यदि मां नर्मदा, पुर्नविस्थापन, लागत, मानव-जीव-जंतु की है चिंता तो चुटका परियोजना पर पुनर्विचार अति आवश्यक
विगत 30 वर्षों से अमेरिका ने अपने यहां एक भी नये परमाण्ुा ससंत्र की स्थापना नहीं किया
सौर ऊर्जा एक स्वच्छ व पर्यावरण हितैषी ऊर्जा स्त्रोत है
मध्य प्रदेश में मांग से ज्यादा बिजली का हो रहा उत्पादन
जिसकी भरपाई बिजली दर बढ़ाकर उपभोक्ताओं से वसूली जा रही
लेखक
राज कुमार सिन्हा
बिजली का क्षेत्र एक अत्यंत महत्वपुर्ण क्षेत्र है। एक ओर इससे करोड़ों लोगों को रोशनी मिलती है तथा दूसरी ओर खेती, धंधे, उदयोग आदि भी बिजली पर निर्भर है। इन्डियन इलेक्ट्रीसिटी एक्ट 1948 का उद्देश्य था कि सभी को उचित दर पर सतत बिजली उपलब्ध कराना। देश में बिजली की स्थापित उत्पादन क्षमता 3 लाख 44 हजार मेगावाट है, जबकि उच्चतम मांग 1 लाख 65 हजार मेगावाट। कुल बिजली उत्पादन में थर्मल पावर (57.3 प्रतिशत), जल विद्युत (14.5 प्रतिशत), वायु ऊर्जा (9.9 प्रतिशत), गैस (7.2 प्रतिशत), सौर ऊर्जा (6.3 प्रतिशत), बायोमास (2.6 प्रतिशत) तथा परमाणु बिजली (2.0 प्रतिशत) की हिस्सेदारी है। म॰प्र॰ में बिजली की औसत
मांग 8 से 9 हजार मेगावाट है तथा रवी फसल की सिंचाई के समय उच्चतम मांग 11 हजार 500 मेगावाट है, जबकि उपलब्धता 18 हजार 364 मेगावाट अर्थात मांग से ज्यादा बिजली प्रदेश में उपलब्ध है। उपलब्ध क्षमता से आधी बिजली की मांग पर गहन विमर्श की आवश्यकता है।
चुटका को अभी तक नहीं मिली पर्यावरणीय मंजूरी
नर्मदा नदी पर बना पहला बरगी बाँध से विस्थापित गाँव चुटका मंडला, मध्यप्रदेश में चुटका परमाणु ऊर्जा परियोजना प्रस्तावित है। देश में वर्तमान बिजली व्यवस्था व तुलनात्मक रूप से अन्य स्त्रोतों से कम दर पर बिजली की उपलब्धता पूरी परियोजना पर प्रश्न लगाती है। वर्ष 2005 में अमेरिका द्वारा भारत पर लगे नाभिकीय प्रतिबंध हटाए गये थे, तब से अब तक अपराम्परीक ऊर्जा विशेष कर पवन व सौर ऊर्जा के क्षेत्र में आये भारी भरकम बदलाव के कारण चुटका परियोजना पर नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता है। इस परियोजना को अभी तक पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त नहीं हुआ है।जबकि सौर ऊर्जा लगभग 4 करोड़ प्रति मेगावाट में बनती है
जिस समय 1400 मेगावाट की चुटका परियोजना को योजना आयोग से मंजूरी मिली थी, तब सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करना मंहगा होता था, आज स्थिति बदल गई है। परियोजना की अनुमानित लागत 16 हजार 550 करोड़ निर्धारित किया गया है। परियोजना खर्च के आधार पर 1 मेगावाट बिजली उत्पदन की लागत लगभग 12 करोड़ आयेगी, जबकि सौर ऊर्जा लगभग 4 करोड़ प्रति मेगावाट में बनती है। सौर ऊर्जा संयत्र दो वर्ष के अन्दर कार्य प्रारम्भ कर देगा, वहीं परमाणु बिजली घर बनाने में कम से कम दस वर्ष लग जाएंगे।तो परमाणु विद्युत की लागत लगभग 20 रुपए प्रति यूनिट आयेगी
नई दिल्ली कि एक संस्था आब्जर्रबर रिसर्च फाउन्डेशन की रिपोर्ट के अनुसार विदेशी परमाणु संयत्र से वितरण कंम्पनियों द्वारा खरीदी जाने वाली बिजली की लागत रुपए 9 से 12 प्रति यूनिट तक आयेगी, जिस पर अभी तक कोई सहमति भारत सरकार व उपकरण प्रदायकर्ता के मध्य नहीं बनी है। वहीं 40 वर्ष तक चलने वाले परमाणु संयत्र की डी-कमिशनिंग आवश्यक होगी, जिसका खर्च संयत्र स्थापना खर्च के बराबर होगा। यदि इसका भी हिसाब लगाया जाए तो परमाणु विद्युत की लागत लगभग 20 रुपए प्रति यूनिट आयेगी। यदि महंगी बिजली के परिप्रेक्ष्य में अन्य विकल्प पर विचार किया जावे तो म॰प्र॰ शासन द्वार रीवा जिले के त्यौथर तहसील में 750 मेगावाट का सोलर विद्युत परियोजना हेतु अन्तराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मक बोली के तहत मात्र रुपए 2.97 प्रति यूनिट दर पर बिजली खरीदने का अनुबंध 17 अप्रेल 2017 को भोपाल में किया गया है।तो वो कम खर्च में ज्यादा परिणाम देगा
