प्राकृतिक फल महुआ एवं गोंडवाना की संस्क्रति पीला गमछा पर विशेष चिंतन
लेखक अखिलेश मर्सकोलेविश्व मे एक ऐसा पेड़ महुआ जिसके हर चीज पुष्प, फल, तने, जड़, शाखा, पत्ते इत्यादि औषधि के रूप में काम आता है । वैज्ञानिक का मानना है इस पेड़ से बेक्टेरिया दूर करने का दवा है इसके फल खाने से कई तरह की बीमारी दूर हो जाती है । गोंडियन समाज इस महुआ के फल का उपयोग कई हजार वर्ष पूर्व से करते आ रहा है। यह समाज अपने पेन पुरखा या कोई भी गोंगो(पूजा) पर इस महुआ के फल को चढाता है । गोंडियन समाज की मान्यता है कि हम वर्षो से प्रकृति को मानते आ रहे उन्ही को सर्वश्रेष्ठ मानते है उनकी पूजा करते है । क्योंकि हमें प्रकृति से ही सब कुछ मिलता है और सूर्य से हमे रोशनी ,धूप शक्तियां इसीलिए ये गोंडियन समाज कई वर्षों से पूरे गोंडवाना लैंड बसा है और यही करते आ रहा है ।
इस समाज का मानना है कि जब पेन,पुरखा का गोंगो करते है कोया फल (महुआ) जो एक पवित्र होता है इसे चढ़ाने और गोंडी भाषा पारसी गोंगो करते है तो देवराज अवश्य प्रसन्न होते है । वर्तमान की परिस्थिति ऐसी हो गई है व्यक्ति इस पवित्र प्राकृतिक फल महुआ का दुरुपयोग करने लगे है इस फल को सडा कर शराब बना रहे है और पी रहे है नशा करना शुरू कर दिए है । ऐसी स्तिथि आ गई है कि अपने पुरखा,पेनो की गोंगो करते समय भी शराब को चढ़ाने लगे है । अखिलेश मर्सकोले जब बहुत से जगह कई बुजुर्गो के साथ बैठक किये जहाँ शराब का उपयोग पूजा में करते है । बुजुर्गों का कहना था हम आदिवासी है हम वर्षो से प्रकृति के पुजारी है तभी प्रश्न उठा कि हे बुजुर्ग दादा जब आप प्रकृति के पुजारी है तो शराब तो प्रकृति की देन नही है इसे मनुष्य ने बनाया है । और आप लोग मनुष्य द्वारा बनी शराब को आप अपने पेनो,पुरखो की पूजा करते समय चढ़ाते है तो फिर कैसे आप प्रकृति के पुजारी,पूजक हुए प्रकृति पूजक लोग प्रकृति के अनुकूल जो फल पुष्प मिलता है उसे गोंगो करते समय चढ़ाना चाहिए तब प्रकृति पूजक कहलाओगे ।
फिर उस बुजुर्ग ने चिंतन किया और ऐसे कई जगह जागरूक कर अपने पेनो की पूजा में शराब न चढ़ाने की विनती किया गया है ।