आरक्षित सीट से चुनकर आने वाले जनप्रतिनिधि भी नहीं उठाते है अपने ही वर्ग की हक, अधिकार की आवाज
धुव्रीकरण होकर बिखरकर-बंट जाता है एससी एसटी वर्ग का वोट
सिवनी जिले में दो एसटी आरक्षित तो दो में है बाहुल्य मतदाता
सिवनी जिले में लखनादौन-बरघाट विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित है तो वहीं सिवनी व केवलारी है तो सामान्य सीट है लेकिन यहां पर भी अनुसूचित जनजाति के वोट लगभग 50,000 हजार से अधिक की जनंसख्या में जो एकतरफा परिणाम को प्रभावित करने की क्षमता रखते है इसके साथ ही सिवनी जिले में अनुसूचित जाति के लगभग 14 से अधिक समाज वर्ग निवास करता है जिनका वोट भी चारों विधानसभा में काफी संख्या में है जो चुनाव जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । इन दो एससी एसटी का वोट के विभाजन, बिखराव, बंटवारा होने के कारण परिणाम जो आता है वह अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति वर्ग के हक, अधिकार के लिये जो भी राजनैतिक दल या उम्मीदवार जो मैदान में खड़ा होता है उनके पक्ष में नहीं आ पाता है और पराजय का स्वाद चखना पड़ता है इसके पीछे कारण बुद्धिजीवि तो अच्छे से जानते है परंतु पराजय में यही बुद्धिजीवि मुख्य भूमिका निभाते है इसमें कोई संदेह नहीं है क्योंकि बगरोना, बिखराव, बंटवारा में इनकी मुख्य भूमिका होती है ।
सिवनी। गोंडवाना समय।
जिले में चार विधानसभा है जिसमें लखनादौन-बरघाट दो विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित है तो सिवनी व केवलारी सामान्य सीट है हालांकि ऐसा नहीं है कि जो सामान्य सीट में उम्मीदवार मैदान में है वे अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग के हित,अधिकार के लिये कार्य नहीं करते है ऐसा बिल्कुल नहीं है जिनकी सोच जनहित व मानवता की है वे सभी वर्गों के हक, अधिकार के लिये समान विचारधारा और अपनी नीति-नियत को समानता की नजरों से देखते हुये योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक पहुंचाने का कार्य करते है इसी तरह अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिये आरक्षित सीट भले ही एसटी के लिये आरक्षित होती है लेकिन उस विधानसभा में सभी वर्गों के जनसमुदाय निवास करता है जिन्हें अनुसूचित जनजाति वर्ग का विधानसभा में चुनकर आने वाला एसटी का विधायक भी सभी वर्ग को समानता की नजरों से और अच्छी नीति-नियत के साथ योजनाओं का लाभ सभी वर्गों के जनसमुदाय के जरूरतमंदों को समान रूप से प्रदान करने में अपनी मुख्य भूमिका निभाता है। अब हम बात करें चुनाव में मतदाताओं की संख्या को लेकर तो सिवनी जिले में चारों विधानसभा में अनुसूचित जनजाति वर्ग की संख्या सबसे ज्यादा है और यह परिणाम लाने में निर्णायक भूमिका निभाते है । इस आधार पर सभी राजनैतिक दलों की निगाहे अनुसूचित जनजाति वर्गों के मतदाताओं पर गड़ी रहती है इसके लिये अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिये काम कर रहे संगठनों का सहारा समर्थन लेने का प्रयास करते है और अपने पक्ष में मतदान करने के लिये आह्वान करते है। अब यदि हम करें संगठनों की तो सिवनी जिले में अनुसूचित जनजाति वर्ग के ही लगभग 25 से ऊपर संगठन काम कर रहे है जिनके पदाधिकारियों की विचारधारा अलग अलग होती है जो अपने अपने संगठनों के माध्मय से जनसमुदाय को अपने साथ जोड़कर रखते है और इन्हीं में से मतदाताओं की संख्या का निर्धारण यही संगठन करते है कि हमारे साथ इतने मतदाताओं की संख्या है इसी आधार पर सभी राजनैतिक दलों के उम्मीदवार उन्हें अपनी अपनी ओर खींचने का प्रयास करते है ।
लखनादौन आरक्षित सीट में क्या है समीकरण
मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी विधानसभा लखनादौन है जिसमें परिसीमन के बाद समाप्त हुई घंसौर विधानसभा को भी इसमें जोड़ दिया गया है भौगोलिग आधार पर लखनादौन विधानसभा क्षेत्र विरला व विस्तृत होने के कारण इस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरने वाले उम्मीदवार को भारी मशक्कत करना पड़ता है प्रत्येक मतदान केंद्रों में चुनाव प्रचार के लिये पहुंचना कम समय में साधन संसाधन वाले के ही वश की बात होती है इसके बाद भी यहां पर उम्मीदवार देखा जाये तो काफी संख्या में मैदान में होते है । यदि हम लखनादौन विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित है यहां पर सभी उम्मीदवार अनुसूचित जनजाति वर्ग से होने के कारण यहां पर इन वर्गों का मतदाता उम्मीदवार और राजनैतिक दलों में जुड़ें होने के आधार पर उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने का प्रयास करते है। इसके साथ ही अन्य वर्गों का मतदान भी इन्हें प्राप्त होता है इस आधार पर अनुसूचित जनजाति वर्ग का उम्मीदवार का चुनाव जीतना तय होता है लेकिन आरक्षित वर्ग से जीतने वाला उम्मीदवार अपने वर्ग के साथ साथ अन्य वर्गों व क्षेत्र के विकास के लिये किस तरह कार्य करता है यह तो चुनकर पहुंचने वाला विधायक कुर्सी पर बैठने वाले के ऊपर निर्भर रहता है लेकिन अधिकांशतय: देखने में यह आता है कि आरक्षित सीट से जीतने वाले अधिकतम जनप्रतिनिधि अपने ही वर्ग की बात उठाने में जवाबदार नहीं होते है यह सीधे स्पष्ट शब्दों में जाये कि वे नाकाम रहते है ।
बरघाट विधानसभा में क्या और कैसा रहता है चुनावी रूख
बरघाट विधानसभा क्षेत्र पहले सामान्य सीट हुआ थी परंतु परिसीमन के बाद यह अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिये आरक्षित कर दिया गया है जबकि इस विधानसभा क्षेत्र में पूर्व में डॉ ढाल सिंह बिसेन लंबे समय से विधायक बनते आ रहे थे लेकिन परिसीमन के बाद से उनका राजनीतिक कैरियर भी खतरे में आ गया है उन्हें केवलारी विधानसभा में अवसर दिया गया परंतु उन्हें पराजय का ही स्वाद चखना पड़ा अब उन्हें केवलारी से भी उम्मीदवार नहीं बनाये जाने से उनका राजनैतिक भविष्य सिर्फ संगठन तक ही सीमित रहने का अनुमान है । हम बात करें अनुसूचित जनजाति वर्ग की तो बरघाट विधानसभा क्षेत्र में भले ही अनुसूहिचत जनजाति वर्ग का मतदाता अधिक हो लकिन पवार समाज की बाहुल्यता के चलते वह परिणाम को प्रभावित करने की क्षमता रखते है और बरघाट विधानसभा में अनुसूचित जनजाति वर्ग का जनप्रतिनिधि भले ही चुनकर आता हो लेकिन पवार समाज का साथ सहारा लेने का पूरी कोशिश करता है । अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिये अधिसूचित क्षेत्र ब्लॉक कुरई है जहां पर जनजाति वर्ग के मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है लेकिन एक ही अनुसूचित जनजाति वर्ग के उम्मीदवार मैदान में होने के कारण धुव्रीकरण के चलते उनका वोट सभी के बीच में किये जाने के चलते विभाजित होने की संभावना अधिक रहती है । इसके बाद अन्य वर्गों का मतदाता जिस भी अनुसूचित जनजाति वर्ग के साथ होता है उसके पक्ष में परिणाम आने की संभावना अधिक होती है । यहां पर भी यहीं स्थिति है कि अनुसूचित जनजाति वर्ग का जनप्रतिनिधि विधायक तो बन जाता है परंतु वह अपने वर्ग के हक अधिकारों के प्रति कितना संवदेनशील होता है उनके साथ होने वाले अन्याय, अत्याचार, शोषण के विरूद्ध अपनी आवाज उठाते है या नहीं यह तो स्वयं आरक्षित सीट से चुनकर जाने वाला जनप्रतिनिधि ही जानता है और क्षेत्र के अनुसूचित जनजाति वर्ग के मतदाता ही जानते है। बरघाट विधानसभा में जाति वर्ग भेद का उपयोग चुनावी में रणनीति में विशेष स्थान रखता है जो अनुसूचित जनजाति वर्ग को आपस में ही बांटने और दूरियां बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।
सिवनी विधानसभा में कौन करता है परिणाम को प्रभावित
