मध्य प्रदेश में आदिवासी मंत्रणा परिषद का हुआ गठन
जनजातियों के विकास के लिये लेंगे निर्णय कहां व्यय हो बजट
विकास कार्यों में व्यय होने वाले बजट की निगरानी भी करेंगे
भोपाल। गोंडवाना समय।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमल नाथ ने समस्त आदिवासी सामाजिक संगठनों एवं कुछ आदिवासी जनप्रतिनिधियों के द्वारा की जाने वाली अनेकों की बार की मांग को मानते हुये मध्य प्रदेश में आदिवासी मंत्रणा परिषद का गठन करने का निर्णय लिया है। आदिवासी मंत्रणा परिषद में मुख्यमंत्री कमल नाथ अध्यक्ष है तो आदिम जाति मंत्री ओमकार मरकाम को उपाध्यक्ष बनाया गया है इसके साथ ही 18 विधायकों को सदस्य नियुक्त किया गया है। हम आपको बता दे कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पूर्व में सिंतबर 2014 में गठित आदिवासी मंत्रणा परिषद को निरस्त करते हुये नये सिरे इसका संविधान की पांचवी अनुसूचि के अंतर्गत आदिम जाति मंत्रणा परिषद/जनजाितय सलाहकार परिषद का गठन किया है।
कमल नाथ अध्यक्ष व ओमकार मरकाम उपाध्यक्ष सहित 18 विधायक सदस्य नियुक्त
मुख्यमंत्री कमलनाथ अध्यक्ष, ओमकार मरकाम मंत्री आदिम जाति कल्याण उपाध्यक्ष, फुन्देलाल सिंह मार्कों विधायक पुष्पराजगढ़, विजय राघवेंद्र सिंह विधायक बड़वारा, भूपेन्द्र मरावी विधायक शहपुरा, नारायण सिंह पट्टा विधायक बिछिया, संजय उईके विधायक बैहर, अर्जुन सिंह काकोड़िया विधायक बरघाट, योगेन्द्र सिंह बाबा विधायक लखनादौन, निलेश पूसाराम उईके विधायक पांढुर्णा, ब्रम्हा भलावी विधायक घोड़ाडोंगरी, श्रीमती सुमित्रा देवी विधायक नेपानगर, श्रीमती झूमा सोलंकी भीकनगांव, ग्यारसीलाल रावत विधायक सेंधवा, सुश्री चंद्रभागा किराडे विधायक पानसेमल, सुश्री कलाबती भूरिया विधायक जोबट, वीर सिंह भूरिया विधायक थांदला, प्रताप ग्रेवाल विधायक सरदारपुर, डॉ हीरालाल अलावा विधायक मनावर, हर्ष विजय गेहलोत गुड्डु विधायक सैलाना सहित सभी 18 विधायकों को सदस्य बनाया गया है ।
भाजपा की सरकार में नहीं हुई थी कोई मीटिंग तो मेट्रों में खर्च कर दिया था बजट
आदिवासियों के हितैषी होने का दावा करने वाली भाजपा की सरकार में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में आदिवासी मंत्रणा परिषद टीएसपी की कोई भी मीटिंग आयोजित नहीं की गई थी जबकि प्रति वर्ष में 4 मीटिंग होनी चाहिये थी। आदिवासी मंत्रणा परिषद की सलाह के बिना ही जनजातियों के लिये आने वाला बजट व्यय कर दिया गया । यहां तक जनजातियों के लिये आने बजट इंदौर मेट्रों में भी व्यय कर दिया गया ।
टीएसपी का सही हुआ उपयोग तो होगा 89 ब्लॉकों का होगा विकास
मध्य प्रदेश में आदिवासी मंत्रणा परिषद का गठन किया गया है और जनजाति वर्गों के विकास, कल्याण के लिये आने वाला बजट का ईमानदारी से व्यय होता है ओर उसकी निगरानी की जाती है तो 89 आदिवासी ब्लॉक का समुचित विकास सुनिश्चित हो सकता है । बस जनजातियों के लिये आने वाला बजट भ्रष्टाचार की भेंट न चढ़े ।
यहां पर व्यय किया जाये बजट तो हो सकता है वास्तविक विकास
