आदिवासियों के अस्तित्व और राजनीतिक नेतृत्व पर मंथन से निकलेगा देश की राजनीति में जनजातियों का भविष्य
इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ शोसल साइंस हाल,लोदी रोड एजूकेशनल एरिया नई दिल्ली नेशनल ट्राइबल पार्टी अलाएंस पर राष्ट्रीय चर्चा कार्यक्रम नई दिल्ली में भाग लेने पहुंचे जनजाति के उत्थान विकास को लेकर रखी बात में यह निचोड़ निकलकर आया कि आज देश को गर्त में जाने से बचाने का एक मात्र रास्ता है ,इस देश में मूल विचारधारा की व्यवस्था कायम करना । यह व्यवस्था लोकतंत्र में मताधिकार ,नेतृत्वकर्ता और दलों पर निर्भर है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए देश के संस्कारवान नेतृत्वकर्ता और उनके नेतृत्व में गठित जनजातीय नेतृत्व वाले राजनीतिक दलों का राष्ट्रीय स्तर पर महामोर्चा बनाये जाने का प्रयास किया जा रहा है। यह महामोर्चा जनजातियों की राष्ट्रीस्तरीय समस्याओं, मुद्दों जैसे धर्म कालम, भाषा, संस्कृति के अस्तित्व, विस्थापन पलायन, नक्सलवाद,जल जंगल जमीन, शिक्षा, कुपोषण आदि महत्त्वपूर्ण मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर उभारकर उसका निदान करेंगी।
नई दिल्ली। गोंडवाना समय। हमारा देश किन परिस्थितियों से गुजर रहा है किसी से छुपा नहीं है। भारत देश की कथित आजादी या अंग्रेजों के सत्ता हस्तांतरण के बाद देश को विकास के रास्ते पर ले जाने का ठेका जिन ठेकेदारों ने लिया था । इन ठेकेदार समूहों ने भारत देश की जनता की मूल भावना मूल धर्म, संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं को मजबूत बनाने की बजाय अवसर का लाभ उठाते हुए समय समय पर देश में हुए विभिन्न आक्रमणकारियों की भाषा,धर्म, संस्कृति, संस्कार को उभारना शुरू कर दिया गया । भौतिक स्थापत्य के साथ साथ ये अपनी भाषा धर्म संस्कृति संस्कार, आचार विचार को मूलनिवासियों पर लादना शुरू कर दिया। वहीं हमारे देश की मूल भावना, मूल विचारधारा और पहचान को संरक्षण हीन कर दिया गया । देश की मूल विचारधारा मृतप्राय हो चुकी। आक्रमणकारी जत्थों के अगुवा अपने हाथों सत्ता की बागडोर लेकर सक्रिय हो गये परिणामस्वरूप उनके प्रस्तुत विचारधारा का प्रभाव मूलनिवासियों पर लगातार पड़ने लगा। कहा जाता है कि जिस विचारधारा की नींव जिन संस्कारों को लेकर गढ़ी गई है,वह विचारधारा अपने स्वभाव के अनुसार ही परिणाम देती है। वर्तमान भारत की दयनीय स्थिति इसी का परिणाम है। भारत को मूल आत्मीय संस्कृति, संस्कार की आवश्यकता है। जो आज कुछ हद तक जनजाति समुदाय में बची है। विचारधारा के संघर्ष में भाषा ,धर्म संस्कृति, संस्कार रूढ़ि परंपरा का विशेष महत्व होता है। इसलिए लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ताधारी जिस विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है उस विचारधारा के अनुरुप परिणाम प्राप्त होते हैं। इसलिए आज देश को गर्त में जाने से बचाने का एक मात्र रास्ता है ,इस देश में मूल विचारधारा की व्यवस्था कायम करना । यह व्यवस्था लोकतंत्र में मताधिकार ,नेतृत्वकर्ता और दलों पर निर्भर है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए देश के संस्कारवान नेतृत्वकर्ता और उनके नेतृत्व में गठित जनजातीय नेतृत्व वाले राजनीतिक दलों का राष्ट्रीय स्तर पर महामोर्चा बनाये जाने का प्रयास किया जा रहा है। यह महामोर्चा जनजातियों की राष्ट्रीस्तरीय समस्याओं, मुद्दों जैसे धर्म कालम, भाषा, संस्कृति के अस्तित्व, विस्थापन पलायन, नक्सलवाद,जल जंगल जमीन, शिक्षा, कुपोषण आदि महत्त्वपूर्ण मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर उभारकर उसका निदान करेंगी। अब तक के सत्ताधारियों ने जनजाति के मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर कभी नहीं उठाया, बल्कि उन्हें सदैव हासिये पर रखा बड़ी से बड़ी घटनाओं को क्षेत्रीय स्तर पर ही दफना दिया जाता है। देश के आधे से अधिक राज्यों में जनजातीय समुदाय स्थानीय सरकार बनाने की क्षमता रखता है ,ठऊअ ,वढअ जैसे गठबंधन बनाकर ये पार्टियां अपनी विचारधारा की स्थापना के लिए आपसी समझौता कर व्यवस्था की बागडोर हाथ में ले सकते हैं, तब देश का समस्त जनजाति समुदाय और उनके नेतृत्व में चल रहे राजनीतिक दलों का एक प्लेटफार्म ठळढअ (नेशनल ट्रायबल पार्टी एलाईंस) की स्थापना क्यों नहीं हो सकती। इन्हीं विचारों को लेकर देश के विभिन्न राज्यों में संचालित जनजातीय नेतृत्व वाली पार्टियों के प्रमुखों को इस संबंध में विमर्श के लिए उपरोक्त दिनांक पता और समय को सादर आमंत्रित किया गया है। अत: सभी दल प्रमुख या उनके जिम्मेदार प्रतिनिधियों से अनुरोध है कि इस ऐतिहासिक विमर्श में शामिल होकर समुदाय, समाज और राष्ट्र को पतन से बचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किया । राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी की राजनीति को एक मंच पर लाने के लिये विशेष प्रयास किया गया जिसमें (एन टी पी ए)श्री छोटू भाई वसावा (विधायक एवं संरक्षक,बीटीपी गुजरात राज्य) श्री देवकुमार धान (पूर्व मंत्री झारखंड राज्य), श्री गुलजार सिंह मरकाम (राष्टÑीय संयोजक गोंगपा, गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन) मप्र राज्य ।
