अंडमान के द्वीपों में बैन हो विदेशियों की एंट्री, मनोरंजन की चीज नहीं हैं आदिवासी-जनजाति आयोग
नई दिल्ली। गोंडवाना समय।अंडमान के सेंटिनल द्वीप में आदिवासियों के तीरों से अमेरिकी नागरिक की हुई मौत के मामले में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। आयोग ने सरकार के उस फैसले पर भी सवाल उठाए हैं, जिसमें अंडमान के 29 द्वीपों को पर्यटन के लिए विदेशी नागरिकों के लिए खोले जाने की इजाजत दी गई थी। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंद कुमार साय ने अमर उजाला से खास बातचीत में बताया कि अंडमान के सेंटिनल द्वीप पर अमेरिकी नागरिक जॉन ऐलन चाऊ की हत्या के लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन जिम्मेदार है। उनका कहना है कि उन्होंने पहले भी सरकार को पत्र लिख कर चेताया था कि वह अंडमान के 29 द्वीपों को विदेशी नागरिकों के लिए न खोले। साय ने बताया कि उन्हें पहले से ही इस तरह के हादसे होने का अंदेशा था। पूर्व सांसद नंद कुमार साय ने बताया कि इस मामले को लेकर उन्होंने विस्तृत रिपोर्ट मांगी है और जल्द ही वे सरकार को इस बारे में पत्र भी लिखेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार का आदिवासी द्वीपों को पर्यटन के लिए खोलने का फैसला बिल्कुल गलत था। उन्होंने बताया कि हाल ही में अंडमान-निकोबार को लेकर आयोग ने एक सेमीनार भी की थी, जिसमें वहां के मुख्य सचिव समेत पूरे प्रशासन को बुलाया था और इस बारे में सावधानी बरतने के लिए कहा था। आयोग के अध्यक्ष के मुताबिक सरकार 60 हजार साल पुराने आदिवासियों को तुरंत मुख्यधारा में लाना चाहती है। लेकिन यह एकदम संभव नहीं है। वह कहते हैं कि सरकार को धीरज रखते हुए उनसे धीमे-धीमे संपर्क बढ़ाए, उनकी भाषा को समझ कर वैज्ञानिक पद्धति से उन पर शोध करें। लेकिन तब तक उन्हें संरक्षित जनजाति माना जाए और वहां पर्यटन पर प्रतिबंध लगाया जाए। साय के मुताबिक सरकार अंडमान-निकोबार के द्वीपों को मालदीव और मॉरिशस बनाने का सपना देख रही है, लेकिन इससे पहले उन्हें यहां के जमीनी हालात से भी वाकिफ होना चाहिए। वह कहते हैं कि मालदीव और मॉरिशस में आदिकाल के आदिवासी नहीं रहते है वहां मॉडर्न कल्चर है, लेकिन अंडमान में कई ऐसी जनजातियां हैं जिनका बाहरी दुनिया से कोई संपर्क ही नहीं है। वह कहते हैं कि आदिवासी कोई मनोरंजन या रोमांचकारी नहीं हैं, उनकी अपनी परंपराएं हैं, जिनका सम्मान हमारा संविधान भी करता है। उन्होंने बताया कि उन्होंने पत्र लिख कर कहा था कि प्रतिबंधित द्वीपों में विदेशी पर्यटकों की उपस्थिति से अति कमजोर जनजातीय समूह के लिए दीर्घकालीन समस्या उत्पन्न हो सकती है, क्योंकि वे बेहद संवेदशील हैं। साथ ही, पर्यटक इन समुदायों के प्रति भी कम संवेदनशीलता दिखाते हैं, जिससे इनकी परेशानियां और बढ़ सकती हैं। उनका मानना है कि सरकार को द्वीपों को पर्यटकों के लिए खोलने से पहले जनजातीय समूहों के हितों को ध्यान में रखते हुए विशेषज्ञों के साथ विचार विमर्श करना चाहिए था।
जय आदिवासी
ReplyDeleteपारम्परिक ग्राम स्वराज व्यवस्था का उल्लंघन करने का परिणाम है.....।
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