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मुख्यमंत्री जी, ग्रामीण जब तक कलेक्ट्रेट आना नहीं छोड़ेगा तो वह

मुख्यमंत्री जी, ग्रामीण जब तक कलेक्ट्रेट आना नहीं छोड़ेगा तो वह मंत्रालय तो क्या मुख्यमंत्री निवास तक जरूर जायेगा 

मुख्यमंत्री जी, हम आपको बता दे कि 15 वर्ष का मर्ज जो नासूर बन चुका है उसका आप 60-65 दिन में कम करने का उपचार बता रहे है। क्या 15 वर्ष के दर्द की दवा इतनी जल्दी असर करेगी या और कितना वक्त बदलाव में लगेगा यह दिखाई तो ही दे रहा है हालांकि ऐसा कोई विशेष बदलाव का एहसास जनसमुदाय को होता दिखाई नहीं दे रहा है । अब यदि बात करें प्रति मंगलवार को मध्य प्रदेश के जिला मुख्यालय तक आने वाले ग्रामीणजन जो अपनी शिकायत लेकर कलेक्टर कार्यालयों में लगनी वाली जनसुनवाई में आते है वे कितने किलोमीटर दूर से कितने रूपये खर्च कर भूखे प्यासे अपने घर से निकलते है उनमें कौन गर्भवती महिला होती है, कौन विकलांग होता है, कौन बुजुर्ग होता है यह कलेक्टर कार्यालयों में लगने वाली भीड़ के साथ साथ आने वाले आवेदकों की सख्ंयाओं की जानकारी से ही पता चलता है कि प्रति मंगलवार को आने वाले आंकड़े प्रति माह और वर्षों से अपने आंकड़े ही बढ़ाते आ रहे है हालांकि कुछ आवेदनों पर सुनवाई भी होती है लेकिन अधिकांश आवेदनों पर क्या कार्यवाही हुई यह आवेदक को पता तक नहीं चल पाता है अब वह फिर दूसरी बार खर्च कर जानकारी लेने तो नहीं आ सकता है । इसके साथ ही जनसुनवाई में ऐसे आवेदक भी आते है जिन्हें न लिखना आता है और न ही पढ़ना आता है और जिनके पास मोबाईल भी नहीं होता है लेकिन उन्हें जनसुनवाई का नंबर मोबाईल में मिल जायेगा कहा जाता है उन्हें कोई पावती नहीं दी जाती है अब अशिक्षित डिजीटल तकनीकि उलझन में उलझ जाता है । जिला मुख्यालय से कोसो दूर उन समस्याओं के लिये आना पड़ता है जो गांव में ही ग्राम पंचायत में ही, जनपद व पास में ही हल हो सकती है लेकिन वह कलेक्टर कार्यालय, जिला पंचायत व अन्य मुख्यालय के विभाग प्रमुखों तक आने को मजबूर होता है । सबसे बड़ी बात तो यह भी है कि जिस विभाग में गड़बड़ी विभाग प्रमुख और मातहत कर रहे है उन्हीं से सुधार करने की उम्मीद की जा रही है यह कैसे संभव है । यदि जनसुनवाई में औसतन 100 आवेदन भी आते है और उन पर यदि आने जाने में 100 रूपये भी प्रति आवेदक खर्च करता होगा इसके साथ वह अपना घर, काम-धाम सबकुछ छोड़कर आता है यदि 10 हजार रूपये भी प्रति मंगलवार को खर्च हो रहा है तो एक महिने में 40 हजार रूपये एक जिले में खर्च सिर्फ समस्या का समाधान कराने के लिये खर्च कर रहा है। अब आप प्रदेश के 52 जिलो का हिसाब लगा ले यह तो औसतन खर्च है जबकि हकीकत में अधिकतम में कई गुना है । इसलिये जब तक ग्रामीण जन कलेक्ट्रेट आना नहीं छोड़ेगा वह मंत्रालय तो क्या आपके मुख्यमंत्री निवास तक आयेगा ही।
अब हम बात करे सीएम हेल्पलॉइन की तो शिकायत सुनने वाले ही सलाह देने लगते है कि वहां पहले शिकायत करो, ये शिकायत यहां दर्ज नहीं हो सकती है और दर्ज हो भी गई तो बाद में निराकरण हो गया है हम संतुष्ट है इसके पीछे आवेदक के पीछे भिड़ जाते है कई बार आवेदक को पता ही नहीं होता है कि क्या निराकरण हुआ है और लिखकर आ जाता है कि आपकी समस्या का निराकरण हो गया है और ज्यादा है तो शिकायत निराधार है विलोपित करने योग्य है । समय सीमा की बैठक में निर्देश दिये जाते है कि शिकायत को शीघ्र सुलझाओं नहीं तो कार्यवाही होगी लेकिन हीला हवाली करने की आदत वालों को असर होता नहीं दिखाई देता है । समस्याओं के आंकड़े बढ़ रहे है कम होने का नाम ही नहीं ले रहे है । इसीलिये जब गांव के आदमी की समस्या उसके गांव में नहीं सुलझेगी तो वह मजूबरी में जिला मुख्यालय तक दौड़ लगायेगा ही और यहां भी सुनाई नहीं हुई तो वह मुख्यमंत्री निवास तक भी जरूर जायेगा।

