तभी हमारे समाज और आने वाली पीढ़ी का भविष्य होगा उज्जवल एवं प्रकाशमय
कोयतुर भारत का निर्माण में शिक्षा बेहद जरुरी
लेखिका- वर्षा पंद्रे,
गोंडवाना स्टूडेंट्स यूनियन,
बालाघाट मध्य प्रदेश
शिक्षा वह मार्ग है, जो एक सामान्य मनुष्य को समाज में और स्वयं के दृष्टी में एक सम्मानपूर्वक जीवन एवं सकारात्मकता प्रदान करता है। अब बात करते हैं, हमारे अनुसुचित जनजाति समुदाय जो कि आज भी शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ता हुआ नजर आ रहा है, क्या कभी आपने इस बात पर गौर किया है कि जब हम सोते है, तब सपने में हमें सिर्फ वही चीजें क्यो दिखाई देते है, जिन्हें हम अपने बीते जीवन मे देख चुके है, सोचने वाली बात तो यह है कि हमे सपने मे वे चीजें क्यों नहीं दिखती जिन्हें हम और आपने अपने जीवन में कभी नहीं देखे हैं।
उदाहरण के लिए जैसे कोई मिसाईल लाँच करना, डॉक्टर के रुप मे किसी मरीज का इलाज करना, वकील के रुप मे किसी का कमजोर पीड़ितों का न्याय दिलाने हेतु प्रकरण दर्ज कराना और न्यायालय में निर्देर्षों को बचाने के लिये मुकदमा की पैरवी करना, आई.एस.एस., सिविल सर्विसेज, इंजिनियर इत्यादि। यह सब सायकॉलाजिकल गेम है, जिसे समझना थोड़ा जटिल है, हमें वही सपने दिखते है जो हमारे जीवन में घटित होते है। हम वही करते है जो वे अपने बालअवस्था से अपने परिसर तक व्यवहार होते देख सीखते है।
बचपन से अपने परिजनो को शिक्षा के क्षेत्र मे रूचि लेते नहीं देख पाते
आज भी हमारे जनजाति समाज में शिक्षा का अभाव है। इसका मुख्य कारण है कि हम अपने बचपन से अपने परिजनो को शिक्षा के क्षेत्र मे रूचि लेते नहीं देख पाते और ना ही अपने मनोगत विचार किसी के समक्ष व्यक्त करते देखते है। जिसका एकमात्र कारण है कि आज हमारे युवा भीड़ का हिस्सा बनकर रह जाते है। यह मानसिकता बन गई है। यदि हम चाहते है कि हमारी आने वाली पीढ़ी भीड़ का हिस्सा ना बने तो हमें उस भीड़ से अलग होना होगा, समाज की उन्नति के लिए एवं स्वयं संघर्ष करना होगा तभी हमारे समाज और आने वाली पीढ़ी का भविष्य उज्जवल एवं प्रकाशमय होगा।
ऐसा कोई कार्य या अनुचित व्यवहार न करें जिससे बच्चों पर पड़े विपरीत प्रभाव
बच्चों को जैसा वातावरण मिलता है बच्चें उसी राह पे चलते हैं। हम जो भी करते हैं, उसे हर वक्त कोई ना कोई सीखते रहते हैं। इसलिए हमें ऐसा कोई कार्य या अनुचित व्यवहार नहीं करना चाहिए, जिससे बच्चों पर विपरीत प्रभाव पड़े। बच्चों को सकारात्मक, नैतिकता, परोपकार की भावना किसी स्कूली शिक्षा से प्राप्त होने से पूर्व उसके माता-पिता, परिवार से एवं उसके आसपास के वातावरण से मिलता है। यह सब तभी संभव होगा जब हम शिक्षित होंगे।
क्योंकि हम प्रकृति से परस्पर जुड़े हुए हैं
शिक्षा का कोई मूल्य नहीं है, शिक्षा अमूल्य है लेकिन अन्य छात्र भौतिक वस्तुओं की सहायता लेकर पढ़ते है। वहीं कोयतूर समुदाय के लोगों को प्राकृतिक देन प्राप्त हैं। हमारा मस्तिष्क स्थिर एवं शांत होता हैं क्योंकि हम प्रकृति से परस्पर जुड़े हुए हैं और यही ललक किसी भी चीज को जल्दी सीखने में सफलता देती है।
मेरी कल्पना ऐसा हो समाज
मेरी कल्पना-समाज ऐसा हों जहां संस्कार, संस्कृति, सभ्यता, साक्षरता, परोपकार की भावना, सभी के लिए मन में नैतिकता हो, समाज में अपनी बात रखने की स्वतंत्रता हो, एकता, समानता होनी चाहिए, तब ही कोई भी व्यक्ति या समाज परिपूर्ण एवं सक्षम होगा। तभी हम कोयतुर भारत का निर्माण कर पाएगे।
लेखिका- वर्षा पंद्रे,
गोंडवाना स्टूडेंट्स यूनियन,
बालाघाट मध्य प्रदेश