स्कूलों में बेटियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है? वहीं पॉस्कों एक्ट के तहत गंभीर मामलों में पुलिस प्रशासन व जिला प्रशासन की भूमिका संज्ञान लेने में देरी किये जाने एवं संवेदनशीलता को लेकर भी सवाल उठ रहे है।
यह अच्छी पहल भी है ताकि सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़े और अभिभावकों का विश्वास सरकारी स्कूलों पर बना रहे क्योंकि आज के समय में निजी स्कूलों की महंगी फीस को भर पाना निर्धन ही नहीं मध्यन वर्ग के परिवारों के लिये भी मुश्किल होता जा रहा है। वहीं शैक्षणिक क्षेत्र में बढ़ती प्रतिस्पर्धा अभिभावकों व बच्चों को सरकारी स्कूलों से ज्यादा प्राईवेट स्कूलों या शिक्षण संस्थानों में पढ़ना अनिवार्य कहें या समाज-परिवार-रिश्तेदार के बीच में बड़प्पन की श्रेणी में देखा जाने लगा है। सिवनी जिले में जिस तरह से मेरी शाला जिम्मेदारी को लेकर प्रयास किया जा रहा था वह कम प्रवेश संख्या के चलते बंद होते स्कूलों के आंकड़े को रोकने में सहायक सिद्ध होगा।
सिवनी जिले में सरकारी स्कूलों में मेरी शाला मेरी जिम्मेदारी के तहत जिस तरह से गांव-गांव में स्वयं स्कूलों के शिक्षकों के द्वारा स्कूल को स्मार्ट बनाये जाने और स्कूल को सर्वसुविधायुक्त बनाये जाने के लिये आगे आकर सहयोग किया जा रहा है जिससे मेरी शाला मेरी जिम्मेदारी को प्रदेश ही नहीं देश में भी नई पहचान मिल रही है और सिवनी जिले का नाम सरकारी स्कूल की दशा व दिशा को स्मार्ट बनाने को लेकर प्रशंसा भी हो रही है, यह प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों व विभागीय अधिकारियों के मार्गदर्शन में सफलता की ओर अग्रसर है। यह अच्छी पहल भी है ताकि सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़े और अभिभावकों का विश्वास सरकारी स्कूलों पर बना रहे क्योंकि आज के समय में निजी स्कूलों की महंगी फीस को भर पाना निर्धन ही नहीं मध्यन वर्ग के परिवारों के लिये भी मुश्किल होता जा रहा है। वहीं शैक्षणिक क्षेत्र में बढ़ती प्रतिस्पर्धा अभिभावकों व बच्चों को सरकारी स्कूलों से ज्यादा प्राईवेट स्कूलों या शिक्षण संस्थानों में पढ़ना अनिवार्य कहें या समाज-परिवार-रिश्तेदार के बीच में बड़प्पन की श्रेणी में देखा जाने लगा है। सिवनी जिले में जिस तरह से मेरी शाला जिम्मेदारी को लेकर प्रयास किया जा रहा था वह कम प्रवेश संख्या के चलते बंद होते स्कूलों के आंकड़े को रोकने में सहायक सिद्ध होगा।
अरी थाना का मामला आज भी बना अनसुलझा सवाल
सिवनी जिले में बीते माह अरी थाना क्षेत्र और ब्लॉक कुरई के तहत प्राथमिक स्कूल में सलीम खान शिक्षक के द्वारा आदिवासी छात्रा के साथ छेड़छाड़ किया गया। जिसे बार-बार मीडिया उठाये जाने के बाद संबंधित विभागीय अधिकारियों द्वारा निलंबन की कार्यवाही की गई वहीं पुलिस थान अरी के द्वारा मामला के दिन ही स्कूल प्रबंधन के सहयोग से समझौता करवाने की बात सामने आई थी। ऐसे गंभीर मामलो को दबाने छिपाने का प्रयास भी किया गया जब सामाजिक संगठन सामने आये तो निलंबन की कार्यवाही की गई। अरी थाना की कार्यवाही को लेकर भी आज भी अनसुलझा सवाल ही बना हुआ है।
छपारा ब्लॉक के स्कूल में शिक्षक की घटना से सबक ले
