कोयतुरियन संस्कृति की पहचान बचाना वैसे ही देश की सुरक्षा में युवाओं का आगे आना आज की मुख्य चुनौती
राष्ट्र हित में योगदान देना सभी देशज समुदाय का मुख्य कर्तव्य होना चाहिये
मण्डला-मवई के वनग्राम खुसीर्पार (भीमडोंगरी) में 6 फरवरी पर फौजी देंगे मार्गदर्शन
आलेख-सम्मल सिंह मरकाम
वनग्राम-जंगलीखेड़ा, गढ़ी
जिला बालाघाट म. प्र.
देश की मातृभूमि की रक्षा के लिये अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिये सर्वप्रथम जनजाति वर्गों ने ही विरोध बिगुल फूंका था यह किसी इतिहास में दर्ज है और देश की मातृभूमि में जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्तियों का यही कर्तव्य होता है कि वह अपनी देश की सुरक्षा के लिये अपने जीवन अर्पण करने को सदैव तैयार रहे वहीं जनजाति वर्ग के गोंडवाना शासनकाल के राजा शंकर शाह व कुंवर रघुनाथ सहित अनेक ऐसे बलिदानी वीर यौद्धा प्रमाणिक इतिहास के रूप में साक्षी है जिन्होंने अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके उनकी गुलामी स्वीकार नहीं किया वरन भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने के लिये तोफ के मुंह में बंधकर, सीने में गोलियां खाकर, अंग्रेजों की प्रताड़ना-अत्याचार रूपी सजा पाकर भी अपना बलिदान देने में कभी पीछे नहीं हटे यही जनजाति वर्गों का स्वर्णिम इतिहास है और आज भी जजनाति वर्ग के अनेक नौजवानों ने भारत देश की विभिन्न सुरक्षा क्षेत्रों में जी जान से सेवा करते हुये बरकरार रखा हुआ है। देश की विभिन्न संस्थानों में सुरक्षा का जिम्मेदारी जवाबदारी संभालने वाले देशभक्त सैनिकों के द्वारा मण्डला जिले के विकासखंड- मवई, अंतर्गत वनग्राम- खुसीर्पार (भीमडोंगरी) मे 6 फरवरी 2020 दिन गुरूवार को सामाजिक समरसता के साथ साथ देश की सुरक्षा के लिये युवाओं को आगे आकर सेवा करने के लिये अपना योगदान देने के लिये मार्गदर्शन प्रशिक्षण दिया जावेगा। सैनिकों के द्वारा दिये जाने वाले मार्गदर्शन का लाभ लेने के लिये विशेषकर युवाओं को आमंत्रित किया गया है। सैनिकों के द्वारा युवाओं को मार्गदर्शन के रूप में जिस तरह अपनी संस्कृति की सुरक्षा के लिये अपना सामाजिक कर्तव्य निभाते है उसी तरह देश की मिट्टी-वतन के लिये भी अपनी जवानी व जीवन लगाने के लिये युवाआें का उत्साहवर्धन किया जायेगा।
देश के नागरिकों को सुरक्षा व सम्मान मिलता रहे
जिस तरह गणतंत्र के 70 साल पूरे हो गये पर जनजाति वर्गों के लिये संवैधानिक प्रावधान कहीं न कहीं न आज भी अधूरे रह गये है। जिन्हें पूर्ण करना जनजाति वर्गों के उत्थान, कल्याण, विकास के लिये नितांत आवश्यक है और इसके लिये संवेदनशीलता के साथ पूर्ण करने की विनम्रतापूर्वक आग्रह है कि इस पर विचार-मंथन-चिंतन होना चाहिये । इस नये दशक की शुरूआत पर हम कोयापुनेमी कोयतुर युवाओ के लिये सुनहरा व अच्छा मौका है कि हम नियमित रूप से खुद को संवैधानिक मूल्यो से जोड़े व संवैधानिक मूल्यो को आत्मसात करें और ध्यान रखें उस लक्ष्य व उद्देश्य को कि देश के हर नागरिक को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, स्वतंत्रता और नयाय की सुरक्षा ससम्मान मिलता रहे और इसी स्वतंत्रता व न्यायिक सुरक्षा के साथ कोयतुरियन सांस्कृतिक पहचान को बनाये रखना व राष्ट्र हित मे योगदान देना सभी देशज समुदाय का मुख्य कर्तव्य होना चाहिये।
