जनगणना और धर्म कोड को लेकर 18 फरवरी को दिल्ली में होगा धरना प्रदर्शन
नई दिल्ली। गोंडवाना समय।
आदिवासी इंडीजीनियस रिलेजन्स को-आॅर्डिनेशन समिति नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव तरूण कुमार नेताम ने जानकारी देते हुये बताया कि भारत की जनगणना अंग्रेजो के शासन के समय वर्ष 1871-72 में शुरू हुई तब से जनगणना प्रत्येक दस वर्ष में की जाती है। भारत में जनगणना अंतिम बार वर्ष 2011-12 में हुई है तथा वर्ष 2021-22 में पुन: जनगणना किया जाना है। इस देश में आदिवासियों की जनगणना वर्ष 1871-1872 से वर्ष 1951-52 तक से होती थी। जिसे स्वतंत्र भारत में साजिश के तहत वर्ष 1961-62 की जनगणना प्रपत्र से हटा दिया गया। विदित हो की भारत का संविधान एवं सरकारी रिपोर्ट के अनुसार आदिवासियों की परंपरा एवं संस्कृति अन्य धर्मो से भिन्न और अलग है अतएव उन्हें विलुप्त कर देना प्राकृतिक न्याय के विरूद्ध है।
आदिवासियों की अलग से जनगणना प्रपत्र में गणना नहीं करना चिंता का विषय
आदिवासी इंडीजीनियस रिलेजन्स को-आॅर्डिनेशन समिति नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव तरूण कुमार नेताम ने जानकारी देते हुये आगे बताया कि भारत की जनगणना रिपोर्ट वर्ष 2011 के अनुसार आदिवासियों की संख्या लगभग 12 करोड़ है जो देश के कुल आबादी का 9.92 प्रतिशत है । इसके बावजूद जनगणना प्रपत्र में अलग से गणना नहीं करना चिंता का विषय है। वर्तमान में भारत देश में 781 समुदाय के आदिवासी समाज सगाजन निवासरत है। जिनके द्वारा हिंदु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध छह धर्माें सहित जनगणना प्रपत्र में कुल 83 कॉलम भरे जा रहे है।
रूढ़ीवादी प्रथा को कायम रखने हेतु आदिवासियों की जनगणना अलग से होनी चाहिये
आदिवासी इंडीजीनियस रिलेजन्स को-आॅर्डिनेशन समिति नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव तरूण कुमार नेताम ने जानकारी देते हुये आगे बताया कि आदिवासियों को रूढ़ीप्रथा पर विधि का बल प्राप्त है जिसके कारण आदिवासी समाज अपनी पहचान, अपनी पंरपरा, अपनी संस्कृति व मान्यता को बचाये रखा है। जिसे संरक्षित व सुरक्षित करने के उद्देश्य से सभी आदिवासी समाज संगठित होकर विगत 4 वर्षों से निरंतर राष्ट्रीय स्तर पर जगह-जगह पर सेमीनार आयोजित कर जागरूक कर रहे है। रूढ़ीवादी प्रथा को कायम रखने हेतु आदिवासियों की जनगणना अलग से होनी चाहिये।
यह आदिवासी समुदाय के लिये है चिंता का विषय
आदिवासी इंडीजीनियस रिलेजन्स को-आॅर्डिनेशन समिति नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव तरूण कुमार नेताम ने जानकारी देते हुये आगे बताया कि इस हेतु अण्डमान निकोबार के सेमीनार में एक समिति गठित किया गया। जिसमें सभी राज्यों के आदिवासियों द्वारा जनगणना प्रपत्र में ट्राईबल शब्द लिखने हेतु सहमति बनी है। ट्राईबल शब्द पूर्णत: संवैधानिक है एवं संवैधानिक रूप से जनगणना प्रपत्र में आदिवासियों की जनगणना अलग से होनी चाहिये। चूंकि राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में आदिवासी बहुसंख्यक है किंतु हमारी जनगणना कम बताई जाती है, यह आदिवासी समुदाय के लिये चिंता का विषय है।
अन्यथा आने वाले समय में आदिवासियों का अस्तित्व एवं अस्मिता खतरे में पड़ जायेगा
आदिवासी इंडीजीनियस रिलेजन्स को-आॅर्डिनेशन समिति नई दिल्ली के राष्ट्रीय सचिव तरूण कुमार नेताम ने जानकारी देते हुये आगे बताया कि जिसके कारण राष्ट्रीय आदविासी इंडीजीनियस धर्म समन्वय समिति नई दिल्ली के तत्वाधान में 18 फरवरी 2020 को भारत के सभी आदिवासी समुदाय के द्वारा जनगणना प्रपत्र में ट्राईबल शब्द लिखे जाने हेतु दिल्ली के जंतर-मंतर में एक दिवसीय धरना प्रदर्शन एवं ज्ञापन केद्र सरकार को सौंपा जावेगा। दिल्ली में आयोजित एक दिवसीय धरना प्रदर्शन कार्यक्रम में इंडीजीनियस धर्म धर्म समन्वय समिति नई दिल्ली भारत के समस्त आदिवासियों से अपील किया है कि इस संवैधानिक मांग को सफल बनाने हेतु अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होवे अन्यथा आने वाले समय में आदिवासियों का अस्तित्व एवं अस्मिता खतरे में पड़ जायेगा।