नई दिल्ली। गोंडवाना समय। हमारा देश किन परिस्थितियों से गुजर रहा है किसी से छुपा नहीं है। भारत देश की कथित आजादी या अंग्रेजों के सत्ता हस्तांतरण के बाद देश को विकास के रास्ते पर ले जाने का ठेका जिन ठेकेदारों ने लिया था । इन ठेकेदार समूहों ने भारत देश की जनता की मूल भावना मूल धर्म, संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं को मजबूत बनाने की बजाय अवसर का लाभ उठाते हुए समय समय पर देश में हुए विभिन्न आक्रमणकारियों की भाषा,धर्म, संस्कृति, संस्कार को उभारना शुरू कर दिया गया । भौतिक स्थापत्य के साथ साथ ये अपनी भाषा धर्म संस्कृति संस्कार, आचार विचार को मूलनिवासियों पर लादना शुरू कर दिया। वहीं हमारे देश की मूल भावना, मूल विचारधारा और पहचान को संरक्षण हीन कर दिया गया । देश की मूल विचारधारा मृतप्राय हो चुकी। आक्रमणकारी जत्थों के अगुवा अपने हाथों सत्ता की बागडोर लेकर सक्रिय हो गये परिणामस्वरूप उनके प्रस्तुत विचारधारा का प्रभाव मूलनिवासियों पर लगातार पड़ने लगा। कहा जाता है कि जिस विचारधारा की नींव जिन संस्कारों को लेकर गढ़ी गई है,वह विचारधारा अपने स्वभाव के अनुसार ही परिणाम देती है। वर्तमान भारत की दयनीय स्थिति इसी का परिणाम है। भारत को मूल आत्मीय संस्कृति, संस्कार की आवश्यकता है। जो आज कुछ हद तक जनजाति समुदाय में बची है। विचारधारा के संघर्ष में भाषा ,धर्म संस्कृति, संस्कार रूढ़ि परंपरा का विशेष महत्व होता है। इसलिए लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ताधारी जिस विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है उस विचारधारा के अनुरुप परिणाम प्राप्त होते हैं। इसलिए आज देश को गर्त में जाने से बचाने का एक मात्र रास्ता है ,इस देश में मूल विचारधारा की व्यवस्था कायम करना । यह व्यवस्था लोकतंत्र में मताधिकार ,नेतृत्वकर्ता और दलों पर निर्भर है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए देश के संस्कारवान नेतृत्वकर्ता और उनके नेतृत्व में गठित जनजातीय नेतृत्व वाले राजनीतिक दलों का राष्ट्रीय स्तर पर महामोर्चा बनाये जाने का प्रयास किया जा रहा है। यह महामोर्चा जनजातियों की राष्ट्रीस्तरीय समस्याओं, मुद्दों जैसे धर्म कालम, भाषा, संस्कृति के अस्तित्व, विस्थापन पलायन, नक्सलवाद,जल जंगल जमीन, शिक्षा, कुपोषण आदि महत्त्वपूर्ण मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर उभारकर उसका निदान करेंगी। अब तक के सत्ताधारियों ने जनजाति के मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर कभी नहीं उठाया, बल्कि उन्हें सदैव हासिये पर रखा बड़ी से बड़ी घटनाओं को क्षेत्रीय स्तर पर ही दफना दिया जाता है। देश के आधे से अधिक राज्यों में जनजातीय समुदाय स्थानीय सरकार बनाने की क्षमता रखता है ,ठऊअ ,वढअ जैसे गठबंधन बनाकर ये पार्टियां अपनी विचारधारा की स्थापना के लिए आपसी समझौता कर व्यवस्था की बागडोर हाथ में ले सकते हैं, तब देश का समस्त जनजाति समुदाय और उनके नेतृत्व में चल रहे राजनीतिक दलों का एक प्लेटफार्म ठळढअ (नेशनल ट्रायबल पार्टी एलाईंस) की स्थापना क्यों नहीं हो सकती। इन्हीं विचारों को लेकर देश के विभिन्न राज्यों में संचालित जनजातीय नेतृत्व वाली पार्टियों के प्रमुखों को इस संबंध में विमर्श के लिए उपरोक्त दिनांक पता और समय को सादर आमंत्रित किया गया है। अत: सभी दल प्रमुख या उनके जिम्मेदार प्रतिनिधियों से अनुरोध है कि इस ऐतिहासिक विमर्श में शामिल होकर समुदाय, समाज और राष्ट्र को पतन से बचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किया । राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी की राजनीति को एक मंच पर लाने के लिये विशेष प्रयास किया गया जिसमें (एन टी पी ए)श्री छोटू भाई वसावा (विधायक एवं संरक्षक,बीटीपी गुजरात राज्य) श्री देवकुमार धान (पूर्व मंत्री झारखंड राज्य), श्री गुलजार सिंह मरकाम (राष्टÑीय संयोजक गोंगपा, गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन) मप्र राज्य ।