मध्य प्रदेश के आदिवासी ब्लॉकों जनजातियों के उत्थान, कल्याण, विकास के लिये आने वाले बजट में शिक्षा, स्वरोजगार, स्वास्थ्य, संस्कृति, पेयजल, सड़क, बिजली, खेती किसानी, सहित अच्छे आवासीय विद्यालय खोले जाएं, तीरंदाजी तथा अन्य खेलों के लिए अच्छे ट्रेनिंग सेन्टर बनाये जाएं, प्रतिदिन की आवश्यकता के जरूरी सामान कम कीमत पर उपलब्ध हो सके, सस्ता लोकपरिवहन उपलब्ध कराया जाए, इसके साथ ही आदिवासी भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाज के साथ साथ उनकी गढ़ी-महल-किले धरोहर के साथ उनके इतिहास को सुरक्षित-संरक्षित-सौंदर्यीकरण का कार्य किया जाये, वन संपदा, क्षेत्रीय स्तर पर ही हाट बाजार बनाये जाए, विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए इंदौर, भोपाल, जबलपुर के चक्कर न काटना पड़े इसलिए जिला स्तर पर जो युवा कोचिंग संचालित कर रहे है उन्हें आर्थिक सहायता की जाए तब जाकर आदिवासी मुख्य धारा से जुड़ सकता है ।
दिग्विजय सिंह विवाद के कारण तो नहीं हुये उमंग बाहर
आदिवासी मंत्रणा परिषद में मुख्यमंत्री कमल नाथ अध्यक्ष, आदिम जाति कल्याण मंत्री ओमकार मरकाम उपाध्यक्ष सहित 18 विधायकों को शामिल किया गया है। आदिवासी मंत्रणा परिषद में उमंग सिंघार को नहीं लिया गया है जबकि वह वर्तमान में वन मंत्री है और जनजाति वर्ग का वन क्षेत्रों में विशेष स्थान है। इसके चलते वन मंत्री उमंग सिंघार को आदिवासी मंत्रणा परिषद में रखा जाना था, उनके समर्थक दबी जुबान परिषद में नाम नहीं होने के पीछे बीते दिनों पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के विवाद को कारण बता रहे है, हालांकि यह मुख्यमंत्री का अपना स्वमेव निर्णय है कि किसे रखना है किसे नहीं रखना है लेकिन फिर भी उमंग सिंघार समर्थकों में आदिवासी मंत्रणा परिषद में शामिल किये जाने से खलबली तो मची हुई है जो कभी भी बाहर आ सकती है।
परिषद में विधायक अशोक मर्सकोले भी नहीं शामिल
मुख्यमंत्री कमल नाथ ने आदिवासी महापंचायत के पदाधिकारी और विधायक अशोक मर्सकोले को परिषद में नहीं लिया है लेकिन भाजपा के विधायकों को आदिवासी मंत्रणा परिषद में शामिल किया है ताकि दोनो दलों का समावेश हो सके लेकिन आदिवासी मंत्रणा परिषद में शामिल किये जाने वाले भाजपा के विधायकों को लेकर राजनैतिक कयास और कुछ ही लगाये जा रहे है । जिन भाजपा के विधायकों को आदिवासी मंत्रणा परिषद में शामिल किया गया है उनको कांग्रेस से मोह होना और भाजपा से मोहभंग होने की चर्चा भी चलने लगी है। बहरहाल आदिवासी मंत्रणा परिषद का गठन जनजातियों के आने वाले बजट के सही उपयोग करने और उनके वास्तविक विकास के लिये किया गया है । अब देखना यह अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सदस्य जनजातियों के बजट को किस तरह, कहां पर व्यय करवाने के बाद निगरानी किस तरह रखेंगे यह भी भविष्य में सामने आ ही जायेगा।
हमारे वय के जनों के लिए ऐतिहासिक घटना...हितैशी भावनाओं के लिए ...समाज की उम्मीदों विश्वाशो के साथ...सहश्रों बधाईयां
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