गरीबों के खोवे में मलाई खा रहे भोमा के खोवा व्यापारी
100-110 रुपए में खरीदकर ले जाकर बेच रहे 170 रुपए किलो
सिवनी। गोंडवाना समय।
खोवा का उत्पादन करने वाले आदिवासी आज भी लाचार और गरीब बने हुए हैं। वहीं उनके खोवे के दम पर भोमा के व्यापारी लखपति और करोड़पति बन गए हैं। घंटों मेहनत करने और आग के पास बैठकर पसीना बहा रहे गरीबों से भोमा के व्यापारी 100 से 110 रुपए प्रति किलो खोवा की घर बैठे खरीदी कर रहे हैं और उसी खोवे को बाजार में 170 रुपए से लेकर 200 रुपए किलो तक बेच रहे हैं। होली-दीपावली के समय तो ये व्यापारी खोवे की मांग ज्यादा रहने के कारण 225 रुपए तक बेच रहे हैं। खोवा खरीदी की लागत और बेचने की कीमत साफ बता रही है कि किस तरह गरीबों का शोषण करके फायदा कमा रहे हैं।
खरीदी के साथ तौल पर भी गरीबों को लूट रहे व्यापारी
भोमा के खोवा व्यापारी गरीब आदिवासियों को खोवे की कीमत कम देकर उनका शोषण कर रहे हैं। वहीं सूत्रों की मानें तो ये खोवे की तौल में भी सेंध लगा रहे हैं। तौल में गरीबों से ज्यादा खोवा ले रहे हैं। यानी की व्यापारी दोनों तरफ से खोवा का उत्पादन कर रहे गरीबों को लूट रहे हैं। गुरुवार को इसकी बानगी घाट पिपरिया गांव में देखने को मिली। भोमा क्षेत्र एक व्यापारी का कर्मचारी बाइक में घाट पिपरिया के एक आदिवासी से 110 रुपए किलोग्राम के हिसाब से 600 ग्राम खोवा की खरीदी की। गोंडवाना की टीम ने जब व्यापारी के कर्मचारी से एक किलोग्राम खोवा की कीमत पूछी तो चौक गए। व्यापारी का कर्मचारी खोवा की कीमत 170 रुपए प्रति किलो बता रहा था।
पैसे उधार देकर करते रहते हैं शोषण
सूत्र बताते हैं कि घाटपपिरया,कंजई,छीतापार,झीलपिपरिया सहित भोमा के आसपास गांव के ग्रामीणों को पहले से भोमा के खोवा व्यापारी कुछ पैसे उधार दे देते हैं और उसी दबाव में व्यापारी उनसे कम कीमत में खोवा खरीदते रहते हैं। और कई गुणा मुनाफा वे कमाते रहते हैं। ऐसे में भोमा के व्यापारी खोवा के व्यापार लखपति और करोड़पति बन गए हैं। वहीं खोवा बेचने वाले अभी तक गरीब की गरीब बने हुए हैं। हम बता दे कि खोवा बनाने में कई घंटे आग के पास बैठना पड़ता है। कई बार तो धुंआ के कारण आंख तक जलन पड़ने लगती है।