बरघाट मुख्यालय के स्कूल में हुई घटना, उसके बाद फिर कुरई ब्लॉक के स्कूल में छात्रा से छेड़छाड़ करने वाला शिक्षक की निलंबन की कार्यवाही सिवनी जिले के सरकारी स्कूलों के शिक्षको तो संभवतय: सभी को रही ही होगी लेकिन उसके बाद भी छपारा ब्लॉक के स्कूल में शिक्षक के द्वारा स्कूल की छात्रा के साथ अनैनितकता
का परिचय देते हुये कृत्य को अंजाम देने का मामला सामने आने के बाद यह माना जा सकता है कि स्कूल के ऐसी मानसिकता की सोच रखने वाले शिक्षकों को सीख नहीं लगी होगी, इसलिये छपारा ब्लॉक के स्कूल में भी शिक्षक ने भविष्य, सामजिक प्रतिष्ठा को दांव पर लगाकर अपनी घिनौनी सोच को अंजाम देने का घृणित प्रयास किया। इस तरह की घटनायें किसी भी स्कूलों में न होने पाये इसके लिये सबक लेकर स्कूलों में सिखाने की आवश्यकता है।
बाल कल्याण समिति और बाल संरक्षण अधिकारी का क्या है काम
पास्कों एक्ट के तहत और सरकारी संस्थानों में ही सिवनी जिले में ऐसी घटनायें सामने आ रही है और बाल कल्याण समिति आखिर क्या काम कर रही है यह समझ से परे बुद्धिजीवि भी बाल कल्याण समिति के क्रियाकलापों पर सवाल दाग रहे है। बाल कल्याण समिति के सदस्य ऐसे मामले प्रकाश में आने के बाद आखिर संज्ञान क्यों नहीं लेते है वहीं बाल संरक्षण अधिकारी भी ऐसी घटनाओं पर ध्यान क्यों नहीं दे रहे है। सरकार के द्वारा बाल संरक्षण समिति व संबंधित विभाग के लिये बजट का प्रावधान भी कर रही है और संभवतय: खर्च भी किया जा रहा है लेकिन क्या बाल संरक्षण समिति धरातल पर या इस तरह की घटनायें होने पर घटना स्थल पर पहुंचकर संज्ञान ले रही है यह सवाल उठ रहे है।
गुड टच, बैड टच का स्कूलों में शिक्षकों को पहले पढ़ाया जाये पाठ
कहते है कि गेंहू के साथ घुन भी पिस जाता है। सिवनी जिले में सरकारी स्कूलों में चल रहे मेरी शाला मेरी जिम्मेदारी की पहचान को दाग लगाने के लिये स्कूलों में इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले कुछ शिक्षक के कारण अन्य शिक्षकों के नजरिये पर भी प्रभाव पड़ता है। सिवनी जिले में इस तरह की घटनायें सामने आने के बाद स्कूलों में शिक्षकों को ही गुड टच व बैड टच का पाठ पढ़ाया जाना चाहिये। इसके लिये हालांकि संबंधित विभागों के द्वारा स्कूलों जा जाकर गुड टच बैड टच के संबंध में मार्गदर्शन दिया जाता है।
महिला संगठन के माध्यम से ही स्कूलों-छात्रावास में छात्राओं को दिया मार्गदर्शन
शासन-प्रशासन ऐसी घटनाओं के बाद स्कूलो व छात्रावास में छात्राओं से गुड टच बैड टच के साथ अन्य जानकारी व मार्गदर्शन के लिये सिर्फ महिला संगठनों को साथ लेकर खुला मंच का आयोजन आगामी सत्र से करें तो छात्राओं की झिझक समाप्त हो सकती है। अक्सर देखा जाता है कि स्कूलों में पुलिस के हो या महिल बाल विकास व अन्य विभाग के पुरूष वर्ग के अधिकारी छात्राओं को गुड टच व बैड टच के संबंध में जानकारी मार्गदर्शन देते है तो संभवतय: छात्राओं में झिझक निकलने की उम्मीद कम ही की जा सकती है। इससे अच्छा यह है कि छात्राओं को मार्गदर्शन समझाईश के लिये प्रशासन महिला सामाजिक संगठनों को सामने लाये।
विशेष संपादकीय
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