आदिवासी समुदाय के समक्का-सारालम्मा जातरा को यूनेस्कों ने घोषित किया है सांस्कृतिक धरोहर
तेलंगाना। गोंडवाना समय।
तेलंगाना में वारंगल से 100 किमी दूर मेडारम नामक स्थान पर आदिवासियों की माता-पुत्री देवियों, समक्का-सारालम्मा के प्रति श्रद्धा और स्मृति के लिए विशाल जातरा (मेला) चल रहा है। यह जातरा हर दूसरे वर्ष आयोजित होता है। इस साल यह जात्रा 5 से 8 फरवरी तक अयोजित है। यह दक्षिण भारत का सबसे बड़ा आयोजन है। यहां कुम्भ के बाद सर्वाधिक संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। इस साल लगभग 1 करोड़ 30 लाख श्रद्धालुओं के यहां सम्मिलित होने का अनुमान है।
कोया समुदाय और काकतीय सेना का हुआ संघर्ष से जुड़ा है इतिहास
इसका इतिहास लगभग 600-700 वर्ष पुराना है। 13 वीं शताब्दी में इस क्षेत्र में जब कोया आदिवासी जंगल मे शिकार पर थे, उन्हें वहां एक बच्ची मिली जिसे वे अपने साथ ले आये। उनके मुखिया ने उस बच्ची को पाला और नाम दिया समक्का। युवा होने पर समक्का अपने कबीले का नेतृत्व करने लगी। उसका विवाह पगिदिद्दा राजू के साथ हुआ जो वारंगल की काकतीय सेना में आदिवासी टुकड़ी का नायक था। उनके दो लड़कियां, सारालम्मा और नागुलम्मा और एक पुत्र जम्मपन्ना हुए। इसी समय अकाल पड़ा। गोदावरी तक में पानी कम हो गया था। इस स्थिति में तत्कालीन काकतीय राजा प्रताप रुद्रदेव ने कर बढ़ा दिया। इसका कोया समुदाय ने विरोध किया,
फलस्वरूप राजा ने अपनी सेना भेजी। कोया आदिवासियों और काकतीय सेना का संघर्ष हुआ। कोया समुदाय का नेतृत्व मां समक्का, उसकी पुत्री सारालम्मा और पुत्र जम्पन्ना ने किया। इस युद्ध में जम्पन्ना मारा गया और इसी मेडारम गांव के पास गोदावरी के प्रवाह में वह डूब गया। यह स्थान आज जम्पन्ना वागू कहलाता है जहां श्रद्धालु स्नान करते हैं। आज यह केदारनाथ के बाद सर्वाधिक श्रृद्धालुगणों के पहुंचने वाला स्थान है। इस संघर्ष में समक्का और सारक्का की भी मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद कोया समुदाय द्वारा समक्का-सारलम्मा देवी की याद में प्रति दो वर्ष में इस जातरा का आयोजन किया जाता है। जहां यह देवियां स्थापित हैं, वह स्थान गद्दे कहलाता है। यहां इन मां-बेटी देवियों को गुड़ अर्पित किया जाता है।
तेलंगाना सरकार ने इसके लियेय किया है 75 करोड़ की राशि आबंटित
इस वर्ष तेलंगाना सरकार ने इसके लिए 75 करोड़ की राशि आबंटित की है। यहां की व्यवस्था दो आईजी और छह एसपी स्तर के अधिकारी संभाल रहे हैं। हैदराबाद के लिए विशेष हवाई सेवा और आगे के लिए विशेष ट्रेन एवं बस की व्यवस्था है। यहां मध्य और दक्षिण भारत के आदिवासी श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। इस जातरा को यूनेस्को ने सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया है। यह विश्व का सबसे बड़ा आदिवासी आयोजन है। यह जातरा कुम्भ मेले की बराबरी कर रहा है लेकिन इसके बाद भी खबरी दुनिया से यह कोसो दूर है यानि आदिवासियों के सरोकारों समाचार जगत भी दूरी बनाया हुआ है। बहरहाल, दिल्ली से इतर भी भारत है, जो बहुत सुंदर है। यहां का इतिहाहस जानना भी निश्चित ही अनिवार्य व आवश्यक है।