मतदान नहीं ये है मतशक्ति
मत दान की वस्तु नहीं है, न ही रहमोकरम में दिया हुआ अधिकार का चीज है, यह लोकतंत्र में, भारत के सम्पूर्ण संपदाओं में बराबरी से हिस्सेदारी, भागीदारी का प्रतीक है, जो हमारा, हम सबका हक है। मत का दान नहीं, मतशक्ति का उपयोग करो। अधिकार किसी के द्वारा दिया हुआ चीज होता है, जबकि हक न भी दो तो भी हकधारी का ही होता है, वह उसे छीन सकने का वैधानिक शक्ति रखता है। दान की हुई अथवा बेंचें वस्तुओं पर दानदाता या विक्रेता का हक समाप्त हो जाता है। इसलिए मत का न तो दान करो न बेंचों, बल्कि इसे शक्ति की तरह उपयोग करो। आजादी के बाद से ही इस शक्ति को राजनीतिक पार्टियों द्वारा संचालित सरकारों नें इसे दान बना दिया, जिसके कारण देश की जनता इसका उपयोग नहीं बल्कि दान करके पॉच साल चुपचाप पड़ी रहती है। अगले चुनाव में फिर किसी को दान कर फिर चुपचाप पड़ी रहता है। इसलिए लोकतंत्र जनता का न होकर राजनीतिक पार्टियों का जागीर बन गया है। जनता को देश का मालिक नहीं बल्कि मात्र मतदाता बनाकर रखा गया है। देश के मालिक जनता को उद्योगपतियों नें सिर्फ उपभोक्ता बनाकर रखा और राजनीतिक पार्टियों नें सिर्फ मतदाता । दोनों नें मिलकर देश की जनता को देश का मालिक कभी बनने ही नहीं दिया। दोस्तों इस साजिश को समझे बगैर देश का सही कल्याण संभव नहीं है। इसलिए मतशक्ति का उपयोग करिये।पुनेम शोध संगत
विचारक, संस्थापक: डॉ. नारवेन कासव टेकाम