आपका प्रयास सकारात्मक कलेक्टर साहब लेकिन सार्थक करेंगे सिर्फ डॉक्टर साहब
संपादकीयविवेक डेहरिया संपादक
बेलगाम, लड़खड़ाती, अव्यावहारिका, अमानवीय होती सिवनी जिले की स्वास्थ्य सेवाएं पर चेतावनी, अल्टीमेटम आज से ही नहीं पहले भी अनेकों बार मिल चुकी है । यहां तक सिवनी जिले में उपचार को लेकर एक बार दुघर्टनाग्रस्त हुये माननीय जज साहब भी कह चुके है कि डॉक्टरों को तो भगवान भी शायद ही सुधार पाये जबकि डॉक्टर को भगवान का रूप मरीज व उसके परिजन मानते है ।
सिवनी जिले में स्वास्थ्य सेवाएं को सुधारने के लिये क्या नर्स, कम्पाऊंडर के भरोसे सुधारा जा सकता है । इसके लिये संभवना नहीं जताया जा सकता है वरन यह शाश्वत सत्य है कि मरीजों को उपचार या स्वास्थ्य सुविधा देने के लिये सिर्फ सम्माननीय डॉक्टर साहब ही प्रमुख भूमिका निभा सकते है। इसके लिये यदि हम सरकारी अस्पतालों में सम्माननीय डॉक्टर साहब के व्यवहार और उपचार को लेकर करें तो हमें सत्यता समझ आ सकती है। हम निजी अस्पतालों की बात नहीं कर रहे है लेकिन जो सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर साहब स्वास्थ्य सेवाओं के पदस्थ है वे अस्पताल की ओपीडी में सबसे पहले तो समय पर कभी कभार ही आते है और ओपीडी में जिस तरह से मरीजों का उपचार और व्यवहार करते है और वहीं डॉक्टर जब अपने घरों में या क्लीनिक में उपचार करते है तो कितना अंतर होता है । सरकारी अस्पताल की ओपीडी में मरीज को दूर से देखते है और दवाई लिख देते है या भर्ती करने की चिठ्ठी बनवाने लिख देते है लेकिन जब वहीं डॉक्टर साहब मरीज को घर में देखते है तो वीपी का पट्टा भी अपने हाथ से बांधते है लेकिन अस्पताल में कभी डॉक्टरा साहब नहीं बांधते है । वहीं मरीज को मुंह खोलकर आ करने को देखते है टॉर्च से आंख देखते है हाथ पकड़कर नाड़ी देखते है और शरीर में बीमारी जानने के लिये शरीर को छूकर देखते है लेकिन ओपीडी में क्या सरकारी डॉक्टर साहब ऐसा करते है संभवतय: इसका जवाब नहीं में ही है तो फिर ऐसा क्यों ? इसके साथ ही मरीजों से बातचीत व चर्चा का अंदाज भी ओपीडी में अलग और क्लीनिक में अलग होता है ऐसा क्यों ?
स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिये सरकारी अस्पतालों में सम्माननीय डॉक्टर साहब को ओपीडी के समय के साथ साथ निश्चित तय समय अनुसार यदि आते है और सिविल सर्जन के कक्ष में बैठकर गप सड़ाका करने की बजाय बराबर वार्डों में राऊंड लगाये और मरीजों का उपचार करे तो चेतावनी या अल्टीमेटन का कुछ असर हो सकता है नहीं तो ऐसे अनेकों अल्टीमेटम और चेतावनी को पहले भी नजरअंदाज स्वास्थ्य सेवा देने वाले करते आ रहे है। हालांकि सरकारी अस्पतालों में सरकार ने मशीनों से लेकर दवाईयां पर्याप्त उपलब्ध करवाया है कहीं ज्यादा कमी नहीं है लेकिन इसके बाद यदि हम देखे तो वहीं मरीज जिला असपताल से रिफर होता है तो शहर के ही अस्पताल व डॉक्टर के यहां ठीक हो जाता है आखिर क्यों ? इसी तरह गर्भवती महिलाएं जिनकी डिलेवरी अस्पताल में असंभव होती है उनकी डिलेवरी सिवनी शहर के अस्पतालों में आराम से हो जाती है आखिर क्यों इसके पीछे क्या कारण है ।
सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने अपने क्लीनिक में सीसीटीव्ही कैमरा लगाकर रखा हुआ है कि उनका कर्मचारी क्या और कैसे मरीजों का उपचार कर रहा है लेकिन सरकारी अस्पताल में डॉक्टर साहब को देखने के लिये या उनके आने जाने का समय का पता लगाने के लिये क्या कोई व्यवस्था नहीं की जा सकती है । सरकारी अस्पतालों में पदस्थ डॉक्टर साहबों पर ही कड़ी निगरानी व नजर रखने की आवश्यकता है तभी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार हो सकता है ।
निजी अस्पतालों में लगे सीसीटीव्ही कैमरों को ही खंगाल लिया जाये तो पता चल सकता है कि वहां पर भी स्वास्थ्य सेवाएं देने सरकारी अस्पताल के कितने डॉक्टर साहब और कितने तकनीशियन कर्मचारी जाते प्रतिदिन जाते है हालांकि ज्यादा बताना ओर लिखना भी ठीक नहीं है क्योंकि कभी मुझे भी बीमार पड़ना है और यदि सरकारी अस्पताल में उपचार के लिये जाना पड़ा तो डॉक्टर साहब और अस्पताल का स्टॉप उपचार की बजाय झकर न उतार दे ।
अब बात करें साफ सफाई की तो ठेकेदार तो मालामाल हो ही रहा है लेकिन अस्पताल में आने वाले मरीज व उनके परिजनों की भी जिम्मेदारी है वे अस्पताल परिसर को साफ व स्वच्छ रखे क्योंकि हम देखते है कि मरीजों के परिजनों के द्वारा भोजन के साथ अन्य सामग्रियों को अस्पताल के कैम्पस में ही अनावश्यक स्थानों पर फैंक देते है जो गंदगी बढ़ाने का काम करते है वहीं सफाई ठेकेदार जो भरपूर पैसा सरकार से ले रहे है वे भी पूर्णतय: जिम्मेदारी के साथ अपनी भूमिका निभाये ।
अब बात करें हम समयमान वेतन और कर्मचारियों के विभागीय मामलों की तो स्थापना शाखा से ही जो खेल शुरू होता है सीधे साहब की जेब तक जाता है मजबूर कर्मचारी भी देने के लिये कहीं न कहीं तो गड़बड़ी करता ही होगा । जब नर्स का काम उपचार करने का है तो फिर स्थापना से संबंधित बाबू साहब का काम क्या है फाईल को रोकना और जब कुछ मिल जाये तो आगे बढ़ाना ओर पूरा करना और नहीं मिला तो अड़ेंगे लगाना । इसलिये यहां की व्यवस्था का सुधार होना कोई बड़ी बात नहीं है बस ईमानदारी और जिम्मेदारी से कर्तव्य निभाने की है लेकिन सीधे साहब भी शामिल रहेंगे तो मामला तो लंबित रहेगा ही ।
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विवेक डेहरिया संपादक
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