संविधान की पांचवी अनुसूची का इम्प्लीमेंटशन आज तक ग्राऊंड लेविल पर नहीं हो पाया
पांचवी अनुसूची के मुद्दे पर विधायक हीरालाल अलावा ने 5 मिनिट में वजनदारी से रखा पक्ष
भोपाल। गोंडवाना समय।जनजाति बाहुल्य मध्य प्रदेश के विधानसभा क्षेत्र मनावर के विधायक डॉ. हीरालाल अलावा ने विधानसभा सत्र के दौरान सदन का धन्यवाद देते हुये कहा था कि मेरे ख्याल से शायद पहली बार बहुत दमदारी के साथ में पांचवी अनुसूची को लागू करने की मांग उठी है। सदन में विधायक डॉ हीरालाल अलावा ने पांचवी अनुसुची का मुद्दा उठाते हुये कहा कि मांग संखया 33 और 69 के समर्थन में अपनी बात को रखते हुए सबसे पहले हमारे आदिम जाति कल्याण मंत्री ओमकार सिंह मरकाम को धन्यवाद देते हुये कहा कि मंत्री ओमकार मरकाम ने विभाग का नाम आदिम जाति कल्याण रखवाया जो कि पिछली सरकार ने जनजाति के नाम से कर दिया गया था।
आदिवासी ही इस देश के मूल मालिक
सवाल विभाग के नाम को बदलने से नहीं है, सवाल हमारी पहचान से है। आदिम जाति का मतलब आदि काल से भारत भूमि पर रहने वाले लोगो से है। बीच में हमारे सदसय जी ने आदिवासियों को वनवासी कहकर संबोधित किया जिसका हमने विरोध किया। हम अपने को आदिवासी इसलिये कहलवाना चाहते है क्योंकि हमारा इतिहास है कि हम आदिकाल से इस भारत भूमि पर रहने वाले लोग है और इस बारे मे 5 जनवरी, वर्ष 2011 को जो सुप्रीम कोर्ट कोर्ट में सीजेआई मार्कणडेय काटजू के माधयम से जजमेंट आया था, उन्होंने कहा कि आदिवासी ही इस देश के मूल मालिक है।कुंवर विजय शाह ने कहा मैंने भी उठाया मुद्दा, उपलब्ध करवा दुंगा रिकार्ड
विधायक हीरा अलावा ने कहा कि सदन में आगे कहा कि मैं कुंवर विजय शाह को भी बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहूंगा, क्योंकि भले ही उन्होंने पिछल 15 सालों में अपनी सरकार में मंत्री रहते हुये पांचवी अनुसुची को लागू करने की मांग नहीं उठाई लेकिन आज विपक्ष में रहते हुए उन्होंने कम से कम पांचवी अनुसूची को लागू करने की मांग उठाई। सबसे पहले संविधान सभा में जयपाल सिंह मुण्डा जी ने जो भारतीय हॉकी टीम के प्रथम कप्तान भीरहे है उन्होंने संविधान सभा में मांग रखी थी, कि हमें जनजाति नहीं आदिवासी कहा जाये। तब सदन में कुंवर विजय शाह ने कहा कि विधायक डॉ हीरालाल अलावा जी, मैंने मंत्री रहते हुए यह बात कई बार उठाई है, मैं आपको रिकार्ड उपलबध करा दूंगा।आदिवासी रिजर्व के लिये जो कानून बनाए गए, उस पर कोई नहीं दे रहा ध्यान
आगे विधायक डॉ. हीरालाल अलावा ने उसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद देते हुये कहा कि जयपाल सिंह मुण्डा जी ने संविधान सभा मे मांग रखी थी, कि हमे जनजाति नहीं आदिवासी कहा जाये लेकिन फिर भी संविधान में हमें जनजाति कहा गया। जनजाति होने के लिये कुछ विशेष मापदणड तय किये गये है, जिसमें विशेष संस्कृति, आदिम विशेषतायें, भौगोलिक अलगाव, सामाजिक पिछड़ापन और एक विशष स्वभाव। यह आदिवासी, जनजाति