जनजाति वर्ग के साथ शिवराज सरकार ने किया 15 वर्ष तो कमल नाथ सरकार कर रही 1 वर्ष से सौतेला व पक्षपातपूर्ण व्यवहार
भाजपा के बाद कांग्रेस सरकार में लोक सेवा आयोग में जनजाति वर्ग का सदस्य का पद आज भी पड़ा है रिक्त
लोक सेवा आयोग में जनजाति वर्ग के सदस्य का पद रिक्त रखने का जो बीड़ा पूर्व की भाजपा की सरकार ने उठाया था उसी तर्ज पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमल नाथ भी पूरी ईमानदारी व जिम्मेदारी के साथ निभा रहे है अर्थात कमल नाथ सरकार ने एक वर्ष बीत जाने के बाद भी लोक सेवा आयोग में सदस्य पद को रिक्त रखते हुये जनजाति वर्ग के साथ सौतेला व पक्षपातपूर्ण व्यवहार निभाते चले आ रहे है।
इंदौर/सिवनी। गोंडवाना समय।
पूरे देश में आदिवासियों की जनसंख्या सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में है और आदिवासियों के बल पर ही सिर्फ आरक्षित सीट नहीं है वरन सामान्य सीटों में भी आजादी के बाद से कांग्रेस और तीन पंचवर्षीय भाजपा राजपाठ शासन सत्ता चलाते आई है वहीं पिछले एक वर्ष से वक्त है बदलाव का नारा देकर कांग्रेस फिर मध्य प्रदेश सत्ता में काबिज होने पर कामयाब हो गई है और कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में आदिवासियों को लेकर अनेक लोक लुभावने वायदा भी किया है जिन्हें पूरा करने में कमल नाथ सरकार भी कच्छप गति से चाल रही है। बीते दिनों 12 जनवरी 2020 को पीएससी की परीक्षा के बाद में भील जनजाति को लेकर पूछे गये अपमानजनक टिप्पणी करते हुये सवाल का जवाब मध्य प्रदेश सरकार के पास भी नहीं है क्योंकि प्रमुख जिम्मेदारों को बचाने की कवायद भाजपा सरकार की भांति कांग्रेस सरकार भी बखूबी कर रही है। जांच का आश्वासन देकर पर्याप्त समय देकर सम्माननीय न्यायालय के सहारे प्रमुख रूप से जिम्मेदारों को राहत भी मिल गई है अर्थात उन्हें क्लीन चिट मिल गई है। बहरहाल यह जनजाति वर्ग के साथ अपमानजनक कृत्य का यह कोई पहला मामला नहीं है। जनजाति वर्ग के साथ लिखित, सार्वजनिक रूप से अपमानजनक कृत्य होते ही रहते है त्वरित विरोध होता है, सरकार की पिठ्ठुओं और समाज के कर्णधारों की मौन स्वीकृति ऐसे कृत्य करने वालों को बढ़ावा देती है और किसी ने सच ही कहा है कि अत्याधिक तकलीफ, अन्याय, अत्याचार, शोषण के बाद भी जो ऊंह, आह, आऊच न करे या प्रतिकार न करें उसे आदिवासी समाज कहते है। वह समय भी और कुछ ही था जब सिद्धु कान्हू, बिरसा मुण्डा, टंटया मामा, राजा शंकर शाह, कुंवर रघुनाथ सहित अन्य अनेक ऐसे आदिवासी वीर बलिदानी है जिनके नाम से ही अंग्रेजी हुकुमत थर थर कांपती थी।
लोक सेवा आयोग में जनजाति वर्ग के सदस्य की नियुक्ति की किया मांग
अब हम आपको बता दे कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग में अनुसूचित जनजाति वर्ग के सदस्य के नियुक्ति को लेकर आदिवासी कर्मचारी अधिकारी संगठन आकास इंदौर के द्वारा पूर्व से ही अनेकों बार मांग की जाती रही है, वहीं अब फिर मध्य प्रदेश के आदिवासियों के हितेषी मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ को पत्र लिखकर मांग किया है। जिसमें उन्होंने भारतीय संविधान के भाग-14 के अनुच्छेद-315 एवं 316 के प्रावधान अनुसार एवं म प्र शासन सामान्य प्रशासन विभाग/मंत्रालय वल्लभ भवन भोपाल के पत्र क्रमांक एफ 7-5/2019/आ.प्र/एक भोपाल, दिनांक 3 जुलाई, 2019 एवं इस कार्यालय का ज्ञापन क्रमांक आकास/2019/495 दिनांक 24/12/2019 के आधार पर लोक सेवा आयोग में जनजाति आयोग के सदस्य की नियुक्त की मांग किया है।
पूर्व सरकार की भांति वर्तमान सरकार भी अपना रही पक्षपातपूर्ण रवैय्या