गोंडवाना की माटी अजर, अमर व दयालू है
अतीत के पन्नो मे कोयतुरियन संस्कृति का उल्लेख हो न हो पर कोयतुरियन संस्कृति तो प्रकृति सम्मत है और सार्वभौमिक रूप से सर्वत्र व्याप्त है। जिसके छांव तले ही विभिन्न व्यक्तिवादी क्षद्म संस्कृतियां पली बढ़ी हैं। गोंडवाना की माटी अजर, अमर व दयालू है कि हर अवधारणाओ को फलने फूलने का अवसर दी है और यही दयालुता ईमानदारी मितभाषीपन व सहज सरल प्रकृति आज उसके ही कोयतुरियन संस्कृति के लिये नासूर बन गयी है। जिसकी चिंता आज हर वर्ग कर रहा है।
कोयतुरियन संस्कृति तो आज पूर्णतया विलुप्ति के कगार पर पहुंच गयी है
कुछ वर्ग विशेष के लिये देशज समुदाय मात्र विषय बन गया है व देशज समुदाय का निवास स्थल, इनकी प्रयोगशाला। विभिन्न उच्च शोध संस्थाओ, विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, विभिन्न गैर सरकारी संगठनो
व विभिन्न परियोजना कार्यो के माध्यम से देशज समुदाय व उसके कोयतुरियन संस्कृति पर शोध निरंतर हो रहे हैं व बड़े बड़े साहित्यो का रूप धारण कर रहे हैं लेकिन विषय आज भी जस का तस पड़ा है, देशज समुदाय का विकास तो कोशो दूर हो गया है बल्कि कोयतुरियन संस्कृति तो आज पूर्णतया विलुप्ति के कगार पर पहुंच गयी है। वहीं संस्कृति भी चुनौतियों से गुजर रही है।
लिपिबद्ध करने की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी अपने हाथों मे लिये हैं
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि कोयतुरियन संस्कृति को देशज समुदाय के ही मूर्धन्य विद्वानो ने लिपिबद्ध करने की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी अपने हाथों मे लिये हैं । जन सामान्य भी अपने अपने स्तर से विभिन्न व असाधरण प्रयासो से कोयापुनेमी कोयतुरियन संस्कृति को सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहे हैं। इसी क्रम मे सगा सग्गुम आदिम सामाजिक संस्था भोपाल म प्र, मूलवासी सेवा समिति छिंदीगढ़ मवई मण्डला व अनेक सामाजिक संगठन वृहत स्तर पर कोयापुनेमी कोयतुरियन संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन पर काम कर रहे हैं।
कोयतुरियन संस्कृति की रक्षा के लिये लेते है प्रण आज जिन फौजी भाइयों के कंधो पर देश सीमा की रक्षा की जिम्मेदारी है वही मजबूत कंधे अब देश सेवा के साथ-साथ देश के गणतंत्र को बचाने मे भी अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। हर्ष का विषय है कि हमारे क्षेत्रीय फौजी साथियों द्वारा हर साल की तरह इस वर्ष भी आदिम समुदाय की पुरखों द्वारा जीवंत वैज्ञानिकता से परिपूर्ण प्राकृतिक जीवन दर्शन पुरखों द्वारा प्राप्त बहुमूल्य विरासत, रूढ़ी व्यवस्था, नार व्यवस्था, गोटुल व्यवस्था, मुकद्दम व्यवस्था, रीति रिवाज, नेंग, सेंग, मिजान, पाना-पारसी, सांस्कृतिक धरोहरो रीना, सयला, करमा, ददरिया आदि पुरातन कोयतुरियन संस्कृति कों आने वाली पीढ़ियों के लिये बचाए रखने का प्रयास सांस्कृतिक प्रतियोगता का स्वरूप देकर किया जा रहा है। इस कार्यक्रम मे क्षेत्रीय कलाकारो के दल अपनी अपनी अद्भुत कलाकृति व नृत्यगान के माध्यम से प्रकृति को शोभायमान कर, कोयतुरियन संस्कृति की रक्षा के लिये प्रण लेते हैं।