भारत सरकार द्वारा संशोधित टैरिफ पॉलिसी 2016 के अनुसार किसी भी नये सार्वजनिक उपक्रम से विद्युत वितरण कम्पनियों को प्रतिस्पर्धातमक बोली के आधार पर ही बिजली खरीदने की अनिवार्यता है। चुटका परियोजना हेतु ऐसी किसी प्रक्रिया का प्रारम्भ परमाणु ऊर्जा निगम द्वारा नहीं किया गया है। म॰प्र॰ पॉवर मेनेजमेन्ट कम्पनियों द्वारा निजी विद्युत कम्पनियों से मंहगी बिजली खरीदी अनुबंध के कारण 2014-15 तक एकत्रित घाटा 30 हजार 280 करोड़ तथा सितम्बर 2015 तक कुल कर्ज 34 हजार 739 करोड़ हो गया है, जिसकी भरपाई बिजली दर बढ़ाकर प्रदेश की 1 करोड़ 35 लाख उपभोक्ताओं से वसूली जा रही है। उत्पादन के स्थान से उपभोक्ताओं तक पहुँचते-पहुँचते 30 फिसदी बिजली बर्बाद हो जाता है जो अन्तराष्ट्रीय मापदंडो से यह बहुत ज्यादा है। जितना पैसा और ध्यान परमाणु बिजली कार्यक्रम पर लगाया जा रहा है, उसका आधा भी पारेषण- वितरण हानियां कम करने पर लगाया जाएगा तो यह बिजली उत्पादन बढ़ाने जैसा ही होगा। नई परियोजना को लगाने की बजाए जो परियोजना स्थापित है उसकी कुशलता बढ़ाई जाए तो वो कम खर्च में ज्यादा परिणाम देगा।भारत में 6 परमाणु बिजली घर बनना प्रस्तावित
सौर ऊर्जा एक स्वच्छ व पर्यावरण हितैषी ऊर्जा स्त्रोत है जबकि परमाणु ऊर्जा तुलनात्मक दृष्टी से पुर्णत: असुरक्षित है। फुकुशिमा की घटना के बाद जापान और जर्मनी ने परमाणु बिजली संयत्र को बंद करने का फैसला किया है। इटली ने चेरनोबील की दुर्घटना के बाद ही अपने कार्यक्रम को बंद कर दिया था। कजकिस्तान ने 1999 में और लिथुआनिया 2009 में अपने एक मात्र रियेक्टर को बंद कर दिया है। विगत 30 वर्षों से अमेरिका ने अपने यहां एक भी नये परमाण्ुा ससंत्र की स्थापना नहीं किया है। दरसल परमाणु बिजली उद्योग में जबरदस्त मंदी है। इसलिए अमेरिका, फ्रांस और रूस आदि की कम्पनियाँ भारत में इसके ठेके और आर्डर पाने के लिए बेचैन है। भारत में 6 परमाणु बिजली घर बनना प्रस्तावित है, उसमें से हरिपुर को पश्चिम बंगाल की सरकार ने निरस्त कर दिया है तथा मिठीविर्दी, गुजरात में स्थानिय लोगों के विरोध के कारण कोवाडा, आन्ध्रप्रदेश ले जाया गया है।जिससे जैव विविधता पर प्रतिकुल असर पड़ेगा
दूसरी ओर चुटका संयत्र से बाहर निकलने वाले पानी का तापमान समुद्र के तापमान से 5 डिग्री अधिक होगा। तापमान की अधिकता से जलाशय में मौजूद जलीय जीव जंतुओं को खात्मा कर सकता है। जिससे जैव विविधता पर प्रतिकुल असर पड़ेगा तथा विकिरण युक्त निकलने वाले पानी से नदी जहरीली हो जाएगी। आपदा प्रबंधन, भोपाल की रिपोर्ट के अनुसार मंडला जिले की टीकरिया बस्ती के आसपास का क्षेत्र भूकम्प की दृष्टी से अतिसंवेदनशील बताया गया है। वर्ष 1997 मे ंनर्मदा किनोर के इस क्षेत्र में 6.4 रिक्टर स्केल का विनशकारी भूकम्प आ चुका है। ज्ञात हो कि नर्मदा नदी में पानी की मात्रा लगातार घट रही है तथा जल ग्रहण क्षेत्र का उपचार (केचमेन्ट एरिया ट्रीटमेंट) नहीं होने के कारण भारी मात्रा में मिट्टी (गाद) से जलाशय में भर रहा है। नदी किनारे परियोजना को लगाने की जल्दबाजी प्रदेश को गहरे संकट में तो नही डालेगा?लेखक
राज कुमार सिन्हा
बरगी बाँध विस्थापित एवं प्रभावित संघ, जबलपुर
9424385139