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खतरे में पहुँचे गुग्गल उत्पादन को बढ़ाने की मुहिम तेज, बनाई जा रही है गोंद रेजिन नीति

खतरे में पहुँचे गुग्गल उत्पादन को बढ़ाने की मुहिम तेज, बनाई जा रही है गोंद रेजिन नीति

गुग्गल, सहरिया जनजाति के लोगों की आमदनी का यह एक महत्वपूर्ण जरिया 

गुग्गल उत्पादन के लिये मेल-फीमेल दोनों पेड़ों का होना आवश्यक है 

भोपाल। गोंडवाना समय।
गठिया, कॉलेस्ट्रॉल और रक्तचाप की आयुर्वेदिक औषधियों और हवन सामग्री में उपयोग होने वाला गुग्गल का उत्पादन अज्ञानतावश गलत तरीके से दोहन के चलते आज खतरे में पड़ गया है। मध्यप्रदेश के केवल मुरैना, श्योपुर और भिण्ड जिले में पाया जाने वाला गुग्गल कच्चे माल के रूप में एक से डेढ़ हजार रुपए प्रति किलो और इसका सत्त 5 से 10 हजार रुपए किलो तक बिकता है। भारत में मध्यप्रदेश के अलावा यह गुजरात के कच्छ और राजस्थान के कुछ स्थानों में भी पाया जाता है। वन मंत्री श्री उमंग सिंघार ने बताया कि राज्य में इसको बचाने के लिये गोंद रेजिन नीति बनाई जा रही है। नीति ड्राफ्ट का प्रस्तुतिकरण 18 मार्च को होगा।

गुग्गल को बचाने के लिये किये जा रहे त्वरित प्रयास 

वन मंत्री श्री सिंघार ने बताया कि वन विभाग द्वारा आयुर्वेदिक दृष्टि से अतिआवश्यक गुग्गल को बचाने के लिये त्वरित प्रयास किये जा रहे हैं। इसी सिलसिले में मुरैना में 'गुग्गल संरक्षण, संर्वधन विनाशहीन विदोहन' विषय पर कार्यशाला हुई। कार्यशाला में स्थानीय विधायक, एएफआरआई जोधपुर के डॉ. तोमर, एसएफआरआई की वैज्ञानिक सुश्री अर्चना शर्मा, एनजीओ सुजाग्रति संस्था के श्री जाकिर हुसैन और गुग्गल विदोहन से जुड़े लोगों ने भाग लिया। चंबल के बीहड़ में पाया जाने वाला गुग्गल का पौधा एक से डेढ़ मीटर का होता है। सहरिया जनजाति के लोगों की आमदनी का यह एक महत्वपूर्ण जरिया है। पेड़ से गुग्गल का रस निकालने के लिये मात्र एक से दो मिलीमीटर चीरा लगाने की जरूरत होती है। मात्र 2 से 4 चीरे ही मुख्य शाखा को छोड़कर अन्य शाखाओं पर लगाए जाना चाहिए लेकिन अज्ञानतावश आदिवासी बहुत बड़े-बड़े कट लगाकर रस एकत्र करने की कोशिश करते हैं। इससे पेड़ को क्षति पहुंचती है। इस कारण यह प्रजाति लगातार समाप्त होते हुए आज खतरे में पड़ चुकी है। वन विभाग ने इसी अज्ञानता को दूर करने के लिये त्वरित प्रयास आरंभ किये हैं।

गुग्गल के लिये सुप्रसिद्ध दवा कंपनी डाबर से अनुबंध भी किया है

अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री पी.सी. दुबे ने बताया कि गुग्गल उत्पादन के लिये मेल-फीमेल दोनों पेड़ों का होना आवश्यक है परंतु तीनों जिलों में हुए सर्वेक्षण में मेल पेड़ नहीं मिला। संभवत: अत्यधिक दोहन और अज्ञानतावश ये नष्ट हो गये हैं। मुरैना में हुई कार्यशाला में डॉ. तोमर ने 40-50 मेल गुग्गल पौधे देने का आश्वासन दिया है। वहीं एएफआरआई की वैज्ञानिक डॉ. अर्चना शर्मा क्षेत्र में गुग्गल उपार्जन से संबंधित सभी परिस्थिति और संभावनाओं का अध्ययन कर रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगी। गुग्गल के संरक्षण और उत्पादन में वर्षों से प्रयासरत श्री जाकिर हुसैन ने भी इस कार्य में हरसंभव शासन की मदद का आश्वासन दिया। मुरैना में रहने वाले श्री हुसैन ने गुग्गल के लिये सुप्रसिद्ध दवा कंपनी डाबर से अनुबंध भी किया है।

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