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जनजातियों की संस्कृति को ट्राइबल फोटोग्राफी की जरिए कैमरे में कैद कर रहे सिद्धांत धुर्वे

जनजातियों की संस्कृति को ट्राइबल फोटोग्राफी की जरिए कैमरे में कैद कर रहे सिद्धांत धुर्वे

बालाघाट। गोंडवाना समय। 
जनजातियों की संस्कृति व प्राकृतिक सौंदर्यता की फोटोग्राफी में सिद्धांत शाह धुर्वे का हाथ कैमरों में बीते 8 वर्षों में ऐसा रम गया है कि दूर हो या पास जिस तरह की फोटो खींचते है कि फोटो को देखकर वास्तविकता नजर आती है।
इसके साथ ही अपने कैमरों में ऐसी फोटो कैद कर लेते है वैसे दृश्य कम ही देखने को मिलता है। सिद्धांत धुर्वे विशेषकर जनजाति वर्ग की संस्कृति को आगामी पीढ़ियों तक देखने व जानने के लिये ट्राइबल फोटोग्राफी पर विशेष कार्य कर रहे है। हम आपको बता दे कि मूलत: किरनापुर जिला बालाघाट के निवासी सिद्धांत शाह धुर्वे 21 वर्षीय युवा है और पर्यटन प्रबंधन में अपना कैरियर बनाने के साथ साथ बीते 8 वर्षों से वह फोटोग्राफी कर रहे है।

दुर्लभ फोटोज को कैमरे में कर लेते है कैद

सिद्धांत धुर्वे ने जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों में और प्राकृतिक सौंदर्यता व जंगल क्षेत्र में वन्य प्राणियों की दुर्लभ फोटो अपने कैमरे में कैद कर चुके है।
सिद्धांत शाह धुर्वे ने अपने कैमरे में जो फोटो को कैद किया है उनमें कुछ ऐसी फोटो है जिनमें वास्तविकता की झलक अलग ही दिखाई देती है। जनजाति दंपत्ति जो कि अपने घरों में या अपने क्षेत्र में बैठे हुये या कुछ कार्य करते हुये उनकी फोटोग्राफी किया है। इसके साथ ही घर के अंदर झुकी उम्रदराज महिला की बहुत ही सुंदर और झुकी हुई लकड़ी टेके हुये फोटोग्राफी भी अपने आप में फोटोग्राफी की कला को बया करती है।

यहां हो चुका है सम्मान 

सिद्धांत शाह धुर्वे की उम्र अभी 21 वर्ष है और वह वर्ष 2012 से फोटोग्राफी कर रहे है। भोपाल में आई एक्यूविजन में तीसरा स्थान प्राप्त कर चुके है। इसके साथ ट्राईबल उत्सव रायपुर में भी उनका सम्मान हो चुका है।

जनजातियों की संस्कृति को सहेजने कर रहे फोटोग्राफी

कल्चर वाईल्ड लाइफ फोटोग्राफी का नाम तो बहुत चल रहा है लेकिन ट्राइबल फोटोग्राफी का नाम देकर जनजातियों की संस्कृति धरोहर विरासत को संजोने और भावी पीढ़ि को ऐतिहासिक प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध करवाने में सिद्धांत शाह धुर्वे में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है।
इसके लिये जनजाति वर्गों के दुर्गम क्षेत्रों में जाकर दुर्लभ फोटोग्राफी करते हुये उन्हें सामने लाने का प्रयास कर रहे है।
वहीं सिद्धांत शाह धुर्वे ने गोंडवाना समय से चर्चा करते हुये बताया कि युवा पीढ़ि जनजातियों की संस्कृति और विरासत से दूर भाग रही है, जबकि उन्हें तो विशेष रूप से अपनी संस्कृति को बचाने के लिये आगे आकर कार्य करना चाहिये।
वहीं सिद्धांत शाह धुर्वे ने अपना मिशन और लक्ष्य बना लिया है कि वह जनजातियों की संस्कृति को सहेजेंगे ताकि आने वाली पीढ़ि के साथ साथ देश दुनिया को दिखा सके कि जनजातियों की संस्कृति में कितनी सत्यता और वास्तविकता है और कितनी सौंदर्यता है। 

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