मुख्यमंत्री कमल नाथ पढ़ा रहे सुशासन का पाठ तो बता रहे नई कार्यसंस्कृति 

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमल नाथ की सरकार बने हुये 63 दिन पूरे दिन हो चुके है और वह यह कह रहे कि 15 साल के स्‍थापित कार्यशैली को सकारात्‍मक सोच के साथ बदलने का अभियान शुरू किया है और आप निरंतर वातानुकूलित कमरों में बैठकर वातानुकूलित कक्षों में काली कांच लगाकर या दमदार दरवाजा बंद कर जहां से नागरिकों या गांव से आने वाले ग्रामीणजन अंदर जाना तो दूर की बात है वह झांक भी नहीं पाता है । उन वातानुकूलित कक्षों में बैठकर सरकार की योजनाओं का क्रियान्वयन कराने वाले अफसरों को यह संदेश दे रहे है कि मेरी सरकार काम करने वाली सरकार है वह नीति, नियम और कानून बनाने से जरूरी है व्‍यवस्‍था में सुधार चाहती है । मुख्यमंत्री जी आप यह कहते है कि मेरी सरकार घोषणाओं, विज्ञापनों, फोटों, नारों और घोषणाओं की सरकार नहीं है और न होगी मेरी सरकार काम करने वाली सरकार होगी, मेरा विश्‍वास दिखावे पर नहीं काम करने पर है। आप यह भी कह रहे है कि मैं मध्‍यप्रदेश को एक ऐसा प्रदेश बनाना चाहता हूँ जिसमें किसान मजबूत हो, नौजवानों के पास काम हो, सभी वर्गों का उत्‍थान हो और चौमुखी विकास हो। प्रदेश में नीति, नियम और कानून से अधिक जरूरत इस बात की है कि हम अपनी बुनियादी व्‍यवस्‍थाओं में सुधार करें। जवाबदेह प्रशासन की जरूरत है हमारे तंत्र की जो व्‍यवस्‍थाएँ है वे अंग्रेजों के काल की बनी हुई है अगर हमें शासन-प्रशासन को जनता की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप बनाना तो हमें इसकी कार्यप्रणाली में आमुलचूल परिवर्तन करना होगा। सरकार की योजनाओं, कार्यक्रमों और नीतियों का क्रियान्‍वयन तभी सार्थक रूप से हो पाएगा जब हम उसके डिलेवरी को तत्‍पर और जिम्‍मेदार बनाएँगे। मुख्यमंत्री आप सरकार बनने के पहले से ही यह कह रहे है कि मैं कलेक्‍टर नाम होने से भी असह‍मति रखता हूँ मेरा विचार है कि अंग्रेजों के जमाने के इन पदों का नाम लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था के अनुरूप होना चाहिए इससे हमारी मानसिकता में परिवर्तन आएगा। वहीं आप यह भी कह रहे है कि मैं कानून व्‍यवस्‍था के मामले में कोई भी ढील बर्दाश्‍त नहीं करूँगा। पुलिस की वर्तमान कार्य प्रणाली में परिवर्तन आएगा। सुशासन का अर्थ है सबसे कमजोर और गरीब व्यक्ति को त्वरित न्याय मिले, आम लोगों की सहायता, सहयोग और समर्थन की व्यवस्था लागू होना चाहिए यह हमारा लक्ष्य है। कमिश्नर और कलेक्टर संभाग और जिला स्तर पर सरकार का चेहरा हैं। दोनों अधिकारी जनता और सरकार के बीच नोडल पाइंट हैं, इसलिये इनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। जब सबसे कमजोर और गरीब वर्ग को तत्काल और त्वरित न्याय मिलेगा, तभी प्रदेश में सुशासन की स्थापना कर पाएंगे।