होने के लिये पहचान है लेकिन आज आदिवासियों की पहचान उनका अस्तित्व, उनकी अस्मिता सब खतरे में है क्योंकि एक तरफ आदिवासियों को जंगलों से बेदखल करने के आदेश सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से आये है। विगत 13 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने जो जजमेंट दिया, जिसमें 20 लाख आदिवासी परिवार बेदखल होने की कगार पर खड़े है। जिसका निर्णय 24 जुलाई को होना है । दूसरी तरफ हमारे देश एवं प्रदेश में टाइगर रिजर्व, मैना रिजर्व, भेड़ रिजर्व, बकरी रिजर्व बनाने के लिये कानून बनाये जा रहे है लेकिन आदिवासी रिजर्व के लिये जो कानून बनाए गए है। उस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।पी-पेसा कानून के बारे में ही कोई नियमावली सरकारे नहीं बना पाई
संविधान की पांचवी अनुसूची के इम्प्लीमेंटशन के बिना हम लोग आदिवासियों के विकास की कल्पना भी नहीं कर सकते है लेकिन आजादी के 70 साल होने के बाद भी संविधान की पांचवी अनुसूची का इम्प्लीमेंटशन आज तक ग्राऊंड लेविल पर नहीं हो पाया। वहीं 1996 में संविधान मे पी-पेसा कानून बनाया गया, जो पांचवी अनुसूची का एक छोटा सा पार्ट है लेकिन 1996 में पी-पेसा कानून लागू होने के बाद आज तक पी-पेसा कानून के बारे में कोई नियमावली सरकारे नहीं बना पाई। चाहे कोई भी सरकार रही हो।भारत के संविधान के आर्टिकल 275(1) मे ट्राइबल सब प्लान बनाया गया है। जिसके तहत आदिवासियों के विकास के लिये हर वर्ष करोड़ो रूपये बजट दिया जाता है। इस साल 2019-20 के बजट में हमारी मध्य प्रदेश सरकार ने 33466 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है लेकिन पिछली सरकारों ने जो ट्राइबल सब प्लान के नाम से बजट आता है, जो पैसा ट्राइबल के विकास के नाम से आता है। वह पैसा अन्य मदों में खर्च कर दिया जाता है। जिसका उदाहरण पिछली भाजपा सरकार ने 100 करोड़ रूपये इंदौर के मेट्रो रेल प्रोजेक्ट के लिये दे दिया था।
आदिवासी समाज मूलभूत सुविधाओं से आज भी वंचित
आगे विधायक डॉ हीरालाल अलावा ने सदन में कहा था कि आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से आज भी यह समाज वंचित है। आॅक्सफ्रेम एक इंटरनेशनल संस्था की रिपोर्ट में यह कहा गया है कि धार, बड़वानी, झाबुआ और अलीराजपुर जिला में अफ्रीका महादीप के सियरा लियोन देश जैसी हालत है। वहां पर आज आदिवासी इलाको में कुपोषण से आदिवासी बच्चे मर रहे है। पिछले दिनो 5 जुलाई को खबर छपी थी कि श्योपुर में पिछले 20 दिनों में 11 आदिवासी बच्चे मर गये है लेकिन कुपोषण, पलायन, बेरोजगारी इन सभी गंभीर समसयाओ का निदान करने के लिये कोई भी सरकार सख्त कदम उठाने के लिये तैयार नहीं है। हालांकि विधायक अलावा के सदन में 5 मिनिट हो जाने के बाद भी उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूंकि हमारी कमलनाथ सरकार इन सभी गंभीर मुद्दों पर ध्यान दे और आदिवासियों प्रमोशन में आरक्षण पर ध्यान दे।