विश्व शांति की कामना से आयोजित समवशरण महामंडल विधान
आत्मा में है सुख स्त्रोत-अजितसागर
भावलिंगी संत आचार्य विमर्शसागर महाराज की परमप्र ााक शिष्या आर्यिका विद्यान्तश्री माताजी का आज प्रात: समीपस्थ ग्राम लूघरवाड़ा स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय गुरूकुल में मंगल प्रवास हुआ। आर्यिका संघ ने मंदिरजी में विराजमान श्रीजी की प्रतिमा का दर्शन किया। श्रावकजनों ने माताजी के पहुंचने पर मंगल अनुष्ठान रचे। माताजी ने अनुष्ठान की तमाम क्रियाएं स पन्न कराई। इस मौके पर आर्यिका माताजी ने अपने प्रवचन में कहा कि हमें निरंतर मोक्ष सुख को पाने के लिए मन वचन,काय को सरल रखना चाहिए। निरंतर मंदिर जी के दर्शन करें, पूजा पाठ अभिषेक प्रक्षाल आदि की धार्मिक क्रियाओं में हमें सतत भाग लेते रहना चाहिए। माताजी के संघ की आहारचर्या गुरूकुल मंदिर परिसर में निर्विघ्न स पन्न हुई, तदोपरांत सामायिक अन्य चयार्एं होने के बाद माताजी ससंघ लूघरवाड़ा से सिवनी के लिए प्रस्थान की। सिवनी पहुंचने पर श्रावकजनों ने माताजी के संघ की भव्य आगवानी की। ज्ञातव्य हो कि आर्यिका विद्यान्तश्री माताजी का वषार्योग धर्मनगरी लखनादौन में स पन्न होने के बाद वहां से विहार पर हैं।
सिवनी। गोंडवाना समय।विश्व शांति की कामना से आयोजित समवशरण महामंडल विधान मुनिश्री अजितसागर, ऐलक दयासागर महाराज, ऐलक विवेकानंद सागर महाराज के मंगल सानिध्य में आयोजित हो रहा है। इस पावन प्रसंग पर मुनि अजितसागर ने कहा कि ऐसे पावन अवसर सुख शांति समृद्धि देने वाले बने क्योंकि प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है और दुख से घबराता है। परिग्रह को जोड?ा सुख नहीं वरन् परिग्रह का त्याग सुख कारक है। आज भूलवश यहां सुख नहीं है वहां के लिए लोग भटक रहे हैं। सुख का स्त्रोत आत्मा है शरीर नहीं। जैसे कि तिल में ही तेल निकलता है रेत में नहीं, इसी प्रकार सुख वस्तुनिष्ठ नहीं आत्मनिष्ठ है। उन्होंने कहा कि श्रावक संतोष से सुख पाता है, साधु समता से सुख पाता है। उन्होंने कहा कि हमें धन वैभव ोजन स्त्री का क ाी अपमान नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐ कारक हमारे जीवन को सुख शांतिमय बनाने में सहयोगी हैं, इनका सदुपयोग करके संयम का पालन करना चाहिए। दान,स्वाध्याय और तप में कभी संतोष नहीं रखना, निरंतर इसे बढ़ाते रहना चाहिए। संत समागम की सार्थकता पाप का त्याग करने में है। राही संगति से हीरा बने यही मुनिसंघ का आशीष बना रहता है।