मोगली के शस्त्र को उत्तर से दक्षिण तक पहुँचाया, आस्ट्रेलिया का मिला आमंत्रण
सिवनी जिले की पहचान है मोगली और उसका हथियार बूमरैंग
सिवनी/भोपाल। गोंडवाना समय।
बच्चों बच्चों की ही जुवान पर नहीं सभी उम्र के कानों में यदि यह गीत सुनाई देता है कि जंगल-जंगल बात चली है तो सीधे दिमाग में मोगली की तस्वीर दिखाई देने लगती है और मोगली के हाथों में पंजानुमा हथियार जिसे बूमरैंग कहा जाता है वह भी नजर आने लगता है ।
जबकि सभी ने देखा है कि टी वी सीरीयल कार्टून में मोगली का जो पात्र शेरखान से बचने के लिए इस हथियार का उपयोग करता है। उसी पंजा (बूमरैंग) के हथियार को खेल की कला में परिवर्तित करने का प्रयास किया है । बूमरेंग गुरू विवेक मेंट्रोंस ने बताया कि बूमरैंग का प्रयोग आदिवासी जंगल में अपनी सुरक्षा के लिए करते थे। भारत में यह तकनीक विलुप्त हो गई थी। इसका उल्लेख पेंच नेशनल पार्क के समीप जंगल ब्वॉय मोगली की कहानी में मिलता है। उन्होंने बताया कि पहला बूमरैंग उनकी आंटी ने आस्ट्रेलिया से लाकर दिया था। दिल्ली में कम स्पेस रहने के दौरान यह थ्रो नहीं कर पाते थे। वे 1995 में आस्ट्रेलिया गए जहां उन्होंने थ्रो करना सीखा। इस दौरान कई बार चोट भी लगी। फिर भी इसे सीखने का जुनून से यह उनका शौक बन गया। वे 15 साल की उम्र से यह थ्रो कर रहे हैं इस कला में बूमरैंग हवा को देखकर थ्रो किया जाता है। यह तीन चीजों एयर, टिवस्ट, थ्रो पर निर्भर है। इसे चलाने के लिए शरीर का संतुलित होना बहुत आवश्यक है। वैसे तो बूमरैंग चलाने के 15 तरह के तरीके होते हैं, ये लकड़ी और प्लाई से बनाए जाते हैं। भारत में ओरिजनल बूमरैंग नहीं मिलते हैं। लोग इसे फ्लाइंग की तरह समझते हैं लेकिन यह टेनिस खेल की तरह है। उनका कहना है कि सरकार इस कला को खेल के रूप में विकसित करने के लिए विचार कर रही है।बूमरैंग गुरु विवेक मौंट्रोज अपने लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ते हुए इसे भारत में खेल की मान्यता दिलाने की अपनी मुहीम में इसका प्रचार करने चेन्नई तक जा पहुंचे। सौभाग्यवश उन्हें वहाँ इस खेल में दिलचस्पी रखने वाले कई लोग भी मिले, जिसका प्रमाण उन्हें मद्रास इंजीनियरिंग कॉलेज के बच्चों के बीच जाकर मिला।
अब तक वह लगभग 7 से 8 प्रदेशों का दौरा कर चुके हैं, और इतने उत्साहित हुए हैं सब लोगों के रुचि और सहयोग को जान और देखकर, कि अब उन्हें भारत देश की बूमरैंग टीम, जो राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व करे, का निर्माण शीघ्र हो जाने का पूर्ण विश्वास है। उनकी इस मुहीम में गोंड कलाकार संभव सिंह श्याम भी उनके साथ हैं। बूमरैंग का प्रशिक्षण देने के लिये हर समय तैयार रहने वाले बूमगैंग गुरू विवेक मौंट्रोज बताते है कि बूमरैंग हालांकि आस्ट्रेलिया में ज्यादा प्रचलित है लेकिन पूरे भारत में पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है उन्होंने बताया कि आस्ट्रेलिया से बूमरैंग का प्रशिक्षण लेकर आये थे और बच्चों से लेकर युवाओं को प्रशिक्षण सिखाने के लिये कार्य कर रहे है ।
पोलैंड में म्यूजियम में रखे है 25 हजार साल पहले हाथी दांत से बनाए गए बूमरैंग
आदिवासी समुदाय के शस्त्र बूमरैंग (मोगली के पंजे) को चलाने का प्रशिक्षण देने के लिये बूमरैंग थ्रोवर विवेक मौंट्रोज ने इसके बारे में जानकारी दी और इसे फेंके जाने का तरीका बताया वह स्कूल कॉलेजों में विभिन्न प्रकार के बूमरैंग को थ्रो कर प्रदर्शन कर प्रशिक्षण देने का काम कर रहे है और स्टूडेंट्स को बूमरैंग चलाना भी सिखा रहा है । बूमरैंग का प्रयोग आदिवासी अपने शिकार और आत्मरक्षा के लिए करते थे। यह ठोस लकड़ी के बनते हैं इसे फेंकने की तकनीक भी विशेष है। बूमरैंग को सीधा थ्रो किया जाता है, इसको चलाने के लिए बड़े स्थान की जरूरत होती है। पोलैंड में 25 हजार साल पहले हाथी दांत से बनाए गए बूमरैंग म्यूजियम में रखे गए हैं।
आदिवासी भाषा में शस्त्र वलारी को अंग्रेजी में कहते है बूमरैंग
