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आदिवासियों को बेदखल करना पूंजीपतियों-उद्योगपतियों का षडयंत्र, एकजुटता के साथ करना होगा संघर्ष-मनमोहन शाह बट्टी

आदिवासियों को बेदखल करना पूंजीपतियों-उद्योगपतियों का षडयंत्र, एकजुटता के साथ करना होगा संघर्ष-मनमोहन शाह बट्टी

गैरराजनैतिक तरीके से एकता के साथ में आदिवासियों के अंतिम छोर तक पहुंचकर न्याय लिये लड़ेंगे 

भोपाल। गोंडवाना समय। जल-जंगल-जमीन, पांचवी अनुसूची, वनाधिकार अधिनियम, पारंपरिक-रूढ़िवादी ग्राम-सभा अधिकार, सहित अन्य 18 मांगों को लेकर सैकड़ों आदिवासियों का शांतिमार्च बीते 9 फरवरी से डिंडोरी से पदयात्रा करते हुये भोपाल पहुंचने के बाद सोमवार को शांतिमार्च पदयात्रा का समापम कार्यक्रम के माध्यम से किया गया । इस दौरान पदयात्रा के प्रमुख हरि सिंह मरावी के साथ उनके साथ में आये सैंकड़ों की संख्या में पदायात्री व अन्य समाजिक कार्यकर्ता भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे । हम आपको यहां तक बता दे कि रूढ़ी प्रथा पारंपरिक ग्राम सभा मध्य प्रदेश के तत्वाधान में पांचवी अनुसूचि व वनाधिकार को लेकर 9 फरवरी 2019 को डिंडौरी से सैकड़ों ग्राम प्रमुख आदिवासियों के द्वारा पदयात्रा शांतिमार्च कर भोपाल तक यात्रा किया ।
जिसका समापन गांधी भवन 26 फरवरी मंगलवार को हुआ वहीं गांधी भवन में जल, जंगल, जमीन से जुड़े सभी समाजिक संस्थायें जन पहल मध्य प्रदेश गोंडवाना महासभा मध्य प्रदेश तथा अन्य संस्थायें यात्रा का स्वागत कर संवैधानिक संगोष्ठी भी आयोजित हुई । जहां पर विभिन्न वक्ताओें संगोष्ठी के मुख्य विषयों पांचवी अनुसूचि, वनाधिकार पर माननीय सुप्रीम कोर्ट का निर्णय जिसमें आदिवासी समाज को वन भूमि से बेदखल किये जाने हेतु आदेश के संबंध में तथा अन्य संवैधानिक समस्याओं के समाधान को लेकर अपने वक्तव्य दिये। वहीं देश के महामहिम राष्ट्रपति भारत सरकार, मध्य प्रदेश राज्यपाल, व मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश शासन को 18 सूत्रीय ज्ञापन सौंपा भी गया ।

सिर्फ आदिवासी ही नहीं गैर आदिवासियों को भी संघर्ष में लेना होगा साथ

डिंडौरी से पदयात्रा पर निकली संवैधानिक हक अधिकारो को लेकर शांतिमार्च का समापन मंगलवार को भोपाल में हुआ । जिसमें पूर्व विधायक मनमोहन शाह बट्टी ने कहा कि आदिवासियों की लड़ाई लड़ने हमें गैर राजनैतिक तरीके से सभी को एक होना पड़ेगा । इसमें सिर्फ आदिवासी ही नहीं उन गैर आदिवासी वर्गों का साथ भी लेना पड़ेगा जो वास्तविक रूप से ईमानदारी से आदिवासियों के हक अधिकार के संघर्ष कर रहे है वर्तमान में हमारे साथ यहां पर अभी सिन्हा साहब, डॉ सुनीलम, आराधना भार्गव मौजूद है वहीं अनेक ऐसे लोग देश भर में मौजूद है जो आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के लिये संघर्ष कर रहे उनको साथ में अंतिम छोर के जानकारों को साथ में लेकर इस लड़ाई लड़ना होगा ।