यदि हम सामान्य सीट सिवनी विधानसभा और जिला मुख्यालय की महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली और राजनीतिक गहमागहमी कहें या राजनीतिक खींचतान के रूप में इसलिये मानी जाती है क्योंकि राजनीति करने वालों का भविष्य और वर्तमान यहां पर टिका होता है और मुख्यालय होने के कारण यह सीट महत्वपूर्ण हो जाती है यदि हम बात करें सिवनी विधानसभा की तो यहां पर अनुसूचित जनजाति वर्ग के मतदाताओं की संख्या लगभग 50000 से भी अधिक मानी जा सकती है इस आधार यह कयास लगाया जा सकता है कि विधायक का चुनाव करने में परिणाम में प्रमुख भूमिका अनुसूचित जनजाति वर्ग की होती है चूंकि यह सामान्य सीट होने के कारण यहां पर जनप्रतिनिधि भी सामान्य, ओबीस, अल्पसंख्यक वर्ग से विधायक बनने का अवसर मिलते रहा है । सिवनी विधानसभा क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति वर्ग के बाहुल्यता होने के बाद यहां पर इस वर्ग का वोट विभाजित हो जाता है सभी अपने समर्थक उम्मीदवार के पक्ष में वोट करते है और चुनकर विधायक बनाते है । इसके साथ ही हम बात करे अनुसूचित जाति वर्ग की तो सिवनी विधानसभा क्षेत्र में लगभग 14 से अधिक अनुसूचित जाति वर्ग का समाज निवास करता है जिनकी भी बाहुल्यता है यह भी अपने अपने समर्थक उम्मीदवार के साथ रहकर करते है जिससे अनुसूचित जाति वर्ग का वोट भी विभाजित हो जाता है और बंट जाता है । इसके साथ ही यदि हम बात करें तो सिवनी विधानसभा क्षेत्र में तो अनुसूचित जाति वर्ग के कम से कम 60 से भी अधिक संगठन उनके हक अधिकार के लिये अलग थलग होकर कार्य कर रहे है जिनके मुखिया पढ़े लिखे और बुद्धिजीवि होते है अपनी अपनी विचारधारा के मुताबिक संगठन को चलाते है और अपने साथ मतदाताओं को जोड़कर रखते है और प्रचार करते है कि हमारे साथ इतने मतदाताओं की संख्या है इस आधार पर इनका सहारा चुनाव मैदान में उतरने वाला उम्मीदवार अपने समर्थन में और सहारा लेने का भरसक प्रयास करता है । इसके साथ ही अनुसूचित जनजाति वर्ग का भी लगभग 25 से अधिक संगठन अपनी अपनी विचारधारा व उद्देश्य को लेकर संगठन का संचालन कर रहे है इसमें भी पढ़े लिखे और बुद्धिजीवि वर्ग का समावेश होता है जो अपनी अपनी नीति निर्धारण कर संगठन को चलाते है और अपने साथ मतदाताओं की संख्याओं का अनुमानित गणित बताकर अपने साथ जुड़े होने का प्रचार करते है इस आधार पर चुनावी मैदान में उतरने वाला उम्मीदवार इन संगठनों के मुखियाओं पर पदाधिकारियों को अपनी ओर खीचने का प्रयास करता है और समर्थन लेने की पूरी कोशिश करता है ।
केवलारी विधानसभा में क्यों खींचते है अपनी ओर
केवलारी विधानसभा सामान्य सीट है लेकिन यहां पर भी अनुसूचित जनजाति वर्ग का सर्वाधिक मतदाता है तो वहंीं अनुसूचित जाति वर्ग भी काफी संख्या में मौजूद है यहां पर सामान्य वर्ग, ओबीसी, सहित समस्त वर्ग का उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमाता है लेकिन अधिकांशतय: देखा जाये तो सामान्य वर्ग का ही उम्मीदवार विधायक बनते आ रहा है और वह क्षेत्र का जनप्रतिनिधित्व के चुने जाते है जबकि यहां पर अनुसूचित जनजाति वर्ग का मतदाता परिणाम को प्रभावित करने की पूरी ताकत तो रखता ही है साथ में अन्य वर्गों का भी महत्वपूर्ण स्थान है जो अपने अपने वर्ग के समर्थन में कार्य तो करते ही साथ राजनैतिक दलों में जुड़े होने के आधार राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता होने के नाते कार्य करते हुये अपने पक्ष के उम्मीदवार के लिये कार्य करते है इस स्थिति में वहां पर अनुसूचित जनजाति वर्ग की भ्ूामिका और अनुसूचित जाति वर्ग की भूमिका महत्वपूर्ण तो होती हे परंतु वे अलग अलग वर्गों और संगठनों के हिसाब से अपनी अपनी विचारधारा के आधार पर चलते है यही कारण होता है कि केवलारी विधानसभा में भी अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति वर्ग का वोट विभाजित होकर बंट जाता है । केवलारी विधानसभा क्षेत्र में भी अमूमन यही स्थिति है कि जिला मुख्यालय के अलावा क्षेत्रिय संगठन भी अपना अपना संगठन अपनी अपनी विचारधारा नीति नियमों के आधार पर समाजिक हित में संचालित कर रहे है जो अपने अपने संगठन के साथ मतदाताओं को जोड़कर रखते है और अपने संगठन के साथ इतनी मतदाता की संख्या होने का दंभ भरते है इस आधार पर उन्हें भी चुनाव मैदान में उतरने वाला उम्मीदवार अपनी ओर खीचंने का पूरा प्रयास करता है ।