गोंडवाना साहित्य के प्रमुख स्तंभ सुन्हेर सिंह ताराम को पेनांजलि
गोंडवाना का दिया न कभी बुझा है न कभी बुझेगा
गोंडवाना आंदोलन के प्रमुख स्तम्भों में एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ गोंडवाना दर्शन ?मासिक पत्रिका के संपादक सम्माननीय सुन्हेर सिंह ताराम जी के आकस्मिक निधन पर देश के गोंडवाना परिवार को अपूरणीय क्षति हुई है। सम्पूर्ण गोंडवाना शोकमय श्रद्धा सुमन अर्पित करता है । गोंड़वाना की धार्मिक, सांस्कृति, रीति-रिवाज, परंपरा, भाषा, इतिहास की जानकारी जनसामान्य तक पहुँचाने वाले गोंड़वाना दर्शन के संपादक समाननीय सुन्हेर सिंह ताराम जी का निवास स्थान ऐतिहासिक स्थल ग्राम- दरेकशा (काचारगड़)जिला गोंदिया में है यह अपने आप में बड़ा इतिहास है । समाज में सांस्कृतिक सामाजिक व राजनितिक विषय में जनमानस तक पहुंचाने मेँ महत्वपूर्ण व सराहनीय योगदान रहा है । गोंड़वाना इस कलमकार लेखनी के महानायक को पूरा गोंड़वाना नमन करता है । कल कचारगढ़ की पवित्रभूमि में गोंडवाना दर्शन के महामना दादा सुन्हेरसिंह_तारम काका को उस पवित्रभूमि में अर्पण करते हुए मुझें वे चले गए ऐसा महसूस नही हुआ। बल्कि अब वे और ज्यादा गहराई से हम सबके अंदर आ रहे हैं ऐसा महसूस हुआ। गोंडवाना का दिया न कभी बुझा है न कभी बुझेगा।उन्होंने वर्षों से अपनी शारीरिक तकलीफों के बावजूद उसकी परवाह किए बिना सतत गोंडवाना की सेवा की। पूरे भारतवर्ष में घूम घूमकर गोंडवाना का संदेश प्रसारित किए समाज के कई लोगों के द्वारा असहयोग, विरोध, धोखे देने के बावजूद उन्होंने मिशन को जिंदा रखा ।
ऊषाकिरण आत्राम याया, दादा मोती रावेन कंगाली दादा, कोमल सिंह मरई काका, भरतलाल कोर्राम मामा जैसे गोंडवाना के महान सेवकों ने साथ मिलकर कंधे से कंधा मिलाकर गोंडवाना दर्शन साहित्य को व्यापक रूप से हम नव पीढ़ी तक पहुंचाने का पुरजोर प्रयास किया। अंतिम दिनों में सुन्हेर ंिसह ताराम काका कचारगढ़ की पवित्र भूमि में अपने उम्र और स्वास्थ्य संघर्ष के साथ साहित्य लेखन के मिशन को जारी रखे हुए वहीं अंतिम साँसे ली। गोंडवाना के महान दर्शन इतिहास को सुरक्षित, संरक्षित और उत्तरोत्तर समृद्ध करना है।
ताराम दादा साहित्यिक गुरू को सादर पेनांजलि
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