आदिवासी क्षेत्रों मेंं खनिज संपदा पर देश ही नहीं विदेशों की भी गढ़ी हुई नजरे

इस दौरान पूर्व विधायक मनमोहन शाह बट्टी ने कहा कि जल, जंगल, जमीन हमारी है । हमारे समाज में जनप्रतिनिधि भी पढ़े लिखे है और कई कानून के ज्ञाता भी है लेकिन आदिवासी के खिलाफ भी कोई मामला दायर है यह किसी को पता नहीं था । बीते दिनों 13 फरवरी को माननीय सुर्प्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है उससे देश भर का आदिवासी समुदाय में चिंता व्याप्त है । कुछ समाज सेवी संस्था के नाम आदिवासियों के बीच में रहते है उठते जानते मिलते है देखते है और डाटा का कलेक्शन करते है, सर्वेक्षण करते है । वहीं वाइल्ड लाईफ संस्था जो कि पर्यावरण के नाम पर जंगल बचाने, जानवरो को बचाने आदि का काम करती है उसमे माननीय सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाया था जिसमें यह था कि आदिवासियों से जंगल को खतरा है, आदिवासियों से जंगली पर्यवरण खराब हो रहा है, आदिवासियों के कारण जंगली जानवरों को नुकसान होगा इसलिये इनको हटाया जाये। इसको लेकर यह निर्णय दिया गया है ।
हम अब हमें सबको मिलकर गैरराजनैतिक तरीके से एकजुटता के साथ संपूर्ण देश के आदिवासियों को न्याय दिलाने के लिये संघर्ष करना होगा । पूर्व विधायक मनमोहन शाह बट्टी ने कहा कि आदिवासी समाज की इस समस्या के लिये हमें अंतिम छोर तक जाना चाहिये कि आदिवासी कौन सा जीवन जी रहा है। आदिवासियों को तो अभी तक उनका संवैधानिक अधिकार ही नहीं मिल पाया है। देश में आदिवासियों के क्षेत्र में वे जहां पर आदिकाल से रह रहे है वहां पर पूंजीवादी व्यवस्था है षडयंत्र कर रही है क्योंकि जहां पर आदिवासी निवास करता है वहां पर लगभग 45 प्रकार से भी खनिज संपदा का भण्डार है जिन्हें पूंजीपति उद्योगपति निकालने के लिये यह षडयंत्र रच रहे है । भारत में आदिवासियों के मूलनिवास स्थानों पर देश ही नहीं विदेशों की भी नजरें गढ़ी हुई विशेषकर आदिवासियों वन क्षेत्र ऐसे लगभग 70 प्रतिशत जंगलों पर नजर गढ़ी है ।

आदिवासी सिर्फ अपने अकेले के लिये कभी नहीं जीता वरन सबके जीवन की करता है चिंता 

इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता गुलजार सिंह मरकाम ने कहा कि आज इस यात्रा के समापन अवसर पर संघर्षशील साथी उपस्थित हुये थे वहीं उन्होंने बताया कि यह यात्रा 9 फरवरी से लगातार पैदल चलकर 15-16 दिन के बाद दु:खों को सहते हुये है निकली है साथ ही यह भी संदेश दिया कि आदिवासी सिर्फ अपने अकेले कभी नहीं जीता है यही उसकी संस्कृति-सभ्यता, इतिहास व भविष्य है क्योंकि आदिवासी सबके जीता है चाहे वह मानव, हो वन्य जीव-जंतु सभी के लिये वह जीने के चिंता करता है ।
कार्यक्रम में पदयात्रा के प्रमुख नेतृत्वकर्ता हरि सिंह मरावी ने कहा कि डिंडौरी से अकेले चलकर भोपाल आना कठिन था लेकिन आदिवासी समाज का प्रत्येक गांव में और आदिवासी समाज के संगठनों का प्रत्येक गांव में साथ सहयोग मिला इसलिये पैदल चलकर भोपाल पहुंचने का कहीं कोई एहसास ही नहीं हुआ सबसे बड़ी विशेष बात तो यह आदिवासी समाज की पदयात्रा में युवाओं के साथ मातृशक्तियों व बुजुर्ग का साथ भी रहा जिन्होंने बिना किसी भूख, धूप, ठण्डी के पदयात्रा निकालकर शांतिमार्च का संदेश दिया और मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल पहुंचकर अपने हक अधिकार को दिये जाने के लिये कार्य किया है ।

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