रिकार्ड खंगालों या मंगालों पता चल जायेगा कितना खर्च कर रहे पीड़ित

मुख्यमंत्री कमल नाथ यह आपके मुखारबिंद से निकले हुये शब्द है कि जहाँ सुशासन नहीं है वहाँ समस्याएँ अधिक है, जन-सुनवाई, सीएम हेल्पलाइन और लोक सेवा गारंटी जैसी व्यवस्थाएँ दिखावे के लिए न हो, मौजूदा व्यवस्था में परिवर्तन जरूरी है । नई सरकार का सोच स्पष्ट है, कानून और नियम के कारण आम आदमी को दिक्कत नहीं होना चाहिए। जिसके पास कुछ भी नहीं है, वह सरकार की योजनाओं का लाभ पाएं, यह सुनिश्चित करने का काम जिला कलेक्टरों का है। मुख्यमंत्री कमल नाथ आपका अनुभव बिल्कुल सही है जिस जिले में सुशासन नहीं है, वहाँ समस्याओं के सबसे अधिक आवेदन मिलते हैं और यही उस जिले का रिपोर्ट कार्ड बतलाता है। जनता से जुड़ी संस्थाओं को ऐसा स्वरूप दें कि वे तत्काल तत्परता के साथ लोगों की समस्याओं का समाधान कर सकें। आप यह कह रहे है कि जो काम जिला और संभाग स्तर पर हो सकते हैं, उसके लिये आम-आदमी को अगर मुख्यमंत्री, मंत्री और मंत्रालय के पास तक आना पड़े, यह उचित नहीं है। अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारी समझना होगी और जवाबदेही तय करना होगी।

अखबारों से नहीं लेते संज्ञान और आंदोलन होने के पहले नहीं देते ध्यान 

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आप यह कह रहे है कि हम को मैदानी समस्याओं की जानकारी अखबारों, आंदोलनों और शिकायतों से नहीं मिलना चाहिए। कलेक्टर और कमिश्नर की ओर से हमें सूचना आएं, तभी हम सुचारु तंत्र संचालन का दावा कर सकते हैं। मुख्यमंत्री आप यह भी कह रहे है कि स्थानीय स्तर पर कौन सी समस्या विकास में बाधक है, जो लोगों की समस्याओं का कारण बनेगी, इसकी जानकारी से कमिश्नर-कलेक्टर मुझे अवगत करवाएँ। वे मुझसे सीधे संवाद कर सकते हैं और अपने सुझाव दे सकते हैं लेकिन जो मर्ज 15 वर्षों से बना हुआ उसके दर्द की दवा क्या इतने जल्द असर करेगी । अखबारों में समाचार छपते है उन पर कार्यवाही करना तो छोड़ों संज्ञान तक नहीं लेते है इसके बाद सरकार के खिलाफ आग उगलने वाले मामलों की जानकारी अखबार और आपका खूफिया विभाग तो देता ही है लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता और आंदोलन की शुरूआत हो जाती है कई दिनों तक धरना प्रदर्शन होता है और भूख हड़ताल भी कई बार शुरू होती है बाद में उसे तुड़वाने जाते है क्या इसके पहले ही आंदोलन व भूख हड़ताल अनशन क्यों हो रहा है इस पर संज्ञान क्यों नहीं लिया जाता है इसमें बदलाव आने में और कितना वक्त लगता है यह भी धीरे धीरे सामने आयेगा ही ।                                                                                                                                                                                                       
संपादकीय
विवेक डेहरिया
संपादक गोंडवाना समय

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