विवेक मौंट्रोज ने बताया कि गोंड आदिवासी समुदाय के शस्त्र वलयर जो कि वलारी को ही अंग्रेजी ने बूमरैंग कहा जाता है। आॅस्ट्रेलिया में हर वर्ष जम्बूरी कैंप का आयोजन किया जाता है, जिसमें बूमरैंग प्रतियोगिता रखी जाती है, जिसमें विश्व के थ्रोवर हिस्सा लेते हैं। यह भारतीय आदिवासियों की विलुप्तप्राय विरासत है। भारतीय आदिवासी समुदाय के बीच दोबारा स्थापित हो सके इस दिशा में कार्य करने का प्रयास कर रहा हूं। उन्होंने बताया कि उनके गुरु आॅस्ट्रेलिया के नंजन जारकन हैं, जिन्हें केन कोलबंग के नाम से जाना जाता है। 15 साल की उम्र में आॅस्ट्रेलिया जाकर ही बूमरैंग थ्रो करना सीखा, जिसके बाद वहां के चैंपियन तक को पीछे छोड़ दिया।
विशेषकर गोंडी क्षेत्र का है ये हथियार
विलुप्त हुई भारत की कला विशेष गोंडी क्षेत्र का हथियार इसलिये माना जाता है कि क्योंकि मोगली का जीवन वृत्त सिवनी जिले से जुड़ा है और सिवनी जिला गोंडियनों का क्षेत्र है और मोगली का विचरण क्षेत्र भी गोंडी भाषा जनजाति बाहुल्य क्षेत्र सिवनी में ही पाया गया है । इसके साथ ही हम आपको यहां यह भी बता दे कि जो विश्व की डीएनए रिपोर्ट आई है उसमें गोंड, साउथ इण्डिया के वलायर जनजाति और आस्ट्रलिया के आदिवासी से मिलता जुलता है । सिवनी से मोगली का वास्ता था और सिवनी में गोंडियनों का बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है लोग तो यह भी कहते है कि मोगली गोंड समुदाय से ही था । लेकिन गोंड जनजाति के लोग भी अपने ही जनजाति का विशेष हथियार बूमरैंग को भूल रहे है इस विलुप्त कला को वापस लाने का प्रयास किया जा रहा है । जबकि भारत के अलावा दूसरे देशों में इस खेल को बड़ी प्रतिस्पर्धाओं के रूप में खेला जाता है ।
आस्ट्रेलिया में मनाई जायेगी 85 वी वर्षगांठ तो फ्रांस में होती है प्रति दूसरे वर्ष
बूमरैंग गुरू विवेक मोंट्रोज ने बताया कि अगली अंराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा हर दूसरे वर्ष फ्रांस में आयोजित होती है और इस खेल का आयोजन अतराष्ट्रीय फेडरेशन विश्व खेल के रूप में होता है । फ्रांस में यह प्रतिस्पर्धा 2020 में होगी । वहीं माह अप्रेल 2019 इसकी 85 वी वर्षगांठ आस्ट्रेलिया में मनाई जा रही है जो कि 13 से 15 अप्रैल 2019 तक आस्ट्रेलिया में मनाया जायेगा ।
किक्रेट की तरह बूमरैंग का भी बने फेडरेशन
बूमरैंग गुरू विवेक मोंट्रोज का कहना है कि जिस तरह से भारत में क्रिकेट या कब्बडी आदि अन्य खेलों के लिये एकेडमी व फेडरेशन बनाया जाकर इन खेलों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है । यदि उसी तरह भारत सरकार और खेल मंत्रालय बूमरैंग खेल को राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान देती है तो इससे भारत की पहचान अंराष्ट्रीय स्तर पर बन सकती है क्योंकि बूमरैंग हथियार का जो खेल है वह भारत के मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के मोगली का इतिहास से जुड़ा हुआ है और भारत के लिये यह पहचान बन सकता है । विवेक मोंट्रोस ने बताया कि वह भारत में बूमरैंग फेडरेशन आॅफ इण्डिया बनाये की तैयारी कर रहे है उन्होंने यह भी बताया कि बूमरैंग चलाने का प्रशिक्षण विशेषज्ञों की संख्या भारत में दस के पार भी नहीं हुई है यदि इसे भारत सरकार विशेष ध्यान देती है यह विलुप्त प्राय खेल देश के साथ दुनिया में भारत का प्रसिद्ध बना सकता है । अभी मेरे द्वारा और कुछ साथियों द्वारा यह प्रयास किया जा रहा है जिसमें तमिलनाडू के कार्तिक राजा और एस दिवेश कुमार है इसके साथ ही मध्य प्रदेश से संभव सिंह श्याम और अजय सिंह श्याम भी साथ दे रहे है ।
आस्ट्रेलिया का मिला आमंत्रण लेकिन आर्थिक समस्या भी है सामने
बूमरैंग गुरू विवेक मेट्रोंस ने बताया कि 85 वी वर्षगांठ के अवसर पर आस्ट्रेलिया में जाने का आमंत्रण मिला है लेकिन वहां पर जाने का खर्च अत्याधिक होने के कारण आर्थिक समस्या बनी हुई है लेकिन मैंने वर्तमान में सहमति जता दिया है और पूरा प्रयास रहेगा कि आस्ट्रेलिया जाकर भारत का प्रतिनिधित्व करू उन्होंने कहा कि यदि इसमें भारत सरकार का सहयोग मिल जाता है जो अच्छी बात होगी इसके लिये भी प्रयास करके देखूंगा । वहीं उन्होंने यह भी बताया कि बुधवार को ही आस्ट्रेलिया बूमरेंग ऐशिययन के प्रसिडेंट रॉजर पैरी ने भी आस्ट्रेलिया में आयोजित प्रतिस्पर्धा में आने के लिये पूछा है जिन्हें मैंने सहमति तो जता दिया है ।