कमलनाथ की घोषणा के बाद भी साहूकारों की तिजोरी में भरा पड़ा आदिवासियों का सोना-चांदी
योगेन्द्र सिंह बाबा की विधानसभा में हजारों आदिवासी सराफा व्यवसायी के चंगुल में फंसे-पड़े
सिवनी। गोंडवाना समय।
आदिवासी समाज के उत्थान के दावे तो हर सरकार कर रही है लेकिन मैदानी स्तर पर सरकार के दावे सारे खोखले साबित हो रहे हैं। आज भी हजारों की संख्या में आदिवासी समाज लाचारी में जी रहा है और अपने जीवन-यापन करने के लिए उसे कई बार सोना-चांदी तक गिरवी रखना पड़ रहा है। सिवनी जिले में हजारों आदिवासियों का सोना और चांदी सराफा व्यवसायी के चंगुल में फंसा-पड़ा है। अहम व खास बात तो यह है कि प्रदेश की वर्तमान कांग्रेस सरकार के मुखिया ने आदिवासी वर्ग के जेवरात को वापस करने के लिए घोषणा तो कर दी है लेकिन सिवनी जिले के रसूखदार सराफा व्यवसायी अब तक उन जेवरातों को अपनी तिजोरी में ही दबाए हुए हैं। खासकर आदिवासी विकासखंड लखनादौन में जहां बड़ी मात्रा में आदिवासी वर्ग ने सारे के सारे जेवरात व गहने रसूखदारों के यहां तिजोरी में बंद पड़े हुए हैं।
पूरे परिवार के जेवरात गिरवी-
आदिवासी विकासखंड लखनादौन के जूनापानी गांव में रहने वाले आदिवासी राजू पिता इमरत द्वारा मजबूरी व लाचारी के चलते कर्ज लेकर पूरे परिवार के जेवरात को गिरवी रखना पड़ा है। सुहाग की निशानी माने जाने वाला मंगलसूत्र तक सराफा व्यवसायी की तिजोरी में कैद है। इसी तरह लखनादौन विकासखंड के भरगा के महेश पिता गनाराम के परिवार के सारे जेवरात करधन, कालीपोत, सोने की अंगूठी, छलबल, गजड़ा, पायल, बिछिया, पायल, तोड़ा, सोने की ताबिज लखनादौन क्षेत्र के रसूखदारों की तिजोरी में कैद पड़े हुए हैं।
मुख्यमंत्री ने की घोषणा, प्रशासन बैठा शांत
प्रदेश की कांग्रेस सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर घोषणा किया था कि साहूकारों व सराफा व्यवसायियों की तिजोरी में कैद आदिवासी समाज के सोना-चांदी के जेवरात को वापस कराए जाएंगे। मुख्यमंत्री की घोषणा किए हुए तकरीबन छह महीने हो गए हैं लेकिन जिले में मुख्यमंत्री कमलनाथ की घोषणा पर अमलीजामा नहीं पहनाया गया है। जिले में मौजूद कांग्रेस सरकार के आदिवासी विधायक योगेन्द्र सिंह बाबा और अर्जुन सिंह काकोड़िया भी कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं और न ही जिला प्रशासन मुख्यमंत्री कमलनाथ की घोषणा को लेकर गंभीर नजर आ रहा है। यही वजह है कि लखनादौन विकासखंड में हजारों आदिवासियों के जेवरात साहूकारों की तिजोरी में कैद हैं और उनके जेवरात के एवज में मनमाना ब्याज वसूल रहे हैं।
200 से 300 रुपए के कर्ज के लिए भी आदिवासियों ने रखा जेवरात
आजादी के बाद और तमाम सरकार के विकास के वायदों के बावजूद आदिवासी वर्ग की आर्थिक स्थिति इतनी बदतर है कि उन्हें 200 से 300 रुपए के कर्ज तक के लिए अपने जेवरात को गिरवी रखना पड़ रहा है। इसका एक उदाहरण लखनादौन की सिरोलीपार निवासी गीता टेकलाल है जिसे 200 रुपए के कर्ज के लिए 22 ग्राम का
जेवरात गिरवी रखना पड़ा है। इसी तरह लखनादौन के ही दादरटोला निवासी अन्नो बाई पति गयाराम को 300 रुपए की आवश्यकता के लिए चांदी की बिछिया को गिरवी रखा गया है।
हजारों आदिवासियों के जेवरात साहूकारों की तिजोरी में कैद-
छपारा, लखनादौन, आदेगांव, घंसौर क्षेत्र के सराफा व्यवसायी व साहूकारों के कर्ज में डूबे हुए हजारों आदिवासियों की सूची गोंडवाना समय के पास मौजूद हैं। गिरवी रखने वाले आदिवासियों के नाम के साथ-साथ गिरवी रखे गए जेवरात की रसीद क्रमांक और गिरवी रखने वाले सराफा व्यवसायी व रसखूदारों के नाम की सूची भी मौजूद रखी गई है जिसका खुलासा गोंडवाना समय में लगातार किया जाएगा ताकि मुख्यमंत्री की घोषणा के बावजूद कुम्भकरणीय नींद में सोया हुआ प्रशासन जाग जाए। इस संबंध में कांग्रेस के जिला अध्यक्ष राजकुमार खुराना ने कलेक्टर से बात कर मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुसार जिले में कार्रवाई करवाने का आश्वासन दिया है।