जो पंडा मड़ई के नाम से मप्र ही नहीं अन्य राज्यो मे भी है प्रसिद्ध
यह भव्य कार्यक्रम मण्डला जिले के विकासखंड- मवई, अंतर्गत वनग्राम- खुसीर्पार (भीमडोंगरी) मे 6 फरवरी 2020 दिन गुरूवार को आयोजित किया गया है। आयोजन स्थल का अपना एक गौरवशाली इितहास है। प्रतिवर्ष यहां मड़ई मेला का भी आयोजन होता है, जो पंडा मड़ई के नाम से म प्र ही नही अन्य राज्यो मे भी प्रसिद्ध है । मड़ई का कोयापुनेमी कोयतुरियन संस्कृति मे अपना अलग ही महत्व है।
ये होंगे कार्यक्रम के अध्यक्ष व मुख्य अतिथि
कार्यक्रम की अध्यक्षता का भार वरिष्ठ पंडा दादा तिरूमाल चंद्र सिंह परतेती जी के मजबूत कंधो मे होगी एवं मुख्य अतिथि विधायक विधान सभा क्षेत्र बिछिया, तिरू नारायण सिंह पट्टा करेंगे। यह कार्यक्रम क्षेत्र के सम्माननीय मकद्दम व प्रमुख वयोवृद्ध बुद्धिजीवियों के उपस्थिति मे संपन्न होगा। इसके साथ ही इस विशाल कोयापुनेमी कोयतुरियन संस्कृति की रक्षार्थ कार्यक्रम मूलवासी सेवा समिति छिंदीगढ़ मवई (जिला मण्डला), अंजस्स, जी एस यू इंडिया, सभी मुकद्दम व क्षेत्र के सहयोगी और ऊजार्वान युवाओ का अमूल्य सहयोग होगा।
वैज्ञानिक ढंग से पुरखा प्रदत्त रूढ़ी व्यवस्था को अपनाने की जरूरत है
यह गोंडवाना भू-भाग के समस्त कोयापुनेमी कोयतुरियन समुदाय के लिये गर्व की बात है कि एक तरफ जहाँ लोग स्वयं तक ही सीमित रहते है तब हमारे क्षेत्रीय फौजी साथी देश की सीमा पर चट्टान की तरह तैनात रह कर देश की सेवा सुरक्षा करते है, दूसरी तरफ आज जब हमारी सामाजिक सांस्कृतिक पहचान पर परसंस्कृतिग्रहण के कारण कोया पुनेमी संस्कृति पर हमला हों रहा है। हमारे समाज के फौजी साथी चट्टान की तरह स्वयं के सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान को बचाने के लिये भी खड़े हो रहे हैं। जब हम दावा करते हैं कि आज के युवा ही कल के भविष्य हैं, ऐसी स्थिति मे लोकतंत्र का पाठ व गणतंत्र की रक्षा के लिये आज ही सांस्कृतिक पहलुओ को आत्मसात कर सही दिशा मे कार्य करना होगा और इस ऐतिहासिक कार्य को हौसला प्रदान करने के लिये क्षेत्र के सभी सम्माननीय जनप्रतिनिधि सभी बुजुर्ग व आम नागरिक यहां उपस्थित होंगे एवं सभी का आशीर्वाद होनहार युवा व प्रतिभागियों को प्राप्त होगा। देशज समुदाय के कोयापुनेमी कोयतुरियन संस्कृति में आज की दुनिया की सभी विकराल समस्याओ को संभालने व निराकरण के लिये पर्याप्त शोध सामग्री है। जरूरत इस बात है कि इस समय कोयापुनेमी कोयतुरियन संस्कृति को आत्मसात कर, चिंतन मनन, समझकर व सम्मान देकर वैज्ञानिक ढंग से पुरखा प्रदत्त रूढ़ी व्यवस्था को अपनाने की जरूरत है।
आलेख-सम्मल सिंह मरकाम
वनग्राम-जंगलीखेड़ा, गढ़ी