हम आपको बता दे कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ से मांग करते हुये श्री डी एस चौहान प्रांतीय कार्यकारी अध्यक्ष आदिवासी कर्मचारी अधिकारी संगठन मध्य प्रदेश आकास इंदौर ने अपने पत्र में उल्लेख किया है कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग इंदौर में अनुसूचित जनजाति वर्ग का प्रतिनिधित्व हेतु सदस्य की नियुक्ति विगत 15 वर्षों से नहीं की गई है तथा पद को रिक्त रखते हुये इस वर्ग के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार गठित होने के एक वर्ष बाद भी लोक सेवा आयोग में अनुसूचित जनजाति वर्ग के सदस्य की नियुक्त आज दिनांक तक नहीं की गई है। यह स्थिति अत्यंत गंभीर एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के साथ मध्य प्रदेश सरकार द्वारा सौतेला एवं पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाना परिलक्षित होता है। मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग में अनुसूचित जनजाति वर्ग के सदस्य की नियुक्ति मध्य प्रदेश शासन द्वारा नहीं किये जाने के कारण आयोग द्वारा आयोजित की जाने वली लिखित एवं साक्षात्कार से संबंधित विभिन्न परीक्षाओं में इस वर्ग के अभ्यिर्थयों के साथ विगत कई वर्षों से पक्षपात हो रहा है।
शेष 555 बैकलॉग पदों के मामले में भी नहीं लिया संज्ञान
आदिवासी कर्मचारी अधिकारी संगठन आकास इंदौर के प्रांतीय कार्यकारी अध्यक्ष डी एस चौहान व संगठन के द्वारा जनजाति वर्ग के मामले में युवा वर्ग हो या जनजाति वर्ग के सदस्य की नियुक्ति का ही मामला हो ऐसे गंभीर प्रकरणों में सतत सक्रियता के साथ सरकार के संज्ञान में लाने में हमेशा प्रयास किया है। इसी तारतम्य में आदिवासी कर्मचारी अधिकारी संगठन आकास इंदौर का कहना है कि मध्य प्रदेश लोक सेव आयोग में अनुसूचित जनजाति वर्ग के सदस्य के नियुक्त नहीं किये जाने से अनुसूचित जनजाति वर्ग के साथ पक्षपात हो रहा है जिसका प्रमाण यह है कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सेट परीक्षा-2016 का परीक्षा परिणाम त्रुटिपूर्ण रूप से 7.5 प्रतिशत आरक्षण के अनुसार घोषित होने से 555 पद रिक्त रह गये। जबकि मध्य प्रदेश आरक्षण नीति-1994 के प्रावधान अनुसार सेट परीक्षा 2016 का परीक्षा परिणाम अनुसूचित जनजाति वर्ग से 20.5 प्रतिशत अभ्यर्थी पात्र किया जाना चाहिये था। शेष 13 प्रतिशत (20.5 प्रतिशत-7.5 प्रतिशत=13 प्रतिशत) हेतु सेंट परीक्षा-2016 का पृथक से संशोधित परीक्षा-2017 के विज्ञापन क्रमांक 07/2017/12.12.2017 में अनुसूचित जनजाति के 991 पदों में से 436 पदों पर चयन पश्चात शेष 555 बैकलॉग पदों के विरूद्ध चयन करने हेतु मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग एवं उच्च शिक्षा विभाग को निर्देशित किया जाना अपेक्षित है। इतना ही नहीं इस संबंध में 19 दिसंबर 2019 को भी पत्र मध्य प्रदेश शासन के मुख्यमंत्री श्री कमल नाथ द्वारा पत्र लिखा गया था लेकिन कोई संज्ञान नहीं लिया गया ।
भील जनजाति को लेकर पूछा आपत्तिजनक प्रश्न
श्री डी एस चौहान प्रांतीय कार्यकारी अध्यक्ष आदिवासी कर्मचारी अधिकारी संगठन मध्य प्रदेश ने अपने पत्र में यह भी उल्लेख किया है कि इसी प्रकार बीते दिनों 12 जनवरी को 2020 को आयोजित हुई राज्य सिविल सेवा-2019 में भील जनजाति पर आपत्तिजनक प्रश्न पूछते हुये भील समाज को अनैतिक कार्यों में सलिप्त रहने वाला आपराधिक एवं शराबी प्रवृत्ति का दर्शाया गया है। जो सर्वथा अनुचित व सरारत गलत, आधारहीन है और भील जनजाति के साथ अपमान भी है जबकि भील जनजाति के इतिहास से सिर्फ भारत ही नहीं विश्व भी परिचित है।
अपर मुख्य सचिव ने भी दिया था आदेश
हम आपको बता दे कि सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री प्रेम चंद मीना ने भी आदेश करते हुये पत्र क्रमांक 7-5/2019/आ.प्र./एफ, भोपाल दिनांक 3 जुलाई 2019 को मध्य प्रदेश शासन सामान्य प्रशासन विभाग मंत्रालय वल्लभ भवन भोपाल के अपर मुख्य सचिव श्री प्रेम चंद मीना ने भी साक्षात्कार एवं चयन समिति में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व दिये जाने हेतु पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने मध्य प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गो के लिये आरक्षण) अधिनियम 1994 की धारा-8 में प्रदत्त शक्तियों के अंतर्गत राज्य शासन द्वारा प्रत्येक विभाग के अधीन गठित साक्षात्कार एवं पदोन्नति समिति में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग क पृथक-प्रथक प्रतिनिधित्व अनिवार्य किया जाता है।