नई शिक्षा नीति आरक्षित वर्गो के खिलाफ, शिक्षको के साथ स्टूडेंट के लिये खतरनाक
इससे शिक्षक गुलाम की तरह हो जाएगा जहां शिक्षण कार्य पूरी तरह होगा प्रभावित
नई दिल्ली। गोंडवाना समय।दिल्ली यूनिवर्सिटी एससी, एसटी, ओबीसी शिक्षक फोरम की बैठक में शिक्षकों ने नई शिक्षा नीति पर पक्ष रखते हुये कहा कि इस पॉलिसी के जरिये उच्च शिक्षा से वंचित करने की साजिश कर रही है । दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन चुनाव को लेकर एससी-एसटी-ओबीसी टीचर्स फोरम की गुरुवार को बैठक आयोजित की गई। बैठक में इस बात पर चर्चा की गई कि नई शिक्षा नीति का अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। ये बैठक डीयू के नॉर्थ कैंपस में हुई। बैठक की अध्यक्षता फोरम के नव निर्वाचित अध्यक्ष प्रो. कैलाश प्रकाश सिंह यादव ने किया।
शिक्षकों ने नई शिक्षा नीति पर सरकार की कड़ी आलोचना किया
बैठक में विभिन्न कॉलेजों के शिक्षकों ने हिस्सा लिया था। यहां नई शिक्षा नीति के साथ-साथ कथित तौर पर सरकार के शिक्षक संघ के जो उम्मीदवार डूटा चुनाव में खड़े किए गए हैं, उनको वोट नहीं करेंगे। यहां भी तय किया गया कि जल्द ही फोरम सरकार की नई शिक्षा नीति के विरोध में सड़कों पर उतरेगा। बैठक में शिक्षकों ने नई शिक्षा नीति के तहत आने वाले विभिन्न नीति नियमों पर बातचीत हुई। इसमें शिक्षकों ने नई शिक्षा नीति पर सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए इसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के विरोध में बताया। इन शिक्षकों का कहना था कि नई शिक्षा नीति आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों को उच्च शिक्षा में आने से रोकती है।1 से 5 साल कर दिया प्रोबेशन का कार्यकाल
नई शिक्षा नीति पर अपने विचार रखते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय की विद्वत परिषद के पूर्व सदस्य प्रो. हंसराज सुमन ने कहा कि विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में पहले स्थायी नियुक्ति प्रक्रिया के बाद 1 साल का प्रोबेशन का कार्यकाल रखा गया था। अब नई शिक्षा नीति के तहत इसे 5 वर्ष का कर दिया गया है, यह शिक्षक विरोधी नीति का एक उदाहरण है। इसमें संस्था के प्रिंसिपल और वाइस चांसलर के हस्तक्षेप की पूरी गुंजाइश होगी कि वो किसे प्रोबेशन पीरियड के बाद स्थायी नियुक्ति दे या फिर 5 साल के लिए प्रोबेशन पीरियड में रखे।यही नहीं इसके आगे के नियम और भी खतरनाक है
प्रो. सुमन ने बताया है कि यही नहीं इसके आगे के नियम और भी खतरनाक है। इसके तहत हर पांच साल के बाद शिक्षकों के असेसमेंट की प्रक्रिया बनाई गई है। जिसमें प्रिंसिपल के पास शिक्षक की पदोन्नति का एकाधिकार होगा। इससे मनमानी की संभावना बढ़ेगी, अभी तक विश्वविद्यालय/कॉलेज की स्थिति ये है कि वो अपने शिक्षण कार्य के लिए स्थायी नियुक्ति के बाद पूर्णत: स्वतंत्र होता है।