शिवराज-कमलनाथ के लिये मध्य प्रदेश में दो हीरा 80 सीटों पर बनेंगे भाजपा कांग्रेस की असहनीय पीढ़ा
दादा हीरा सिंह मरकाम और डॉ हीरालाल अलावा बन रहे भाजपा कांग्रेस के लिए मुसीबत
भोपाल/सिवनी। गोंडवाना समय। मध्य प्रदेश हीरा की खदान के लिये प्रसिद्ध है क्योंकि मध्य प्रदेश के पन्ना में ही हीरा की खान है जहां पर विश्व प्रसिद्ध हीरा निकलता है इसलिये देश दुनिया में हीरा के नाम से भी मध्य प्रदेश की पहचान होती है वहीं मध्य प्रदेश की राजनीति में भी हीरा ने खलबली मचा कर रखा हुआ है दो बड़े सियासती दल के वरिष्ठों के कदम लड़खड़ा रहे है पैदल चलकर पहचान बनाते हुये मुख्यमंत्री बनने वाले अपनी चौथी पारी को सफलता के पायदान पर पहुंचाने के लिये चिंतित है तो वहीं मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में राजनीति का कदम उड़नखटोले से रखने वाले कमलनाथ केंद्रीय राजनीति से नीचे आकर अब राज्य की राजनीति में मुख्यमंत्री बनने सपना संजोकर मध्य प्रदेश कांग्रेस के सहारे किला फतेह करने का कयास लगाये हुये लेकिन मध्य प्रदेश में भाजपा से जितना डर उन्हें नहीं है उतना डर उन्हें अपने ही गृह जिला छिंदवाड़ा में गोंगपा से सता रहा है क्योंकि कांग्रेस के लिये गोंडवाना गणतंत्र पार्टी सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने में सबसे बड़ा रोड़ा बनी हुई है । मध्य प्रदेश की राजनीति भाजपा कांग्रेस में सियासी हलचल लाने वाले दादा हीरा सिंह मरकाम जी एवं डॉ हीरा लाल अलावा ये दोनों ही आदिवासी समाज का नेतृत्व कर रहे हैं। इन दोनों व्यक्तियों ने भाजपा और कांग्रेस के समीकरण को इस बार बिगाड़ दिया है। एक ने महाकौशल-विंध्य और दूसरे हीरा ने मालवा-निमाड़ में अपनी सक्रियता से दलों के नेताओं को चिंता में डाल रखा है।
दोनो हीरा के चलते 80 सीटों पर गड़बड़ायेगा भाजपा कांग्रेस का समीकरण
महाकौशल-विंध्य में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के दादा हीरा सिंह मरकाम जी और मालवा-निमाड़ में जयस के राष्ट्रीय संरक्षक डा. हीरालाल अलावा हैं, जो इस बार भाजपा और कांग्रेस के प्रदेश ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय नेताओं के बीच चिंता व मुसीबत का कारण बन गए हैं। मध्य प्रदेश में अब तक के विधानसभा चुनावों में देखने को मिला है कि अजजा वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटें जिस दल के खाते में जाती रही, वह प्रदेश में सरकार बनाता रहा। 2003 के विधानसभा चुनाव के पहले आदिवासी मतदाता कांग्रेस के पक्ष में मतदान करता रहा परंतु वर्ष 1991 में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का पंजीयन के बाद से ही 2003 में प्रदेश में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी में गोंगपा के तीन विधायक जीते साथ ही करीब दर्जन भर सीटों पर उसने चुनाव परिणामों को प्रभावित करते हुए कांग्रेस प्रत्याशियों को हराने का काम किया। गोंगपा आपसी लड़ाई के चलते कमजोर हुई और 2008 एवं 2013 के चुनाव में जीत हासिल नहीं कर पाई, मगर इस बार गोंगपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरासिंह मरकाम और उनकी पूरी टीम ने पूरी तरह से कमर कस लिया है। गोंगपा की सक्रियता को देखते हुए विंध्य और महाकौशल में भाजपा और कांग्रेस नेता चिंतित हैं। मध्यप्रदेश के अलावा गोंगपा ने छत्तीसगढ़ में भी अपने प्रत्याशी मैदान में उतारने का फैसला किया है। दूसरी ओर सामाजिक संगठन जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन (जयस) ने महाकौशल और निमाड़ में भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों की चिंता को बढ़ा दिया है। जयस के संरक्षक डॉ. हीरालाल अलावा जो कि एम्स दिल्ली से नौकरी छोड़कर समाज में जागरुकता लाने सक्रिय हुए हैं और उन्होंने युवा वर्ग के आदिवासियों के जागरुक किया है। जयस की लोकप्रियता छात्र संघ चुनाव में देखने को मिली थी। मालवा अंचल में जयस ने राजनीति में कदम छात्र संघ चुनाव के जरिए ही रखा और छात्र परिषद के 9 अध्यक्ष और 165 सदस्यों को जीत दिलाई। इसके बाद मालवा-निमाड़ में अजजा वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर जयस ने अपना खासा प्रभाव जमाया। जयस मूलत: भील समुदाय के आदिवासी वर्ग के बीच अपने पैठ जमा रहा है। जयस के अधिकांश कार्यकर्ता और पदाधिकारी युवा है। वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की पैठ गोंड और अन्य आदिवासियों के बीच है। संभावना यह है कि अगर सपा से पूरी तरह स्थिति साफ नहीं हुई तो 21 अक्तूबर को गोंगपा, जयस से हाथ मिलाकर मध्य प्रदेश की अजजा वर्ग के 47 सीटों के अलावा सामान्य वर्ग की 33 सीटों जहां पर आदिवासी परिणामों को प्रभावित करते हैं, अपने प्रत्याशी मैदान में उतारेंगे। दोनों दल 80 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेंगे जो भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के लिए मुसीबत बन सकते हैं।